कुत्तों से सावधानी... आतंक नहीं
कुत्तों से सावधानी... आतंक नहीं !
कुत्ते पालना या कुत्तों को प्यार करना कोई बुरा नहीं परन्तु फरोशियल कुत्ते पालना या ऐसे कुत्ते रखना जिसको आप ठीक तरह सम्भाल नहीं सकते और वो दूसरों की जान की आफत बन जाए तो इससे बुरी बात नहीं। मेरे मायके में हमेशा कुत्ते पाले और रखे जाते थे, परन्तु तब भी मुझे कुत्तों से कभी लगाव नहीं था। मेरे बेटों को कुत्तों का बहुत शौक है और अखबार की वजह से हमारे यहां बहुत से ज्योतिषी आते हैं तो उन्होंने एक ज्योतिषी को सिखा दिया कि मुझे कह दे कि आपके बच्चों को नजर न लगे इसलिए कुत्ता अवश्य पालें। तब मैंने उन्हें कुत्ता पालने की इजाजत दी। अब तो पूछो मत वो कुत्तों को बच्चों की तरह प्यार करते हैं। उन्होंने क्या खाया, उनकी तबीयत खराब, उन्हें हमेशा यही फिक्र रहती है।
इसमें कोई शक नहीं कि गलियों-मोहल्लों, कालोनियों के अलावा खुली सड़कों पर आवारा कुत्ते घूमते नजर आते हैं। कल तक यह समस्या राजधानी दिल्ली से जुड़ी थी लेकिन अब लगता है कि यह एक राष्ट्रव्यापी समस्या बन चुकी है। कई लोगों को कुत्तों से काटे जाने की खबरों ने बवाल मचा रखा है। देश के कई हिस्सों में कुत्तों द्वारा नागरिकों पर हमला किए जाने की खबरें भी आ रही हैं। इसके बावजूद कुत्तों के प्रति विशेष रूप से स्ट्रीट डॉग के प्रति अनेक लोगों का प्यार भी बढ़ता जा रहा है। वे उन्हें दूध पिलाकर और बिस्कुट, रोटी खिलाकर पाल रहे हैं। समाज में कुत्तों से बचने का आह्वान करने वाले और आवारा कुत्तों को पालने वालों का ग्रुप भी बढ़ रहा है। मामले कोर्ट तक पहुंच चुके हैं। घटनाओं के बारे में लोग जानते हैं लेकिन चिंतनीय पहलु यह है कि दिल्ली के लोग या अन्य शहरों के लोग आवारा कुत्तों की वजह से जब वे वाहनों के पीछे भौंकते हुए भागते हैं तो हादसे हो जाते हैं। नोएडा की हाईफाई सोसायटियों की लिफ्ट में लोग कुत्तों को जब ले जाते हैं तो डिलीवरीमैन व बच्चों को काटे जाने की खबरें भी सामने आती हैं। अलग-अलग पक्ष हैं और अलग-अलग तर्क हैं लेिकन नागरिकों को सुरक्षा कौन प्रदान करेगा।
यद्यपि दिल्ली शहर में आवारा कुत्तों को पकड़ने का जिम्मा एमसीडी के पास है और जब कभी एमसीडी का विभाग अपनी टीम के साथ वाहन लाकर कुत्तों को पकड़ने आता है तो उन्हें कार्रवाई करने से रोकने वाले डॉग लवर खड़े हो जाते हैं। यह एक बड़ी समस्या है। विभाग का कहना है कि शिकायत मिलने पर वह कुत्तों को पकड़ने आते हैं लेिकन दूसरी तरफ उनके वाहन का घेराव करने वाले और वहां से चले जाने को कहने वाले डॉग लवर भी कम नहीं हैं। अनेक पॉश इलाकों में बच्चे सुरक्षित नहीं हैं। स्ट्रीट डॉग कहीं भी आ-जा सकते हैं और वह घरों के द्वार के बाहर या सीढ़ियों में अपना ठिकाना बना लेते हैं। उस दिन एक टीवी चैनल पर डिवेट में बताया गया कि एमसीडी विभाग के लोग कुत्तों को पकड़ कर उनकी नसबंदी कर देते हैं और फिर वापिस उसी कालोनी में छोड़ देते हैं जहां से उसे पकड़ा जाता है लेकिन उन्हें डॉग पकड़ने में बड़ी दिक्कतें आती हैं।
मेरा अपना मानना है कि कुत्तों को रोटी खिलाना और दूध पिलाने के पीछे कई धार्मिक कारण भी हैं। अक्सर पंडित कुत्तों को दूध पिलाकर आपकी इच्छा पूरी होने के दावे भी करते हैं। कुत्तों की आबादी में वृद्धि से शहरों में यह समस्या अब जोर पकड़ रही है। इस पर नियंत्रण जरूरी है। हालांकि अनेक लोग नियमों का पालन करते हुए कुत्ते पालते हैं और उनका पूरा ध्यान रखते हैं तथा वह सतर्क रहते हैं कि कुत्ता किसी को परेशान न करे लेकिन हर जगह ऐसा नहीं है। हमारा यह मानना है कि वह व्यवस्था ठोस होनी चाहिए। कई लोगों की शिकायत है कि कुत्ते कालोनियों में गंदगी फैलाते हैं, इसके लिए साफ-सफाई की ठोस व्यवस्था होनी चाहिए। जब-जब भी हम बाहर देशों में गए हैं वहां 90 प्रतिशत लोग कुत्ता, बिल्ली पालते हैं परन्तु सड़कों पर घर में सफाई का ख्याल रखते हैं और उनके पीछे बैग लेकर चलते हैं, ताकि पोटी करे तो उसमें करे। यहां तक कि डॉग एसेसरी (कुत्तों के पालन-पोषण का सामान) का बहुत बड़ा बिजनेस है। उनके लिए देश-विदेशों में बहुत बड़े-बड़े स्टोर हैं, स्पा सैंटर हैं।
भारत में भी अदालतों ने अलग-अलग व्यवस्थाएं दी हैं तथा यह भी स्पष्ट किया हैै कि स्ट्रीट डॉग के लिए फीडिंग प्वाइंट अलग होने चाहिए लेकिन कुत्तों से काटे जाने की घटनाओं में लगातार वृद्धि एक चिंतनीय पहलुु है। सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे एक केस का संदेश है। जज साहब ने पट्टी बांधे वकील से पूछा कि पट्टी क्यों बांध रखी है तो वकील साहब ने कुत्तों के आतंक का जिक्र किया और कहा कि मुझ पर पांच आवारा कुत्तों ने हमला किया तो जज साहब ने टिप्पणी की कि आवारा कुत्तों की समस्या बहुत गम्भीर है। हालांकि सोशल मीडिया पर सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता जी का गाजियाबाद में कुत्तों के काटे जाने से एक बच्चे की मौत पर टिप्पणी का उल्लेख भी है। जो उल्लेख ऊपर किया गया उस मामले में वकील साहब ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि कुत्तों की समस्याओं पर स्वतः संज्ञान लेकर समाधान किया जाए। तब सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि विभिन्न अदालतों के आदेशों से स्थिति असमंजस बनी हुई है लेकिन यह सच है कि हालात गम्भीर हैं।
घनी आबादी हो या पॉश इलाके नागरिकों, महिलाओं, बुजुर्गों और विशेष रूप से बच्चों की सुरक्षा तो होनी ही चाहिए। सोशल मीडिया पर कुत्तों से सुरक्षा की गुहार लगाई जा रही है। कई संगठन पशुओं के पालक आर्गेनाइजेशन से दुखी हैं, क्योंकि विभागों के लिए भी मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। मैंने पहले ही कहा कि सबके अपने-अपने तर्क हैं लेकिन इस मामले में नागरिकों की सुरक्षा निश्चित रूप से होनी ही चाहिए।