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तेलंगाना चुनाव में किसान

02:30 AM Nov 29, 2023 IST
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विधानसभा चुनावों में जा रहे पांच राज्यों में से शेष बचे एकमात्र राज्य तेलंगाना में भी चुनाव प्रचार आज थम गया। इसकी 119 सदस्यीय विधानसभा के लिए मतदान आगामी 30 नवम्बर को होगा परन्तु इससे ठीक पहले चुनाव आयोग की कार्रवाई को लेकर इस राज्य में लागू चुनाव आचार संहिता के सन्दर्भ में राजनैतिक विवाद गर्मा गया है। मुद्दा यह है कि राज्य की भारत राष्ट्रीय समिति की चन्द्रशेखर राव सरकार विगत 2018 वर्ष से किसानों की वित्तीय मदद करने वाली ‘रायथु बन्धु’ योजना चला रही है जिसके अन्तर्गत छोटे किसानों को प्रति वर्ष रबी व खरीफ की दो फसलों के समय पांच-पांच हजार रुपए की मदद की जाती है। इस प्रकार प्रति वर्ष राज्य सरकार किसानों को दस हजार रुपए की मदद करती है। सरकार की इस स्कीम के पहले से ही लागू होने के कारण इसे राज्य में चुनावों में लागू आचार संहिता के उल्लंघन में भी नहीं समझा गया और चुनाव आयोग ने कुछ दिन पहले ही इस स्कीम के अन्तर्गत किसानों को पांच हजार रुपए देने पर आपत्ति नहीं की। मगर राज्य के वित्त मन्त्री टी. हरीश राव ने इस स्कीम के तहत ही एक चुनावी जनसभा में यह घोषणा कर दी कि मतदान से दो दिन पहले मंगलवार को प्रत्येक लाभार्थी किसान के खाते में पांच हजार रुपए पहुंच जायेंगे और उनके मोबाइल फोनों की घंटियां बज उठेंगी जो उनके खातों में जमा रकम के बारे में सूचना देंगी। उनकी इस घोषणा को चुनाव आयोग ने आचार संहिता का सीधा उल्लंघन माना और आदेश दिया कि अब राज्य सरकार किसानों को तब तक धन नहीं दे सकती जब तक कि आगामी 5 दिसम्बर तक आचार संहिता लागू है।
पहली नजर में चुनाव आयोग का फैसला पूरी तरह न्यायसंगत लगता है क्योंकि दिनेश राव ने मतदाताओं को लालच देने का प्रयास इस तरह किया है जैसे ‘रायथु बन्धु’ स्कीम की जगह राज्य सरकार यह धनराशि अलग से दे रही हो। सवाल यह है कि जब इस पुरानी स्कीम के तहत किसानों के पास धन पारंपरिक रूप से पहुंचना ही था तो इसका चुनावी घोषणा की तरह उपयोग क्यों किया गया? इस मामले में राष्ट्रीय समिति की प्रबल राजनैतिक विरोधी कांग्रेस पार्टी पहले से ही ज्ञापन दिये बैठी थी कि किसानों को मिलने वाली धनराशि चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले ही दे दी जाये मगर मुख्यमन्त्री चन्द्रशेखर राव इसे टालते रहे। कांग्रेस ने भी अपने घोषणा पत्र में किसानों को 15 हजार रुपए साल व किराये या बटाई पर खेती करने वाले किसानों को 12 हजार रुपए साल में देने का वादा किया हुआ है। इसके बावजूद चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय समिति की सरकार को आचार संहिता के लागू रहते ही धन बांटने की इजाजत इस आधार पर दे दी कि यह स्कीम पहले से ही लागू है। मगर वित्तमन्त्री दिनेश राव ने इसे दूसरा ही रंग यह कह कर दे डाला कि मंगलवार को सभी लाभार्थी किसानों के खाते में वे इस धन को भेज देंगे जबकि मतदान इसके दो दिन बाद गुरुवार को ही होना था।
चुनाव आयोग के इस फैसले पर चन्द्रशेखर राव की सरकार व उनकी पार्टी बहुत शोर मचा रही है और इसका सारा दोष विपक्षी कांग्रेस पार्टी के माथे मढ़ने की कोशिश कर रही है। जबकि चुनाव आयोग का यह कहना है कि उसने केन्द्र व राज्य सरकारों की सभी ऐसी लाभार्थी स्कीमों की आचार संहिता काल के दौरान भी जारी रखने की अनुमति इस शर्त पर दी थी कि इनका उपयोग व प्रचार राजनैतिक लाभ के लिए नहीं किया जायेगा। अर्थात इनके तहत दिये जाने वाले धन के वितरण को कोई भी राजनैतिक दल चुनाव प्रचार से नहीं जोड़ेगा तथा इसका वितरण चुनाव प्रचार बन्द होने के समय के भीतर नहीं किया जायेगा। हर मतदान से दो दिन पहले चुनाव प्रचार बन्द कर दिया जाता है। मगर दिनेश राव ने किसानों के खातों में धन पहुंचाने का समय दो दिन से एक दिन पहले ही किया। अतः चुनाव आयोग की कार्रवाई को गलत भी नहीं ठहराया जा सकता। मगर चुनावी राजनीति में चन्द्रशेखर राव की पार्टी ऐसा दिखाने की कोशिश कर रही है जैसे इसके लिए कांग्रेस पार्टी जिम्मेदार है।
बेशक राजनीति में यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि कौन सा दांव कब किसके पक्ष या विरोध में चला जाये मगर चुनाव आयोग ने तो अपनी तरफ से सही काम ही किया है वह भी ऐसे वातावरण में जबकि उस पर पक्षपात पूर्ण कार्रवाई करने के आरोप विपक्षी पार्टियां लगाती रहती हैं। जाहिर है कि चुनावों में राष्ट्रीय समिति इस मामले को एक मुद्दा बनाने की कोशिश कर सकती है जिसका जवाब कांग्रेस अपनी तरह से दे रही है। चुनावी राजनीति बहुत बेदर्द भी होती है इसलिए इस मुद्दे पर भाजपा भी चुप नहीं बैठी रह सकती। यह विवाद इस हकीकत को ही उजागर करता है कि आजकल की सियासत में ‘राजनैतिक नैतिकता’ की बात करना ‘समुद्र में मोती’ ढूंढने के बराबर हो गया है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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