नई तेलंगाना सरकार की चुनौतियां'
कांग्रेस का चेहरा रहे रेवंत रेड्डी तेलंगाना के मुख्यमंत्री बन गए हैं। चुनावों में कांग्रेस को बहुमत हासिल होने के बाद रेवंत रेड्डी ही मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे चल रहे थे। अंततः कांग्रेस हाईकमान ने उनके नाम पर मोहर लगा दी। रेवंत रेड्डी ने राजनीति की शुरूआत छात्र जीवन में ही कर दी थी। उन्होंने भाजपा के छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जरिये राजनीति में एंट्री मारी थी। ग्रेजुएशन के बाद वह चन्द्रबाबू नायडू की तेलगूदेशम पार्टी में शामिल हो गए थे। 2009 में उन्होंने अविभाजित आंध्र प्रदेश की कोडांगल सीट से विधानसभा का चुनाव जीता था। तेलंगाना के अलग राज्य बनने के बाद वर्ष 2014 में वह टीडीपी की टिकट पर फिर विधायक बने। 2015 में नोट के बदले वोट मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उस समय उन्हें चन्द्रबाबू नायडू का एजैंट बताया गया था। विधान परिषद चुनाव में एक विधायक को टीडीपी के पक्ष में मतदान करने के लिए रिश्वत देने की कोशिश करते हुए वह कैमरे में कैद हो गए थे तब उन्हें हैदराबाद की जेल में भेज दिया गया था। 2017 में रेवंत कांग्रेस में शामिल हो गए थे। कांग्रेस में उनकी शुरूआत अच्छी नहीं रही। क्योंकि 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनावों में वह टीआरएस के उम्मीदवार से हार गए थे। विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में मल्कानगिरि से टिकट दिया, जिसमें वह सिर्फ दस हजार वोटों से ही जीते थे। वर्ष 2021 में उन्हें कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद महज दो साल में वह कांग्रेस के पोस्टर ब्वाय बन गए। तेलंगाना में कांग्रेस भले ही जीत गई है लेकिन इस जीत के पीछे के. चन्द्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भ्रष्ट और परिवारवादी सरकार के प्रति जनता का विद्रोह माना जाना चाहिए। जनता का विद्रोह वैसा ही रहा जैसे 2011 में पश्चिम बंगाल की जनता ने वामपंथी सरकार के खिलाफ किया था तब तृणमूल कांग्रेस की ममता बैनर्जी ने वर्षों से चले आ रहे वामपंथी शासन को उखाड़ फैंका था। के. चन्द्रशेखर राव भी पहले कांग्रेस में ही थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि के. चन्द्रशेखर राव ने राज्य सरकार को अपने परिवार की दुकान बना दिया था और भ्रष्टाचार और घोटालों का बोलबाला हो गया था। राज्य की जनता सामंती सरकार से मुक्ति चाहती थी। जिसका सीधा लाभ कांग्रेस को मिला। तेलंगाना में कांग्रेसी नेता जीत के लिए राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा और रेवंत रेड्डी की भूमिका को श्रेय देने में लगे हैं लेकिन चुनाव विशेषज्ञों का कहना है कि तेलंगाना की जीत कांग्रेस की विजय नहीं है बल्कि यह बीआरएस की पराजय है।
तेलंगाना में भाजपा का प्रभाव नहीं है इसलिए जब लोगों ने बीआरएस के खिलाफ वोट देने का फैसला किया तो उन्हें लगा कि वो कहां जाएं। उनके सामने केवल कांग्रेस ही विकल्प था। जब तेलंगाना का निर्माण हुआ था तब उसके पास 7000 करोड़ का अतिरिक्त राजस्व था। आज यह अतिरिक्त राजस्व 7 लाख करोड़ के घाटे में बदल चुका है। तेलंगाना राज्य के लिए आंदोलन के तीन मुख्य कारण थे, नौकरियां, पानी और आर्थिक स्थायित्व। केसीआर सरकार युवाओं को नौकरियां देने में नाकाम रही। केसीआर ने अपने बेटे केटीआर, बेटी कविता और रिश्तेदार हरीश राव और संतोष राव को लेकर सत्ता का केन्द्रीयकरण कर दिया था। यही कारण रहा कि जनकल्याण की अनेक योजनाओं का उन्हें कोई लाभ नहीं मिला। हालांकि केसीआर ने समाज के कई वर्गों के लिए रायथू बंधु और दलित बंधु जैसी कई स्कीमें चलाईं लेकिन जरूरतमंद लोगों को इनका फायदा मिल ही नहीं पाया। किसान, युवा और आदिवासी सरकार से नाराज थे। अब रेवंत रेड्डी के नेतृत्व वाली नई कांग्रेस सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। नई सरकार को युवाओं, किसानों और समाज के विभिन्न वर्गों को प्राथमिकता देनी होगी। अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं। इसलिए नई कांग्रेस सरकार को जनता की आकांक्षाएं पूरा करने के लिए बहुत तेजी से काम करना होगा।
कांग्रेस ने वादा किया था कि उसने तेलंगाना में सरकार बनाई तो वो हर बेरोज़गार युवा को चार हज़ार रुपये प्रति माह, महिलाओं को ढाई हजार रुपये प्रति माह, बुजुर्गों के लिए चार हज़ार रुपये प्रति माह पेंशन, किसानों को 15 हज़ार रुपये सालाना देगी। रेवंत रेड्डी का तेलंगाना की जनता को कांग्रेस की ओर से दी गई गारंटियों को लेकर कहा था, 'वैलफेयर मॉडल और डवेलपमेंट मॉडल कांग्रेस सरकार की दो आंखें रही हैं, काबिल लोगों को अवसर देना हमारी नीति है, जो लोग दूसरों पर निर्भर हैं उनको सहारा देना भी सरकार की ज़िम्मेदारी है।'
रेवंत रेड्डी सरकार अब दी गई गारंटियों को किस तरह से पूरा करेगी और राज्य को किस तरह से आर्थिक रूप से मजबूत करेगी, यह सबसे बड़ी चुनौती है। नई कांग्रेस सरकार किस तरह से भ्रष्टाचार मुक्त सरकार चलाती है यह भी एक बड़ी अग्नि परीक्षा है। रेवंत रेड्डी कांग्रेस में जूनियर नेता हैं। हालांकि वरिष्ठ नेता उनको मुख्यमंत्री बनाने का विरोध कर चुके हैं। देखना होगा कि रेवंत रेड्डी पार्टी नेताओं को कितना साथ लेकर चलते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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