जम्मू-कश्मीर में चुनाव?
04:02 AM Aug 31, 2023 IST
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जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 को समाप्त किये जाने के केन्द्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों के समय- समय पर जो आकलन व टिप्पणियां प्रकाश में आ रही हैं उनसे यह कहा जा सकता है कि देश की सबसे बड़ी अदालत संविधान के इस प्रावधान के सभी पहलुओं की बहुत बारीकी से जांच-परख कर रही है और आश्वस्त होना चाहती है कि विगत 5 अगस्त 2019 को संसद में पारित तत्सम्बन्धी प्रस्ताव पूर्णतः संवैधानिक था या नहीं। 5 अगस्त 2019 को ही जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में बांट दिया गया था।
सरकार की ओर से 370 हटाने के विधायी प्रावधानों का नेतृत्व गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने किया था। जम्मू-कश्मीर का स्तर घटाये जाने के मुद्दे पर श्री शाह ने ही संसद को आश्वासन दिया था कि जम्मू-कश्मीर का दर्जा उचित समय पर पूर्ण राज्य का कर दिया जायेगा। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री डी.वाई. चन्द्रचूड़ के नेतृत्व में बनी पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने केन्द्र से अब यही सवाल पूछा है कि राज्य के लोगों के लोकतान्त्रिक अधिकारों की बहाली के लिए क्या केन्द्र ने कोई समयबद्ध रूपरेखा इसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए बना रखी है? केन्द्र की ओर से पैरवी करते हुए इसके महान्यायवादी (सालिसिटर जनरल) श्री तुषार मेहता ने उत्तर दिया कि वह इस बारे में सरकार के उच्च पदाधिकारियों से मशविरा करके अपना जवाब 31 अगस्त को अगली तारीख पर प्रस्तुत करेंगे। न्यायमूर्ति श्री चन्द्रचूड़ का कहना था कि जम्मू-कश्मीर में लोकतन्त्र को स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि अदालत को इस बात का भी ध्यान है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा भी इस सन्दर्भ में अहमियत रखता है। पीठ में श्री चन्द्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, एस.के. कौल, संजीव खन्ना व श्री सूर्यकान्त शामिल हैं। इस पर श्री तुषार मेहता का कहना था कि गृहमन्त्री स्वयं संसद के पटल पर घोषणा कर चुके हैं कि पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जायेगा अतः सरकार इस दिशा में काम कर रही है। अतएव जब राज्य की परिस्थितियां सामान्य होने लगेंगी और सरकारी प्रयासों का सुफल सामने आने लगेगा तो पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल हो जायेगा। श्री मेहता ने कहा कि सरकार का यह दृढ़ मत है कि केन्द्र शासित रुतबा स्थायी नहीं है। परन्तु लद्दाख केन्द्र शासित क्षेत्र ही रहेगा। श्री चन्द्रचूड़ ने इस पर प्रश्न खड़ा किया कि केन्द्र शासित दर्जा कितना अस्थायी है? आप जम्मू-कश्मीर में चुनाव कब करायेंगे? इससे स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय की नजर में जम्मू-कश्मीर में लोकतन्त्र की सम्पूर्ण वापसी वहां के लोगों के अधिकारों के सन्दर्भ में कम महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। उन्होंने स्वतन्त्र भारत के पिछले राज्य गठन के उदाहरण देते हुए यह सवाल भी खड़ा किया कि किसी राज्य से अलग करके पूर्व मंे नये केन्द्र शासित क्षेत्र बनाये गये हैं औऱ बाद में उन्हें पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया, जैसे मणिपुर , मिजोरम व त्रिपुरा आदि। एेसा माना जा सकता है कि श्री चन्द्रचूड़ का आशय जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग करके राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर उसे केन्द्र शासित क्षेत्र रखने की तरफ था। परन्तु यह सब न्यायिक सुनवाई प्रक्रिया का हिस्सा है जिससे किसी अंतिम निष्कर्ष पर भी नहीं पहुंचा जा सकता है।
हालांकि यह सत्य है कि देशभर में जम्मू-कश्मीर राज्य ही एक मात्र राज्य है जिसका रुतबा बजाये बढ़ाने के घटाया गया। 5 अगस्त 2019 को भी राज्यसभा में विपक्ष द्वारा इसका कड़ा विरोध किया गया था परन्तु श्री शाह ने तभी आश्वस्त कर दिया था कि उचित समय पर इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जायेगा। सदन में यह मुद्दा किसी औऱ ने नहीं बल्कि विपक्ष की ओर से पूर्व गृह मन्त्री श्री पी. चिन्दम्बरम ने उठाया था जिसका माकूल जवाब श्री शाह ने दिया था। निश्चित रूप से जम्मू-कश्मीर का दर्जा घटाये जाने के बाद यहां ग्राम पंचायतों के चुनाव हो चुके हैं जिससे आधारभूत स्तर पर लोकतान्त्रिक प्रक्रिया जारी रही है मगर जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराये बगैर भी यहां के लोगों के लोकतान्त्रिक अधिकार बहाल नहीं हो सकते हैं। राज्य में चुनाव आयोग ने क्षेत्र परिसीमन का कार्य भी बहुत पहले पूरा कर लिया है जिसकी वजह से राजनैतिक दलों को अपेक्षा भी है कि चुनाव जल्दी ही होने चाहिए थे। मगर अभी इस दिशा में उम्मीद नजर यह आती है कि आगामी दिसम्बर महीने तक पांच राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तेलंगाना व मिजोरम के चुनाव होने हैं और चुनाव आयोग ने अभी तक इन राज्यों के चुनाव कार्यक्रम को घोषित नहीं किया है। वैसे इसके लिए अभी पर्याप्त समय भी है। जम्मू-कश्मीर में चुनाव क्षेत्र परिसीमन में कुछ चुनाव क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति बदली गई है और कुछ सीटें भी बढ़ाई गई हैं। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद राज्य मंे चुनाव देश के अन्य राज्यों की विधानसभाओं के समान ही होंगे। अर्थात जम्मू-कश्मीर में स्थायी रूप से रहने वाले हर नागरिक को मत देने का अधिकार उन्हीं शर्तों पर होगा जिन पर अन्य राज्यों में मिलता है। परिसीमन आयोग ने राज्य विधानसभा में कुछ स्थान अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए भी आरक्षित किये हैं। नये चुनाव करने से पहले इन सभी तकनीकी पहलुओं की वैधानिक रूप से स्वीकृति होगी और देश विभाजन के समय पाकिस्तान से जम्मू-कश्मीर में आए (शरणार्थी) नागरिकों को भी विधानसभा चुनावों में भाग लेने का अवसर मिलेगा। अभी तक ये नागरिक लोकसभा चुनावों में तो भाग ले सकते थे मगर कश्मीर में 35(ए) कानून लागू होने की वजह से वे विधानसभा चुनावों में वोट नहीं डाल सकते थे। चुनाव आयोग को इसी आधार पर नई मतदाता सूचियों को अन्तिम रूप देना होगा। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल भी छह वर्ष से घटा कर पांच साल किया जायेगा जो कि 370 व 35(ए) के हटने के बाद से ही हुआ माना जायेगा। इसे देखते हुए यह कयास लगाया जा रहा है कि 31 अगस्त को तुषार मेहता सर्वोच्च न्यायालय में ही कोई बड़ी घोषणा कर सकते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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