क्यों उठ रही हैं अमेरिका की ओर अंगुलियां !
दुनिया का सुपर पावर अमेरिका एक ऐसा देश है जिसके इशारे पर पलभर में समीकरण बदलते हैं। अब ये भी इतिहास कि अमेरिकी हमेशा अपने हितों को सर्वोपरि रखते हैं। शांति-शांति का राग अलापने वाला अमेरिका युद्धों के लिए पूरी तरह कुख्यात है। युद्ध उन्माद में ही उसने अफगानिस्तान,ईराक,लिबिया सहित कई छोटे-बड़े देशों में विध्वंस का खेल खेला। जिस देश में भी अमेरिका घुसा उसमें आज तक राजनीतिक स्थिरता कायम नहीं हो सकी। अमेरिका जो आतंकवाद का कड़ा विरोधी दिखाई देता है वास्तव में आतंकवाद का जन्मदाता भी वही है। कौन नहीं जानता कि अलकायदा और तालिबान भी उसके ही पैदा किए हुए गिरोह हैं। अमेरिकी अपने हितों के लिए आतंकवाद को बढ़ावा देते रहे हैं। अमेरिका की खुफिया एजैंसी सीआईए भी कई देशों की सत्ता पलटने के लिए कुख्यात है। अरब देशों में आई क्रांतियों के पीछे भी सीआईए का हाथ रहा है। हाल ही में नाटकीय घटनाक्रम में बंगलादेश में शेख हसीना सरकार का तख्ता पलट कर दिया गया और शेख हसीना को जान बचाकर भारत आना पड़ा। बंगलादेश में आरक्षण को लेकर शुरू हुए छात्र आंदोलन को कट्टरपंथियों ने हाईजैक कर शेख हसीना की सत्ता उखाड़ने का काम किया है। यद्यपि इस पूरे खेल के पीछे पाकिस्तान, उसकी खुफिया एजैंसी आईएसआई और बंगलादेश के कट्टरपंथी संगठनों का हाथ बताया जा रहा है लेकिन संदेह की अंगुलियां अमेरिका पर भी उठ रही हैं। तख्तापलट के पीछे अमेरिका के मंसूबे भी स्पष्ट रूप से जाहिर होते दिखाई दे रहे हैं। शेख हसीना के देश से भागते ही अमेरिका ने उनका वीजा रद्द कर यह संकेत दे दिया है कि वह शेख हसीना विरोधी है।
कई एक्सपर्ट का मानना है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने इस तख्तपलट में अहम भूमिका निभाई है और वही नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को बंगलादेश का प्रधानमंत्री बनाना चाह रही है। दरअसल, बंगलादेश के तख्तापलट में अमेरिका की भूमिका को लेकर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि अमेरिकी उप विदेश मंत्री आफरीन अख्तर ने साल 2023 में ही शेख हसीना को खुली धमकी दी थी। इसके बाद शेख हसीना ने 'व्हाइट मैन' के ऑफर और साजिश का जिक्र किया था। नॉर्थ ईस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी मंत्री ने यह धमकी सीधे शेख हसीना को दी थी। आफरीन ने कहा था कि 3 नवंबर को होने वाले चुनाव के बाद शेख हसीना संवैधानिक तरीके से पद से हट जाएं नहीं तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।
अमेरिका रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बंगलादेश के सेंट मार्टिन द्वीप पर एक सैन्य अड्डा स्थापित करना चाहता था जो एक छोटा सा द्वीप है और बंगलादेश का सबसे दक्षिणी हिस्सा है। यह कॉक्स बाजार-टेकनाफ प्रायद्वीप के सिरे से लगभग नौ किलोमीटर दक्षिण में है। चेरा द्वीप नामक एक और छोटा सा द्वीप है जो उच्च ज्वार के समय अलग हो जाता है। बंगाली में सेंट मार्टिन द्वीप को नारिकेल जिन्जीरा के नाम से जाना जाता है और बंगाली में इसका अर्थ 'नारियल द्वीप' है और यहां मूंगा की चट्टानें हैं। अमेरिका बीजिंग और मॉस्को के साथ ढाका के घनिष्ठ संबंधों को लेकर चिंतित है। अगर अमेरिका को बंगलादेश में सैन्य अड्डा मिल जाता है तो भारत का महत्व भी कम हो जाएगा। अमेरिका जानता है कि भारत एक बड़ा देश है और उसके पास मजबूत सैन्य और आर्थिक नीतियां भी हैं, इसलिए उसे ज्यादा धमकाया नहीं जा सकता। इसलिए वह ढाका पर अमेरिका को सैन्य अड्डा देने के लिए दबाव डालना चाहता है।
अमेरिका ने एयबेस बनाने के लिए शेख हसीना पर दबाव भी डाला था लेकिन शेख हसीना ने अमेरिकी दबाव के आगे झुकने से साफ इंकार कर दिया था।
कुछ विदेशी शक्तियां भी बंगलादेश और म्यांमार के कुछ इलाके को काटकर पूर्वी तिमोर जैसा एक नया ईसाई देश बनाने की साजिश रच रही हैं। म्यांमार का कुकी चिन प्रांत, बंगलादेश का चटगांव पहाड़ी इलाका और भारत के मिजोरम को मिला कर नया देश बनाने की साजिश रची जा रही है और इसका बेस बंगाल की खाड़ी में होगा। उन्होंने कहा कि म्यांमार का कुकी-चिनइलाका ईसाई बहुल है, इसलिए उन्हें आसानी से बरगलाया जा सकता है। कुकी-चिन नेशनल फ्रंट अलगाववादी संगठन के उग्रवादी ईसाई विद्रोहियों की मदद के लिए म्यांमार सेना से लड़ रहे हैं। यह गुट कई बार बंगलादेश सेना पर घातक हमले भी कर चुका है।
बंगलादेश के समूचे घटनाक्रम के पीछे अमेिरका के खबरपति व्यापारियों का हाथ भी बताया जा रहा है। जब शेख हसीना ने तीसरी बार देश की सत्ता सम्भाली तो अमेरिका ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह चुनावों में हेराफेरी और धांधलेबाजी करके सत्ता में आई हैं। अमेरिका का रुख शेख हसीना के पूरी तरह खिलाफ था। अब सवाल यह है कि क्या अमेरिका बंगलादेश में राजनीतिक अस्थिरता फैलाना चाहता है और अपनी पिट्ठू सरकार बनाना चाहता है। नोबल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अमेरिका का ही एजैंट माना जाता है। मोहम्मद यूनुस फिलहाल बंगलादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख भी बन गए हैं। बंगलादेश में तीन माह बाद चुनाव कराये जाने की योजना है। सेना ने जिस तरह से कट्टरपंथी ताकतों को हिंसा की खुली छूट दी है उससे तो यही लगता है कि बंगलादेश में जमात-ए-इस्लामी जैसी ताकतें ही सत्ता में आएंगी। बंगलादेश के हालात से भारत की चिंता बहुत बढ़ गई है। अमेरिका भी एक तरह से आग से खेल रहा है। बंगलादेश की अस्थिरता से कट्टरपंथी आतंकवादी ताकतें और मजबूत होंगी जिससे भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित हो सकती है। भारत को बहुत सतर्कता से काम लेना होगा।