नेपाल में भूकंप
जब भी प्रकृति अपना क्रोध दिखाती है तो कहर ढाए बिना नहीं रहती। पिछले कुछ वर्षों से प्रकृति के खौफनाक मंजर दिखाई दे रहे हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि प्रकृति मानव के व्यवहार को लेकर काफी नाराज है। उसके सामने हर कोई असहाय दिखाई दे रहा है। मनुष्य लगातार प्राकृतिक आपदाओं से सम्पर्क कर रहा है लेकिन अब ऐसा लगता है कि उसमें भी संघर्ष का सामर्थ्य नहीं बचा। भारत के पड़ोसी देश नेपाल में पिछले तीन दिनाें से लगातार भूकंप के झटके आ रहे हैं। शुक्रवार और शनिवार की मध्यरात्रि भूकंप के तीव्र झटके आने के बाद वहां लगभग भूकंप के झटके महसूस किए जा रहे हैं। भूकंप के झटकों ने बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली तक को हिलाकर रख दिया। सोमवार को भी शाम के वक्त नेपाल से लेकर दिल्ली तक भूकंप के झटके महसूस किए गए। नेपाल में मरने वालों का आंकड़ा 154 तक पहुंच गया है और अनेक लोग घायल हुए हैं। लोगों के घर तबाह हो चुके हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालयी क्षेत्र में बहुत भीषण भूकंप आने की संभावना अधिक है और इसका असर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अतिरिक्त उत्तर भारत के अनेक अन्य क्षेत्रों और बड़े शहरों तक पहुंच सकता है। भारत का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में है। हाल ही के दशकों में भारत के पड़ोसी देशों में भूकंपों से काफी अिधक क्षति हुई है और आगे के लिए भी यह बड़ी चिता का विषय बना हुआ है। नेपाल और बिहार के लोग अभी भी 2015 के भूकंप को याद कर सिहर जाते हैं। उस विनाश लीला में 12 हजार लोग मारे गये थे। 10 लाख घर जमींदोज हो गये थे। लाखों लोग बेघर हो गये थे। इसी साल फरवरी में तुर्किए, सिरिया, लेबेनान और इजराइल चार देशों में आए भूकंप ने हजारों लोगों को मौत की आगोश में सुला दिया था। पलभर में गगनचुंबी इमारतें, शोपिग माल, बाजार और घर तबाह हो गये थे। भोर होने से पहले सो रहे लोगों को पता नहीं चला कि आपदा उन पर कहर बरपा चुकी है। नेपाल में भूकंप के झटके क्यों आते हैं? क्यों अक्सर नेपाल भूकंप जोन बनता है। इसके लिए जियाेलॉजिकल कारण है। हिमालय दुनिया के सबसे ज्यादा भूकंप एक्टिव इलाकों में से एक है।
ये भूकंप दो महाद्वीपीय प्लेटों भारत और यूरेशियन प्लेटों के बीच टकराव का परिणाम है। भारतीय प्लेट लगातार हर साल कुछ सेंटीमीटर उत्तर की ओर बढ़ती है, तिब्बती पठार के नीचे की ओर रास्ता बनाती है। हर एक झटकेदार खिसकाव भूकंप को ट्रिगर करता है, इसे रबर बैंड की शूटिंग की तरह समझ सकते हैं। जब आप रबर को पीछे की तरफ खींचते हैं तो एक तनाव पैदा होता है। एनर्जी उस तनाव में स्टोर होती है। अब आपको किसी पल इस तनाव को रिलीज करना होगा। जैसे ही ये टेंशन रिलीज होती है सारी इकट्ठा ताकत काइनेटिक एनर्जी में कन्वर्ट होती है और भूकंप का कारण बनती है। हिमालयन रीजन में ये जियोलॉजिकल शिफ्ट इसी टेंशन रिलीज के कारण होता है, ये सामान्यत बाउंड्री के पास 2 प्लेट के बीच होता है। जिसे मुख्य हिमालयन थ्रस्ट कहते हैं, इसका साफ असर सतह पर देखने काे मिलता है और ये लैंडस्केप को ऊपर की तरफ उठा देता है। हिमालय की तरफ 2 तरह के भूकंप देखने काे मिलते हैं। एक मॉडरेट यानी कि सामन्य इंटेंसिटी का जिसका मैग्निट्यूड 7 तक हो सकता है। इसमें सतह पर क्रैक आ जाते हैं। वहीं 8 मैग्निट्यूड वाले भूकंप में सतह 2 हिस्सों में बढ़ सकती है। ये मेगा भूकंप कहा जाता है लेकिन इन दाेनों के बीच क्या संबंध और बढ़ा हुआ तनाव कैसे आगे जाकर रिलीज होता है ये अभी भी साफ नहीं है।
धार्मिक व्याख्याओं के चलते कभी यह माना जाता है कि धरती सात मुंह वाले नाग के सिर पर टिकी है। जब नाग सिर बदलता है तो धरती हिलती है। कभी यह कहा जाता है कि धरती धर्म की प्रतीक गाय के सींग पर टिकी है, जब गाय सींग बदलती है तो धरती हिलती है। धर्माचार्यों का मानना है कि धरती पर पाप बहुत बढ़ जाता है तो धरती कहर ढाती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी की गहराई में बहुत आग है। तथ्य कोई भी हो ऐसे दैवीय प्रकोप से बचने का कोई साधन नहीं है। भूकंप कहां और कब आएगा वैज्ञानिक इसका आज तक स्टीक उत्तर नहीं दे पाये। आज भी भूकंप त्रासदी को देखकर लोग कह रहे हैं कि जनसंख्या के संतुलन को बनाए रखने के लिए प्राकृति अपना रौद्र रूप दिखा रही है। संकट की घड़ी में पूरी दुनिया का दायित्व है कि वह मानव की रक्षा के लिए, मदद के लिए आगे आये।
भारत हमेशा से ही प्राकृतिक आपदा प्रभावित देशों की मदद करता आया है। मानवता के नाते ऐसी आपदाताओं में दुनिया एकजुट होकर आपदा प्रभावित लोगों का धैर्य बंधाती है। इस तरह का धैर्य पाकर टूटा हुआ साहस पुनर्जीवित हो उठता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेपाल को हर संभव मदद देने का भरोसा दिया है। ऐसी प्राकृतिक आपदाएं मानवता को संदेश देती हैं कि प्रकृति का दोहन मत करो। प्रकृति के साथ जीना सीख कर धरती का पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखे।