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फिर उठा ‘ईवीएम’ विवाद

02:50 AM Dec 07, 2023 IST
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2014 में केन्द्र मे सत्ता बदल होने के बाद देश में जितने भी चुनाव हुए हैं उनके बाद प्रायः ‘ईवीएम’ से मतदान कराने के मुद्दे पर विवाद खड़ा होता है और विपक्षी दलों द्वारा बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की जाती है परन्तु चुनाव समाप्त होने के कुछ समय बाद यह विवाद थम जाता है और राजनैतिक कारोबार पहले की भांति चलने लगता है। हालांकि यह बात भी सही है कि विपक्षी दलों ने इस बाबत चुनाव आयोग के सामने भी कई बार ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर शिकायतें व याचिकाएं दी हैं मगर चुनाव आयोग ने हमेशा ही ईवीएम मशीनों को त्रुटिहीन बताते हुए उनसे ही मतदान कराने का फैसला किया है। यह मामला याचिका के रूप में सर्वोच्च न्यायालय में भी जा चुका है जहां लम्बी व तर्कपूर्ण बहसों के बाद तत्कालीन न्यायमूर्तियों ने चुनाव आयोग के पक्ष में ही फैसला दिया मगर इतना जरूर किया कि वोटिंग मशीनों के साथ मतदाता की तसल्ली के लिए उसके देखने भर हेतु ‘रसीदी मशीनें’ लगाने का भी आदेश 2019 के चुनावों से पहले दिया। इन रसीदी मशीनों को ‘वीवी पैट मशीन’ कहा जाता है। इन रसीदी मशीनों से निकली हुई पर्चियों को गिनने का काम भी चुनाव आयोग नहीं करता है, बेशक इसकी मांग भी होती रहती है।
दरअसल भारत में किस विधि से चुनाव कराये जायें यह पूरी तरह चुनाव आयोग के विशेषाधिकार के अन्तर्गत आता है जो कि पूरी तरह पारदर्शी और पवित्रता तथा शुचिता के साथ चुनाव कराने के नियमों से बंधा हुआ है। अतः यह मामला राजनैतिक दलों का नहीं है बल्कि मतदाता और चुनाव आयोग के बीच का है। भारत में मतदान पूर्णतः गुप्त होता है अर्थात केवल मतदाता का ही अपने दिये गये मत पर पूर्ण स्वामित्व है। उसके और मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी या पार्टी के बीच में कोई भी तीसरी शक्ति भौतिक या अदृश्य रूप से नहीं आ सकती। मगर स्वर्गीय श्री राजीव गांधी के प्रधानमन्त्रित्व काल में यह कांग्रेस पार्टी ही थी जो चुनाव के जन ‘प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951’ में संशोधन करके बैलेट पेपर के साथ ही ईवीएम से भी मतदान कराने का प्रावधान लेकर आयी थी। इसके बाद चुनाव में शुरू-शुरू में ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल प्रयोग के तौर पर हुआ और बाद में चुनाव आयोग ने पूरे तरीके से ईवीएम मशीनों को अपना लिया। तब भाजपा ने भी इन मशीनों का विरोध करना शुरू किया और 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद इस पार्टी के एक कार्यकर्ता जी.एल. नरसिंम्हाराव ने ईवीएम मशीनों से चुनावों को प्रभावित करने को लेकर एक पुस्तक ‘इलैक्ट्रानिक विक्टरी मशीन’ भी लिखी और बताया कि इन मशीनों में हेर-फेर किया जा सकता है। अब नरसिम्हाराव भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं। परन्तु तब केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने ही इन आरोपों को हवा में उड़ा दिया और इस तरफ किसी प्रकार का ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी। कांग्रेस की तत्कालीन डा. मनमोहन सिंह सरकार के पास यह स्वर्ण अवसर था कि वह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में किये गये संशोधन को खारिज करने वाला एक नया संशोधन लाती और चुनावों को केवल बैलेट पेपरों से ही कराने का कानून बना देती मगर आज पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हो जाने के बाद इनमें से चार राज्यों में पराजय पाने पर कांग्रेसी नेताओं समेत कुछ अन्य विपक्षी दलों के नेता भी चिल्ला रहे हैं कि ईवीएम मशीनों का भरोसा नहीं किया जा सकता। इनकी मार्फत चुनाव नतीजे प्रभावित किये जा सकते हैं।
सवाल यह है कि तेलंगाना में भी ‘ईवीएम’ की मार्फत चुनाव हुए हैं और वहां कांग्रेस विजयी रही है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में यदि कांग्रेस पार्टी हारी है तो फिर वहां ईवीएम मशीन किस प्रकार दोषी ठहराई जा सकती है। वास्तव में यह सवाल भारत के लोकतन्त्र का है और संवैधानिक शुचिता व पवित्रता का भी है। इसको राजनीति में नहीं घसीटा जाना चाहिए क्योंकि केवल चुनाव आयोग ही राजनैतिक दलों की व्यवस्था की निगरानी करता है और निष्पक्ष रूप से चुनावों को सम्पन्न कराने के लिए बाध्य होता है। चुनाव आयोग ने कई बार सभी राजनैतिक दलों की बैठक बुलाकर इस मुद्दे पर विचार-विमर्श किया और समझाने की कोशिश की कि ईवीएम मशीनें पूरी तरह सुरक्षित हैं परन्तु विपक्षी दल तर्क देते हैं कि जिस देश ‘जापान’ ने इन मशीनों का विकास किया वह स्वयं भी अपने चुनाव बैलेट पेपर से ही कराता है और अमेरिका जैसे आधुनिकतम व टैक्नोलॉजी में अव्वल देश में भी चुनाव बैलेट पेपर से ही होता हैं। मगर ये तर्क तो तब भी थे जब 2014 तक कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी। तब इन महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विचार करने के लिए उसे न भाजपा ने रोका था और न चुनाव आयोग ने।
भारत के चुनाव आयोग व चुनाव प्रणाली की पूरे विश्व में विशिष्ट प्रतिष्ठा रही है। अतः इस विषय पर अन्तिम फैसला केवल सर्वोच्च न्यायालय ही दे सकता है इसलिए विवाद तभी हमेशा के लिए समाप्त होगा जब इसे पुनः याचिका के रूप में न्यायमूर्तियों के संज्ञान में लाया जाये और वे विवाद को समाप्त करने के लिए अन्तिम फैसला दें। बार-बार चुनाव के बाद मोदी सरकार की आलोचना करने से केवल अपनी ही जग हंसाई होगी और लोगों का शक विपक्षी दलों पर भी पैदा होगा।

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