डाटा चोर बनते युवा
इंटरनेट और डिजिटल युग में डाटा चोरी होना बहुत खतरनाक है। आज के समय में डाटा किसी हीरे-जवाहरात से कम नहीं। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से लेकर ऑनलाइन बैंकिंग तक सब कुछ हमारे डाटा से चल रहा है। डाटा चोरी होनेे की खबरें हमें मिलती रहती हैं। डाटा लीक तब होता है जब अनधिकृत पार्टियों के हाथ संवेदनशील और गोपनीय डाटा लग जाता है। डाटा लीक होने से लोगों और संस्थानों को वित्तीय नुक्सान हो सकता है। साइबर अपराधी वित्तीय डिटेल का इस्तेमाल कर धोखाधड़ी से धन चुराने, खरीदारी करने या अन्य उद्देश्यों के लिए कर सकते हैं। आजकल निजी जानकारियां, निजी मैसेज, फोटो और वीडियो लीक हो रहे हैं। सोशल मीडिया कंपनियों पर आरोप लगते रहे हैं कि वे लोगों के व्यवहार से संबंधित डाटा इकट्ठा कर कंपनियों और राजनीतिक पार्टियों को बेचती हैं। पिछले चुनावों के दौरान कैम्ब्रिज एनालिटिका के डाटा का इस्तेमाल करने का आरोप कुछ नेताओं पर भी लगा था।
भारत में इन विषयों पर गंभीर बातचीत इसलिए भी नहीं हो पाती है क्योंकि यहां का सामाजिक विज्ञान बुरी तरीके से मार्क्सवादी विचारधारा के असर में है। मार्क्सवादी स्कॉलर बिहेिवयर साइंस यानि व्यवहारवादी विज्ञान को नहीं मानते। हमारे यहां इतिहास और महापुरुषों के बारे में पढ़ने पर काफी जोर है। इसके उलट व्यवहारवादी विज्ञान लोगों के व्यवहार (पसंद-नापसंद) के अध्ययन से यह देखने की कोशिश करता है कि लोग जैसा सोच रहे हैं और व्यवहार कर रहे हैं, वैसा क्यों कर रहे हैं।
सोशल मीडिया से लोगों के व्यवहार के बारे में मिले डेटा का इस्तेमाल कंपनियां अपना समान बेचने के प्रचार और विज्ञापनों में करती हैं और प्रोडक्ट में आवश्यक फेरबदल भी करती हैं। राजनीतिक पार्टियां इस डेटा का प्रयोग यह पता लगाने में करती हैं कि कौन सा सामाजिक समूह किस तरह का राजनीतिक व्यवहार करता है और उसे कैसे अपने पक्ष में मोड़ा जा सकता है ?
अब तो भारत में डाटा चोरी करना युवाओं का खेल बन गया है। जल्दी से जल्दी या रात ही रात में धन कमाने की लालसा के चलते शिक्षित युवा भी हैकर्स बनते जा रहे हैं। इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के डाटा बैंक से 81 करोड़ भारतीयों का डाटा चोरी होने की खबरों से बवाल मचा था। भारतीय जांच एजेंसियों को करीब दो माह पहले इस डाटा के लीक होने और उसे डार्क वैब पर बेचे जाने का पता चला था। दिल्ली पुलिस ने तीन राज्यों से चार लोगों को गिरफ्तार किया है और उनसे पूछताछ के दौरान यह भी माना है कि उन्होंने अमेरिकी जांच एजैंसी फैडरल ब्यूरो ऑफ इनवैसटीगेशन आैर एक पड़ोसी देश के कम्प्यूटराइज्ड नेशनल आइडेंटिटी कार्ड का डाटा भी चुराया है। पकडे़ गए चार लोगों में एक ओडिशा का बी-टैक डिग्री धारक युवा है। दो लोग हरियाणा से हैं जिन्होंने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी है और एक व्यक्ति झांसी का है। खुफिया एजैंसी को जब डार्क वैब पर आधार आैर पासपोर्ट के रिकार्ड्स का डाटा मिला तब उन्होंने जांच को तेज किया। पकड़े गए चारों युवा एक गेमिंग प्लेटफार्म पर मिले थे। उसके बाद यह चारों दोस्त बन गए फिर इन्होंने जल्दी पैसा कमाने के लिए डाटा चुराकर बेचने का फैसला किया।
"इस पूरे मामले को और इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम (सीईआरटी-इन) को रिपोर्ट किया गया। ये एक नेशनल नोडल एजेंसी है जिसका काम हैकिंग और फिशिंग जैसे साइबर खतरों से निपटना है। इस एजेंसी ने डाटा की प्रामाणिकता जानने के लिए संबंधित विभागों से संपर्क साधा और उन्हें असली डाटा से मिलान करने को कहा। इन विभागों ने पाया कि करीब एक लाख लोगों का डाटा था। इसमें से 50 लोगों का डाटा लेकर उसे वैरीफाई किया गया जो कि असली निकला।" देश के कई राज्यों में कई युवाओं को डाटा चुराने के आरोप में पकड़ा गया है। आरोपियों के पास रक्षा कर्मियों, सरकारी कर्मचारियों, पैन कार्ड धारकों, छात्रों, डी मैट खाता धारकों, अमीर व्यक्तियों का डाटा और मोबाइल नंबर शामिल थे। विदेशी हैकर्स ही नहीं जिस तेजी से भारत के युवा हैकर्स बन रहे हैं और तकनीक का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं, यह प्रवृत्ति कोई अच्छी नहीं है। अब सवाल यह है कि सरकार कम्पनियों पर तो नकेल कस रही है डाटा सुरक्षित रखने के उपाय भी कर रही है लेकिन आईआईटी में दक्ष युवाओं को डाटा चोरी करने से कैसे रोका जाए और सर्वर में सेंध को कैसे रोका जाए, यह बहुत जरूरी है। डाटा को सुरक्षित बनाने के लिए इसके ईको सिस्टम को सुधारना होगा और डाटा सिक्योरिटी को पुख्ता बनाना ही होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com