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आतंकवाद पर एनआईए की स्ट्राइक

02:21 AM Dec 11, 2023 IST
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भारत ने अपनी सुरक्षा एवं जांच एजैंसियों के माध्यम से आतंकवाद के खिलाफ बेहतरीन काम किया है। जांच एजैंसी एनआईए और केन्द्रीय स्तर पर खुफिया एजैंसियों ने जिस तरह से समन्वय स्थापित कर काम किया है उससे देशभर में आतंकी घटनाओं में काफी कमी आई है। भारत ने जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक लगभग सभी तरह के आतंकवादी हमलों का सामना किया है। देश के दो प्रधानमंत्रियों श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या, विमानों का अपहरण, मुम्बई के बम धमाके और आतंकवादी हमला, लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर संसद पर हमला, आतंकवादियों ने हमारे पूजा स्थलों को भी नहीं बख्शा। इनके अलावा पुलवामा, पठानकोट और उरी जैसे आतंकी हमलों में हमने अनेक वीर जवानों को खोया है। 2008 के मुम्बई हमले के बाद आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक केन्द्रीय एजैंसी की जरूरत महसूस की गई तब तत्कालीन सरकार ने एनआईए की स्थापना की। तब से लेकर एनआईए ने आतंकवाद के खिलाफ जबरदस्त मोर्चाबंदी कर रखी है और उसने लगातार छापेमारी कर आतंकवादी संगठनों को फंडिंग करने वाले सभी स्रोतों को बंद कर उनकी कमर तोड़ने का काम किया।
भारत में आतंकवाद को मोटे तौर पर तीन अलग-अलग भागों में वर्गीकृत ​किया जा सकता है। जैसे जम्मू-कश्मीर में सीमा पार आतंकवाद, भीतरी इलाकों में आतंकवाद और पूर्वोत्तर भारत में विद्रोही संगठनों का आतंकवाद। भारत में विशेष धार्मिक या जातीय समूह से संबंधित घटनाएं उत्प्रेरक के रूप में काम करती हैं। वे हिंसा और आतंकवाद के चरम रूपों में शामिल होने के लिए युवाओं को कट्टरपंथी बनाने का काम करती हैं। धामिर्क आतंकवाद के कारण हिंसा की तीव्रता बहुत गम्भीर हो जाती है। एनआईए ने महाराष्ट्र और कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों में सक्रिय सबसे दुर्दांत माने जाने वाले अन्तर्राष्ट्रीय आतंकी संगठन आईएसआईएस से जुड़े एक आतंकी गिरोह का भंडाफोड़ करते हुए 15 आतंकियों को गिरफ्तार किया है। इस गिरोह ने महाराष्ट्र में थाने के पड़घा गांव को आजाद इस्लामिक इलाका भी घोषित कर दिया था और यहां के युवाओं को आईएसआईएस के खलीफा के प्रति शपथ भी दिलाई जाती थी। इस गिरोह के सरगना साकिब नाचन को भी गिरफ्तार कर​ लिया गया है।
कुछ वर्ष पहले तक यह गिरोह भारतीय युवाओं को सीरिया और इराक जाकर आईएसआईएस में शामिल होने के लिए बरगलाया करता था लेकिन अब इस गिरोह ने भारत में ही युवाओं को जेहाद के लिए भड़काना और उन्हें आतंकी बनने का प्रशिक्षण देना भी शुरू कर दिया। गिरोह का उद्देश्य आतंकी हमलों के सहारे भारत में सांप्रदायिक सदभाव को बिगाड़ना और अंततः देश के खिलाफ युद्ध का ऐलान करना था। वैसे अभी तक यह साफ नहीं हुआ कि आईएसआईएस का यह गिरोह युवाओं को खलीफा के प्रति वफादारी की शपथ दिला चुका है और कितने युवा पड़घा गांव में आकर इस गिरोह का हिस्सा बन चुके हैं।
आईएसआईएस लम्बे समय से भारत में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहा है। अब इसने भारत में बम धमाके करने की साजिश रची थी ताकि पूरे देश को दहलाकर साम्प्रदायिक उन्माद पैदा किया जा सके। पूरी दुनिया में आईएसआईएस के जन्म को लेकर और उसे पालने-पोसने वाले तमाम लोगों के बारे में चर्चाएं होती रहती हैं। आईएसआईएस यानि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया की शुरुआत इराक में हुई थी। अमेरिका के साथ हुई लड़ाई और सद्दाम हुसैन की सत्ता के खात्मे के बाद इराक अंदरूनी रूप से बेहद अस्थिर था। ऐसे में वहां कई छोटे-बड़े बागी गुट पैदा हो गए। सत्ता के लिए ये गुट जल्दी ही आपस में टकराने लगे और ऐसा ही एक गुट था अबू बकर अल-बगदादी का। बगदादी का एजेंडा था इराक और सीरिया में दोबारा खलीफा की सत्ता कायम करना। दरअसल खलीफा दुनिया भर के मुसलमानों का सर्वोच्च बादशाह हुआ करता था लेकिन पहले विश्वयुद्ध के बाद ओटोमन साम्राज्य के अंत के साथ ही खलीफा की सत्ता का भी अंत हो गया था।
वर्ष 2006 में पैदा हुए इस आतंकी संगठन ने बगदाद के कई इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया। दुनिया में बगदादी और आईएसआईएस की चर्चा उसके क्रूर तौर-तरीकों की वजह से शुरू हुई। आईएसआईएस के आतंकी अपने दुश्मनों की हत्या के लिए ऐसे तरीके अपनाते थे जिन्हें देखकर किसी की भी रूह कांप जाए। इसमें कैमरे के सामने निहत्थे लोगों की गला रेत कर हत्या करना भी शामिल था। कई बार उसने निर्दोषों के गले काटकर चौराहों पर लटका दिए थे। अमेरिका ने हालांकि एक ऑपरेशन में बगदादी को मार ​गिराया लेकिन आईएसआईएस की नई शाखाएं अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक फैल गई। हैरानी की बात तो यह रही कि भारत में पढ़े-लिखे लोग भी आईएसआईएस में भर्ती होने लगे। केरल की कुछ लड़कियों समेत युवाअ का एक समूह आईएसआईएस में शामिल होने के लिए सीरिया भी चला गया था। इसके लिए जिम्मेदार है कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा जिसके चलते शिक्षित लोग भी आतंक का दामन थाम लेते हैं। यद्यपि एनआईए ने आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया है लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि कट्टरपंथी विचारधारा का मुकाबला कैसे किया जाए। भारत की लड़ाई युवाओं को बचाने के ​साथ-साथ कट्टरपंथी विचारधारा के खत्म करने की भी है। अभी इसके ​लिएए हमें बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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