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गहलोत का आदर्श शिक्षा माॅडल

02:04 AM Oct 07, 2023 IST
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भारत आजादी के बाद शिक्षा का जो ‘माॅडल’ लेकर चला था उसका उद्देश्य था कि गरीब से गरीब व्यक्ति जैसे किसी कुम्हार से लेकर लुहार या बढ़ई से लेकर मजदूर या ठठेरे का मेधावी बेटा-बेटी भी सार्वजनिक शिक्षा संस्थानों से अच्छी मगर सस्ते में शिक्षा लेकर वैज्ञानिक या डाक्टर, इंजीनियर अथवा जज तक बने उसे आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू होते ही जिस तरह बाजार के हवाले किया गया उसने भारत के गरीब वर्गों की आकांक्षाओं पर कई तरह से कुठाराघात किया और उन्हें अपने बच्चों के सपने पूरे न करने के लिए विवश किया। जो लोग अंग्रेजी शिक्षा का विरोध आज भी करते हैं वे भूल जाते हैं कि भारत की युवा पीढ़ी ने अपने अंग्रेजी ज्ञान की वजह से कम्प्यूटर- साफ्टवेयर क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर बनने का रुतबा हासिल किया। विज्ञान के क्षेत्र में लम्बी छलांग लगाने में हमारे आजादी के बाद स्थापित इंजीनियरिंग व वैज्ञानिक संस्थानों की भूमिका ही प्रमुख रही और इन्हीं से निकले छात्रों ने विभिन्न वैज्ञानिक अनुसन्धानों में अग्रणी भूमिका निभाई।
हमने आजादी के बाद हर क्षेत्र में एेसे शिक्षण संस्थान स्थापित किये जिनमें गरीब तबकों के मेधावी छात्र भी शिक्षा पाने की सामर्थ्य कर सकें और यहां से पढ़-लिख कर बाहर जाने के बाद अपने परिवार की गरीबी मिटा सकें और राष्ट्रीय विकास में भी योगदान कर सकें। चिकित्सा के क्षेत्र में भी सरकारी शिक्षण संस्थानों ने महती भूमिका निभाई और कम कीमत पर डाक्टर तैयार करके दुनिया के विभिन्न देशों में अपना झंडा गाड़ा। भारत की शिक्षा नीति के मूल में जो विचार था वह यह था कि विद्यालय के स्तर पर अमीर-गरीब के बच्चे के बीच किसी प्रकार का भेदभाव पैदा न हो जिसके लिए सरकारी स्तर पर निजी स्कूलों को बाकायदा आर्थिक मदद देने की नीति शुरू की गई। परन्तु आर्थिक उदारीकरण के बाद जिस तरह स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक का वाणिज्यीकरण हुआ है उसने समाज के गरीब तबके की कमर तोड़कर रख दी है।
इस अर्थव्यवस्था के दौर में अंग्रेजी का महत्व और बढ़ा है और निजी क्षेत्र में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की संख्या कुकुरमुत्तों की तरह बढ़ी है। अंग्रेजी पढे़-लिखे लोगों के लिए नौकरियों के रास्ते मजबूत होते कार्पोरेट क्षेत्र में खुले हैं जिसकी वजह गरीब व निम्न मध्यम वर्ग के लोगों में अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के लिए ललक बढ़ी है। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है क्योंकि उसी भाषा का भविष्य उज्ज्वल होता है जिसका सम्बन्ध रोजगार या रोजी-रोटी से होता है। मगर इन विद्यालयों की फीस देने में गरीब तबका खुद को असमर्थ पाता है जिसकी वजह से उसमें हताशा का संचार भी देखने भी आया है। ऐसे वातावरण में सरकारों का ही यह दायित्व बनता है कि वे समाज के निचले तबकों को ऊपर उठाने के लिए शिक्षा के स्तर से ही एेसी शुरूआत करें जिससे गरीब से गरीब का मेधावी बालक भी अपने सपनों को पूरा करके ऊंचे से ऊंचे पद तक अपनी योग्यता के अनुसार पहुंच सके।
लोकतन्त्र में यह दायित्व सरकारों का ही होता है कि वे आम आदमी के जीवन की आवश्यक जरूरतों की पूर्ति करने की व्यवस्था हेतु अनिवार्य आधारभूत ढांचा खड़ा करें। इस तरफ जो शुरूआत राजस्थान के मुख्यमन्त्री श्री अशोक गहलोत ने की है वह देश की सभी राज्य सरकारों के लिए नजीर बन सकती है। राजस्थान सरकार ने गांवों के स्तर पर अंग्रेजी माध्यम के आधुनिक स्कूल खोल कर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि किसी किसान-मजदूर का बेटा-बेटी भी केवल अंग्रेजी ज्ञान न होने की वजह से ही जीवन में न पिछड़े और उच्च शिक्षा के मोर्चे पर भी आगे रहे। राजस्थान में हर जिले में नये डिग्री कालेज व तकनीकी संस्थान भी खोले जा रहे हैं जिनमें अंग्रेजी ज्ञान देने को वरीयता दी जा रही है।
सवाल यह है कि हम केवल महंगे विद्यालयों में ही प्रतिभा पनपने की व्यवस्था क्यो करें जबकि गरीब आदमी के बच्चे में भी वैसी ही प्रतिभा हो मगर केवल अंग्रेजी शिक्षा न होने की वजह से पिछड़ा हुआ कहलाया जाता हो। अतः ग्रामीण स्तर अंग्रेजी विद्यालय खोलने का निर्णय राजस्थान का कायाकल्प करने में सक्षम हो सकता है बशर्ते इनमें पढ़ाने वाले शिक्षक भी समान रूप से विद्वान हों और निजी संस्थानों के शिक्षकों का हर स्तर पर मुकाबला करने में समर्थ हों। मुख्यमन्त्री का शिक्षा के क्षेत्र में यह प्रयोग ग्रामीणों व गरीबों में नये हौसले को जन्म देगा और उनकी नई पीढि़यों को अमीरों के बच्चों के बराबर लाकर खड़ा करेगा क्योंकि उनमें प्रतिभा की कमी नहीं है। यदि राजस्थान की कांग्रेस सरकार समाजवादी चिन्तक डा. राम मनोहर लोहिया के इस सपने को साकार कर रही है कि,
‘‘राष्ट्रपति का बेटा हो या चपरासी की हो सन्तान
टाटा या बिड़ला का छौना सबकी शिक्षा एक-समान।’’
तो हमें स्वीकार करना चाहिए कि श्री गहलोत शिक्षा के बाजारीकरण व वाणिज्यिकरण के इस दौर में गरीब आदमी का वास्तविक सशक्तीकरण कर रहे हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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