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चांद के बाद अब सूर्य पर नजर

01:38 AM Aug 18, 2023 IST
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मानव हमेशा अंतरिक्ष, चांद और सूरज के प्रति जिज्ञासू रहा है और उसने हमेशा ही अपनी जिज्ञासा को शां​त करने के​ लिए अनुसंधान जारी रखा।  आज़ादी के बाद से अब तक भारत ने अंतरिक्ष का सफर शानदार तरीके से तय किया है। साइकिल व बैलगाड़ी से शुरू हुई हमारी अंतरिक्ष यात्रा मंगल और चांद तक पहुंच गई है।  इसका श्रेय देश के प्र​​ितभावान आैर काबिल वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों को जाता है।
आज भारत मानव को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है लेकिन यह यात्रा इतनी आसान नहीं थी। साल 1947 में जब देश आज़ाद हुआ तब स्थिति इतनी करुण थी कि हमारे पास खाने के लिये पर्याप्त अनाज भी नहीं था, अंतरिक्ष की कल्पना करना तो बहुत दूर की बात थी लेकिन हम साहस के साथ सभी चुनौतियों को स्वीकार कर आगे बढ़ते रहे। अंतत: साल 1962 में वह घड़ी आई जब भारत ने अंतरिक्ष का सफर करने का फैसला किया और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति  की स्थापना की। इसरो के वैज्ञानिकों ने तमाम बाधाओं के बावजूद भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को दुनिया में शीर्ष पर पहुंचा दिया है। अब यह आकाशीय घटनाओं और जीवन के अध्ययन के करीब पहुंच रहा है। साल 1969 में इस इन्‍कोस्‍पार ने ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ इसरो का रूप धारण कर लिया। वर्तमान में इसरो दुनिया की 6 सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है। इसरो के चलते भारत की अंतरिक्ष में धाक बन चुकी है। इसरो ने एक के बाद एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। चंद्रयान-3 अगर चांद की सतह पर  सफलतापूर्वक उतर जाता है तो यह एक और महान उपल​​ब्धि होगी। चन्द्रयान-3 के बाद अब इसरो अपना सोलर मिशन लांच करने जा रहा है। 
भारत का पहला सोलर मिशन यानी सूर्य की स्टडी करने वाले स्पेसक्राफ्ट आदित्य-एल1 की लॉन्चिंग सितम्बर में होगी।
इसरो के अनुसार अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के पहले लैग्रेंज प्वाइंट (एल1) के आसपास एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा। एल1 बिंदु के आसपास उपग्रह बिना किसी बाधा के लगातार सूर्य को देख सकेगा। सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक एक सरल रेखा खींचने पर जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं, वह लैग्रेंज बिंदु कहलाता है। सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की तुलना में काफी अधिक है इसलिए अगर कोई वस्तु इस रेखा के बीचों-बीच रखी जाए तो वह सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से उसमें समा जाएगी। 
लैग्रेंज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल समान रूप से लगने से दोनों का प्रभाव बराबर हो जाता है। इस स्थिति में वस्तु को न तो सूर्य अपनी ओर खींच पाएगा, न पृथ्वी अपनी ओर खींच सकेगी और वस्तु अधर में लटकी रहेगी। लैग्रेंज बिंदु को एल-1, एल-2, एल-3, एल-4 और एल-5 से निरूपित किया जाता है। इसरो एल-1 लैग्रेंज बिंदु के आसपास आदित्य-1 को स्थापित करना चाहता है। आदित्य-1 उपग्रह की मदद से सूर्य के सबसे भारी भाग का अध्यन करेगा। इससे कॉस्मिक किरणों, सौर आंधी और विकिरण के अध्ययन में मदद मिलेगी। अभी तक वैज्ञानिक सूर्य के कोरोना का अध्यन केवल सूर्यग्रहण के समय में ही कर पाते थे।
इस मिशन की मदद से सौर वालाओं और सौर हवाओं के अध्ययन में जानकारी मिलेगी कि ये किस तरह से धरती पर इलेक्ट्रिक प्रणालियों और संचार नेटवर्क पर असर डालती है। इससे सूर्य के कोरोना से धरती के भू चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों के बारे में घटनाओं को समझा जा सकेगा। इस सोलर मिशन की मदद से तीव्र और मानव निर्मित उपग्रहों और अन्तरिक्षयानों को बचाने के उपायों के बारे में पता लगाया जा सकेगा। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के अनुसार वह इसरो के अगले इंटरप्लेनेटरी मिशन – सौर मिशन आदित्य एल1 के लिए ट्रैकिंग सहायता प्रदान करेगी। आदित्य-एल1 का नाम हिंदू सूर्य देवता और अंतरिक्ष यान के भविष्य के घर के नाम पर रखा गया है। वहीं एल1 – पृथ्वी-सूर्य प्रणाली का पहला लैग्रेंज बिंदु है। ईएसए ने कहा, यह कई गुणों का अध्ययन करेगा, जैसे कि कोरोनल मास इजेक्शन की गतिशीलता और उत्पत्ति।
‘आदित्य’ के प्रक्षेपण के बाद निसंदेह अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की दखल और बढ़ जाएगी। सूर्य मिशन बहुत महत्वपूर्ण है और वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी तरह का एक विशिष्ट मिशन है इसलिए इसरो के वैज्ञानिकों को इस मिशन से भारी उम्मीदें हैं। अब तक सिर्फ अमेरिका, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और जापान ने सूरज के अध्ययन के लिए स्पेसक्राफ्ट भेजे हैं। इस मिशन की सफलता इसरो के लिए संभावनाओं के नए दरवाजे खोल देगी। इस अनंत आकाश में मौजूद अन्य चमकते तारों के बारे में पता करने की जिज्ञासा को और गति ​मिलेगी। अगर सूर्य की ऊर्जा और उसके रहस्यों से पर्दा हटा पाने में कुछ भी सफलता मिली तो यह मानव सभ्यता का कायाकल्प करने वाला अध्याय होगा। इससे मानव अन्य ग्रहों और आकाश गंगाओं तक पहुंचने के अपने अभियान को अगले कदम तक ले जा सकेगा।
आकाश चोपड़ा
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