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चीन दुश्मन नं.-1

06:08 AM Oct 24, 2023 IST
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पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज ने 1998 में होम टीवी के एक कार्यक्रम में दिए इंटरव्यू में चीन को भारत का दुश्मन नम्बर एक बताया था। तब आज की तरह न्यूज चैनलों की भरमार नहीं होती थी। तब दूरदर्शिनी विद्वानों ने उनकी बड़ी आलोचना की थी। उनके इस बयान के बाद भारत में सनसनी फैल गई थी। इस बयान ने भारत में विदेश नीति बनाने वाले और चीन की सरकार में शीर्ष पर बैठे नेताओं और अधिकारियों को हिला कर रख दिया था। जार्ज का यह बयान चीन को सिर्फ दुश्मन बताने के लिए ही नहीं चर्चा में आया था। इसका बड़ा कारण यह था कि उन्होंने चीन के लिए ऐसे सख्त शब्दों का इस्तेमाल किया था जब चीनी थलसेना के प्रमुख जनरल फू क्वान भारत यात्रा पर थे। जार्ज फर्नांडीज का बयान उस समय के जमीनी आकलन पर आधारित था। आज उनकी कही गई बातें याद आ रही हैं। इस समय भारत और चीन के संबंध बहुत ही कठिन दौर से गुजर रहे हैं। लद्दाख सीमा पर गतिरोध कायम है। वार्ता के कई दौर होने के बावजूद भी गतिरोध कायम है। यद्यपि चीन एलएसी पर विवादों को सुलझाने की बात करता है लेकिन हकीकत कुछ और ही है। एलएसी यानि वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखा दोनों के नियंत्रण वाले हिस्सों को एक-दूसरे को अलग करती है लेकिन एलएसी को लेकर भारत और चीन में कभी समझौता नहीं हुआ। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन की ताजा रिपोर्ट ने एक बार फिर चीन की पोल खोलकर रख दी। रिपोर्ट में कहा गया है ​िक वर्ष 2022 में चीन ने सीमा विवाद के बीच एलएसी पर सैनिकों की संख्या बढ़ा दी थी और बुनियादी ढांचे का निर्माण जारी रखा था। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय यानी पेंटागन की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया, चीन के निर्माण में डोकलाम के पास अंडरग्राउंड स्टोरेज सेंटर, पैंगोंग झील पर दूसरा पुल, एलएसी के पास एयरपोर्ट और कई हेलीपैड्स का कंस्ट्रक्शन शामिल है। भारत और चीन कई दौर की राजनयिक व सैन्य बातचीतों के बाद कई इलाकों से सैनिकों को वापस बुला चुके हैं, फिर भी दोनों देशों के सैनिकों के बीच पिछले तीन साल से पूर्वी लद्दाख की कई जगहों पर टकराव जारी है। मिलिट्री एंड सिक्योरिटी डेवलपमेंट्स इन्वॉल्विंग द पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, मई 2020 की शुरुआत से भारत-चीन सीमा पर लगातार तनाव ने वेस्टर्न थिएटर कमांड का ध्यान खींचा है।
भारत और चीन के सैनिकों के बीच 15 जून 2020 को गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्ते काफी तनावपूर्ण हो चुके हैं। बातचीत आगे इसलिए नहीं बढ़ रही क्योंकि दोनों देश अपनी सेनाएं हटाने को तैयार नहीं। पेंटागन की रिपोर्ट में किया गया बड़ा दावा न केवल भारत के लिए बल्कि अमेरिका की चिन्ता भी बढ़ाने वाला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के पास कम से कम 500 परमाणु हथियार हैं जो 2030 तक बढ़कर इनकी संख्या हजार तक हो सकती है। चीन ने पिछले वर्ष तीन भूमिगत फील्ड्स बनाए हैं। इसमें 300 से ज्यादा बेलिस्टिक मिजाइलें रखी गई हैं। इसके अलावा चीन ऐसी मिसाइलें बना रहा है जिनकी रेंज अमेरिका तक हो सकती है। चीन दूसरे देशों में भी अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने में लगा है। वह लगातार सेना के बेस बना रहा है। हालांकि उसके बेस अभी अमेरिका के मुकाबले बहुत कम हैं। रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने लॉजिस्टिक फैसिलिटी के लिए म्यांमार, थाइलैंड, यूएई, केन्या, नाइजीरिया, नामीबिया, मोजांबिक, बंगलादेश, पपुआ न्यू गिनी, सोलोमन आइलैंड और ताजिकिस्तान में बेस बनाए हैं। चीन की नौसेना दुनिया की सबसे बड़ी नेवी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के पास 370 जहाज और सबमरीन हैं। बीते साल इनकी संख्या 340 थी। यानी एक साल में ही 30 युद्धपोत बढ़ गए हैं। 2030 तक चीन का प्लान है कि वह पोतों की संख्या 435 तक पहुंचा दें। चीन हमेशा ही अमेरिका के साथ सैन्य वार्ता का विरोध करता रहा है। उसने अमेरिका से कभी मदद नहीं मांगी लेकिन इस बार सूडान से अपने नागरिकों को निकालने के लिए उसने अमेरिका से मदद ली है।
चीन लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश के साथ ही हिन्द प्रशांत क्षेत्र में भारत के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। चीन की सैन्य ताकत में बढ़ौतरी चिन्ता का विषय है। भारत की नौसेना के पास चीन के मुकाबले लगभग आधे ही जंगी जहाज और सबमरीन हैं। हालांकि थलसेना के मामले में भारतीय सेना बहुत ही मजबूत है। डोकलाम हो या गलवान घाटी भारतीय जवानों ने चीन की हर हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया है। अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या दोनों देशों के संबंध सामान्य होंगे। इस साल अगस्त में जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स संगठन के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी। इसके बाद दोनों नेताओं ने एक साझा बयान में कहा था कि सीमा विवाद पर विस्तार से रचनात्मक बातचीत हुई है और यह वार्ता सैनिक और कूटनीतिक माध्यमों से जारी रहेगी लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि चीन विवाद को हल करने का इच्छुक है। वास्तव में दक्षिण एशिया में भारत का वर्चस्व रहा है लेकिन पिछले दो दशकों में चीन ने इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया है।
पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और बंगलादेश में भी उसने अपनी पैठ स्थापित कर ली है। यह क्षेत्र चीन के लिए बड़े बाजार भी बन सकते हैं तभी उसने बैल्ट एंड रोड योजना शुरू की। इसका उद्देश्य अफ्रीका, यूरोप और एशिया को हवाई समुद्री और भू मार्ग से जोड़ना है। चीन और भारत में संबंध सुधरने की संभावना कम दिखाई देती है। यद्यपि निजी तौर पर जिनपिंग और नरेन्द्र मोदी के बीच संबंध अच्छे हैं लेकिन दुनिया के अन्य देशों के पास दोनों देशों के संबंध सुधारने का कोई जरिया नहीं है। तनाव के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह विजयदशमी पर्व पर तवांग में तैनात सैनिकों का मनोबल बढ़ाने जा रहे हैं। रक्षा मंत्री तवांग की धरती पर खड़े होकर चीन को सख्त संदेश देंगे, चीन की मनमानी रोकने के लिए भारत के पास अपनी सैन्य शक्ति मजबूत बनाने के साथ-साथ कूटनीतिक माध्यमों को अपनाने के अलावा और भी कई विकल्प हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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