पुराने आपराधिक कानूनों की विदाई
कानूनों में समय-समय पर बदलाव निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। जिस समय संविधान लागू हुआ था उस समय और अब के भारत में जमीन-आसमान का फर्क है। इस फर्क के हिसाब से भी लोगों की जरूरतें बदली हैं। किसी भी देश का संविधान उसकी जरूरतों काे पूरा करने लायक होना चाहिए। हमारे संविधान की यह खासियत है कि इसमें समय की जरूरत को देखते हुए कई बदलाव किए जा चुके हैं। अगर कानूनों में संशोधन नहीं किए जाते तो समान सामाजिक और आर्थिक सुधार कैसे सम्भव हो सकते थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यप्रणाली अन्य प्रधानमंत्रियों की तुलना में काफी अलग रही है। वह कुछ नया करने की सोच रखते हैं और सिद्धांत पर चलते हैं। यही वजह है कि वर्ष 2014 में सत्ता सम्भालने के बाद से ही उन्होंने देश के पुराने और अप्रसांगिक हो चुके कानूनों को न केवल खत्म किया है बल्कि कई कानूनों में आवश्यक संशोधन भी किए हैं। 1500 कानूनों से ज्यादा कानूनों को खत्म किया जा चुका है, जिनमें से ज्यादातर कानून अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे थे। इसके पीछे मंशा लोगों को सहूलियत प्रदान करना है। सरकार ने 25 हजार से ज्यादा शर्तों को समाप्त किया है। जिनमें जाली नोट फैलाने और सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने को भी टेरर एक्ट में शामिल किया गया है।
यह सब इस सिद्धांत पर आधारित है कि जहां जरूरत हो वहां सरकार का अभाव नहीं होना चाहिए लेकिन जहां जरूरत न हो वहां सरकार का प्रभाव भी नहीं होना चाहिए। पुराने कानून अंग्रेजों ने अपने हिसाब से बनाए थे जिनका लक्ष्य केवल दंड देना था लेकिन अब सरकार का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं बल्कि न्याय देना है। अब इंडियन पीनल कोड (1860) क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (1898) और इंडियन एविडैंस एक्ट (1872) में बने इन कानूनों को अलविदा कहकर कानूनी ढांचे में एक बड़े बदलाव की ओर सरकार ने कदम बढ़ा दिए हैं। इससे गुलामी की निशानियां तो समाप्त होंगी ही साथ ही न्याय देने की व्यवस्था भी पुख्ता होगी। इस संबंध में तीन विधेयकों को गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले मानसून सत्र खत्म होने से पहले लोकसभा में पेश किया था जिन्हें स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा गया था।
गृहमंत्री ने शीतकालीन सत्र में मंगलवार को अापराधिक कानूनों में जुड़े तीन विधेयकों को वापिस ले लिया और इनकी जगह नए विधेयक पेश कर दिए। इन मसौदा विधेयकों में संसद की स्टैंडिंग कमेटी के सुझावों को शामिल किया गया। एक विधेयक में आतंकी कृत्य की परिभाषा का दायरा बढ़ाया गया है। नए सिरे से पेश किए गए विधेयकों में आतंकवाद की परिभाषा समेत कम से कम पांच बदलाव किए गए हैं। भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता विधेयक में कई बदलावों के साथ-साथ आर्थिक सुरक्षा शब्द भी शामिल है।
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) विधेयक, 2023 और भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक, 2023 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी),1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 का स्थान लेने के लिए लाया गया है। शाह ने मानसून सत्र के दौरान 11 अगस्त को सदन में ये विधेयक पेश किए थे। बाद में इन्हें गृह मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था।
विधेयक में धारा 73 में बदलाव किए गए हैं जिससे अदालत की ऐसी कार्यवाही प्रकाशित करना दंडनीय हो जाएगा जिसमें अदालत की अनुमति के बिना बलात्कार या इसी तरह के अपराधों के पीड़ितों की पहचान उजागर हो सकती है। धारा 73 में अब कहा गया है, 'जो कोई भी अदालत की पूर्व अनुमति के बिना धारा 72 में निर्दिष्ट अपराध के संबंध में अदालत के समक्ष किसी भी कार्यवाही के संबंध में किसी भी मामले को प्रिंट या प्रकाशित करेगा, उसे एक अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाएगी। इसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।'
भारत के कानून में कई ऐसे शब्दों का जिक्र था जो आजादी से पहले के हैं, इनमें ब्रिटिश शासन की झलक थी जिसे अब निरस्त कर दिया गया है, करीब 475 जगह इनका इस्तेमाल होता था जो अब नहीं होगा। अब सबूतों में डिजिटल रिकॉर्ड्स को कानूनी वैधता दी गई है ताकि अदालतों में कागजों का ढेर नहीं दिया गया है। एफआईआर से लेकर केस डायरी तक को अब डिजिटल किया जाएगा, किसी भी केस का पूरा ट्रायल अब वीडियो कॉन्फ्रेंगिंग से किया जा सकता है। किसी भी मामले की पूरी कार्यवाही डिजिटल तौर पर की जा सकती है।
साह ने कहा कि किसी भी सर्च में अब वीडियोग्राफी जरूरी होगी, इसके बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी। हम फॉरेन्सिक साइंस को मजबूत कर रहे हैं, जिस भी मामले में 7 या उससे अधिक साल की सजा है उसमें फॉरेन्सिक रिपोर्ट आवश्यक होगी यानी यहां पर फॉरेन्सिक टीम का विजिट करना जरूरी होगा, हमने दिल्ली में सफल तरीके से लागू किया है। हमारा फोकस 2027 से पहले सभी कोर्ट को डिजिटल करने की कोशिश है। नए बिल के तहत जीरो एफआईआर को लागू करेंगे, इसके साथ ही ई-एफआईआर को जोड़ा जा रहा है। जीरो एफआईआर को 15 दिनों के भीतर संबंधित थाने में भेजना होगा, पुलिस अगर किसी भी व्यक्ति को हिरासत या गिरफ्तार करती है तो उसे लिखित में परिवार को सूचना देनी होगी। विपक्षी दल इन विधेयकों को फिर से स्थाई समिति को सौंपने की मांग कर रहा है, इस पर गृहमंत्री ने कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो ऐसा कर सकते हैं। जरूरत के अनुसार विधेयक में फेरबदल किया जा सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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