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प्याज के दामों को लेकर चिन्ता

04:08 AM Oct 31, 2023 IST
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भारत की कृषि व्यवस्था की कथा इसलिए निराली है क्योंकि इस देश की विशालता को देखते हुए किसी भी मौसम में किसी शाक-सब्जी की कमी हो जाती है और कभी इनकी बहुतायत हो जाती है। आजकल देश में प्याज की बढ़ती कीमतों को लेकर जो चिन्ता व्यक्त की जा रही है उसका कारण एक ही है कि इसकी कच्ची फसल के भंडारण को लेकर पर्याप्त आधारभूत ढांचा इसलिए नहीं है क्योंकि अपेक्षाकृत सस्ते उत्पाद समझे जाने वाले प्याज के रखरखाव पर जो खर्चा आता है उसकी भरपाई बाजार मूल्यों को देखते हुए मुश्किल हो जाती है। प्याज गरीब- गुरबे और सामान्य वर्ग के लोगों की खाद्य सामग्री के साथ ही सम्पन्न वर्ग के लोगों की थाली की भी शोभा बढ़ाती है। वैसे भारत में इसका उत्पादन कम नहीं होता है। वर्ष 2023 में इसका उत्पादन 310 लाख मीट्रिक टन होने का अन्दाजा लगाया गया है जबकि पूरे भारत में इसकी खपत प्रतिमाह 14 लाख मीट्रिक टन के लगभग रहती है। कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात व मध्य प्रदेश में सर्वाधिक प्याज का उत्पादन होता है और वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक देश है। इस हिसाब से भारत में खपत से ज्यादा ही प्याज का उत्पादन होता है मगर इसकी खेती दो ही कृषि मौसमों रबी व खरीफ में होती है। इनमें से यदि एक फसल भी प्रकृति जन्य कारण से खराब हो जाये तो प्याज की कीमतें उछाल मारने लगती हैं। इसके साथ ही प्याज के निर्यात में भी भारत अव्वल देशों में से एक है।
अतः इसका निर्यात भी जम कर होता है। मगर जब घरेलू बाजार में इसके दाम उछाले मारने लगते हैं तो सरकार निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने का काम भी करती है। जैसे कि फिलहाल केन्द्र ने प्याज के निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए इस पर 67 रु. प्रति किलों का निर्यात शुल्क लगा दिया है जिससे कम से कम प्याज देश के बाहर जाये। मगर सरकार के इन कदमों से प्याज उत्पादक किसान नाराज भी हो जाते हैं क्योंकि विदेशी बाजार में उनके उत्पाद के अच्छे दाम मिलने की वजह से उन्हें अपेक्षाकृत अधिक लाभ मिलता है। परन्तु लोकतन्त्र में सरकार का यह पहला फर्ज होता है कि वह अपने देश की आबादी का पेट भरने के लिए पहले इन्तजाम करे। भारत की आबादी 140 करोड़ के आसपास पहुंच रही है जिसे देखते हुए इसकी खाद्यान्न आवश्यकताएं भी बढ़ रही हैं।
कृषि उत्पादों के विपणन में निजी बाजार ही प्रमुख भूमिका निभाता है जिसका समीकरण आपूर्ति और सप्लाई पर निर्भर करता है। आजकल बाजार में प्याज की आवक कम होने का एक कारण यह माना जा रहा है कि विदेशों में इसकी मांग बढ़ी हुई है जिसकी वजह से निर्यात में वृद्धि हो रही थी। इसे देखते हुए सरकार ने स्वयं भी तीन लाख टन प्याज खरीदने का फैसला किया है। परन्तु इतनी खरीद से पूरे देश में दामों को संभाले रखना संभव होता नहीं दिखता। प्याज की फसल मई तक साल में दो बार होती है। रबी की फसल के भरोसे अभी तक की सप्लाई हो रही है जबकि अक्टूबर महीने में नई फसल बो दी गई है। इसे देखते हुए हो सकता है कि प्याज के थोक व्यापारियों ने माल का अच्छा भंडारण कर लिया हो और अब वे मुनाफे पर सीमित सप्लाई बाजार में दे रहे हों। बीच में बरसात का मौसम आने की वजह से खुदरा में भंडारण की हुई प्याज खराब भी हो जाती है। जिसे देखते हुए खुले बाजार में इसकी कीमतें अब आसमान छूने की तरफ जाती हुई दिखाई पड़ रही हैं। मगर बहुत समय नहीं हुआ है जबकि टमाटर के भाव भी आसमान छू रहे थे और भारत के छोटे से कस्बे में टमाटर दो सौ रु. किलो से नीचे नहीं बिक रहा था। इसकी वजह बेतरतीब बरसात को भी माना गया जिसकी वजह से स्थानीय टमाटर उत्पादकों की फसलें बर्बाद हो गईं। मगर उस समय भी सरकारी एजेंसियों ने कर्नाटक जैसे राज्यों से टमाटर की भारी खरीद कर बाजार भावों को नियन्त्रित करने का प्रयास किया। अभी नई फसल आने पर इसके भाव सामान्य हो गये हैं। मगर आलू की कीमतों में नई फसल की आवक के साथ ही भारी गिरावट देखी जा रही है और आलू किसान शिकायत कर रहे हैं कि उनकी लागत भी पूरी नहीं पड़ रही है।
उत्तर भारत की सब्जी मंडियां इस समय नये आलू की आवक से पटी पड़ी हैं जिससे सप्लाई भी भरपूर हो रही है। मगर बाजार में आपूर्ति के मुकाबले मांग कम होने पर इसके भाव जमीन पर लुढ़क रहे हैं। कृषि जन्य उत्पादों में मांग व सप्लाई का यह संकट लगातार चलता ही रहता है जिसकी वजह से किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग करते हैं। यह समर्थन मूल्य कुछ चुिनन्दा उत्पादों पर ही लागू होता खास कर खाद्यान्न अनाज पर। सब्जियों में यह संभव नहीं है। संभावना केवल यह बनती है कि आलू-प्याज जैसी आवश्यक सब्जियों के भावों को स्थिर रखने के लिए सरकार अपनी एजेंसियों के माध्यम से बाजार में हस्तक्षेप करे। कृषि चूंकि राज्यों का विषय है अतः राज्य सरकारों का यह दायित्व बनता है कि वे अपने किसानों की आर्थिक व्यवस्था मजबूत करने के लिए आवश्यक कदम उठायें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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