बंदी सिखों की आड़ में राजनीति कब तक?
देश की अलग-अलग जेलों में अभी भी कुछ सिख कैदी ऐसे हैं जिनकी सजाएं पूरी होने के बावजूद सरकारों द्वारा उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा क्योंकि सरकारों को कहीं ना कहीं इस बात का भय है कि अगर उन्हें रिहा कर दिया जाता है तो देश की बहुगिनती वोट बैंक की नाराजगी उन्हें झेलनी पड़ सकती है इसलिए चाहकर भी वह इन कैदियों को रिहा नहीं कर पा रहे। जबकि देश का कानून यह कहता है कि किसी भी मुजरिम को भले ही वह किसी भी जुर्म के तहत सजा क्यों ना काट रहा हो, उसकी सजा पूरी होने के बाद उसे एक दिन भी अधिक समय तक कैद में नहीं रखा जा सकता पर ना जाने क्यों देश की अलग-अलग जेलों में आज भी अनेक सिख कैदी ऐसे हैं जिनकी सजाएं पूरी हुए 25 से 30 वर्ष हो गए हैं पर उन्हें रिहाई मिलना तो दूर पैरोल तक नहीं दी जाती। जबकि कई ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें सजायाफ्ता मुजरिमों को सरकारें पैरोल सहित अन्य सभी सुविधाएं यहां तक कि सुरक्षा तक दे देती हैं पर सिख कैदियों के साथ समय की सरकारें हमेशा से ही सौतेला व्यवहार करती आई हैं। माना जा सकता है कि जिन कैदियों को रिहाई नहीं मिली उन्होंने कोई न कोई अपराध अवश्य ऐसा किया होगा जिसके चलते उन्हें कठोर कैद हुई पर अब अगर उन्होंने सजा पूरी ली है तो निश्चित तौर पर उनका हक बनता है कि उन्हें रिहाई मिलनी चाहिए। बंदी सिखों की रिहाई ना मिलने का एक कारण यह भी है कि आज जो सिख नेता उनके नाम पर अपनी राजनीति चमकाने की फिराक में हैं उन्होंने भी अपनी सरकार के समय बंदी सिखों की रिहाई के लिए ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिसके चलते उन्हें रिहाई मिल सके।
श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह द्वारा बीते दिनों इस मसले पर 5 सदस्य टीम का गठन किया गया जिसमें शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अध्यक्ष, दिल्ली कमेटी अध्यक्ष को शामिल करने के साथ ही अकाली दल बादल के नुमाईंदे को भी शामिल कर लिया गया जिसका विरोध भी हो रहा है। बेहतर होता अगर जत्थेदार साहिब राजनीतिक लोगों के बजाए तख्त पटना साहिब, तख्त हजूर साहिब के नुमाईंदों को शामिल कर लेते। इसी तरह की एक कमेटी पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के द्वारा भी बनाई गई थी जो कि पहले दिन से ही विवादों में रही, हां फर्क सिर्फ इतना था कि उसमें शिरोमणि कमेटी को सदस्य बनाने का अख्तियार दिया गया था और इसमें सदस्यों का चयन जत्थेदार जी ने स्वयं किया है। एक ओर तो जत्थेदार अकाल तख्त देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्रियों से संवाद कर मसले का हल निकालने की बात कर रहे हैं पर वहीं दूसरी ओर शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी जिस पर कब्जा शिरोमणी अकाली दल का है उसके द्वारा दिल्ली में 20 दिसम्बर को विशाल प्रदर्शन की तैयारियां की जा रही हैं, जिससे कई सवाल खड़े होते हैं। सिख राजनीति के माहिरों का मानना है कि अकाली दल इस प्रदर्शन की आड़ में भाजपा हाईकमान को दिखाना चाहता है कि बड़ी गिनती में सिख अभी भी अकाली दल के साथ हैं इसलिए बिना अकाली दल के भाजपा पंजाब में पकड़ नहीं बना सकती। दूसरी ओर तीन राज्यों में भाजपा की शानदार जीत से पार्टी नेताओं के हौसले पूरी तरह से बुलंद हो चुके हैं, ऐसे में वह अकाली दल की बैसाखी बनने को शायद तैयार नहीं होगा। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अध्यक्ष और महासचिव साफ कर चुके हं कि शिरोमणी अकाली दल या शिरोमणि कमेटी द्वारा किये जा रहे किसी भी प्रदर्शन में वह भागीदार नहीं बनेंगे। ऐसे में देखना होगा कि जत्थेदार अकाल तख्त शिरोमणी कमेटी द्वारा किये जाने वाले प्रदर्शन को रोकते हैं या नहीं। यहां यह भी हो सकता है कि जत्थेदार अकाल तख्त की मजबूरी हो क्योंकि आखिरकार उन्हें जत्थेदार की पदवी तो शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष की बदौलत ही प्राप्त हुई है ऐसे में वह उनके खिलाफ जाकर कैसे आदेश दे सकते हैं। इससे साफ होता है कि बंदी सिखों की रिहाई की आड़ में केवल और केवल राजनीति ही होती दिख रही है, जब तक सभी सिख जत्थेबंदीयां पार्टीवाद से ऊपर उठकर निस्वार्थ भावना के साथ एकजुट होकर इस मसले को नहीं उठाती इसका कोई हल निकलने वाला नहीं है।
शिरोमणि अकाली दल में गिरावट के क्या कारण?
शिरोमणि अकाली दल की स्थापना 14 दिसंबर 1920 को हुई। सरमुख सिंह झबाल सर्वसम्मति से इसके प्रथम अध्यक्ष चुने गए। आज तक अकाली दल द्वारा अनगिनत मोर्चे लगाये गए एवं लगभग सभी में सफलता भी हासिल की। मास्टर तारा सिंह, जगदेव सिंह तलवंडी, सुरजीत सिंह बरनाला, गुरचरण सिंह टोहड़ा आदि अनेक नेताओं ने समय-समय पर अकाली दल की कमान संभाल कर सिखों की नुमाईंदगी की। अकाली दल देशभर के सिखों की एकमात्र धार्मिक जत्थेबंदी है। अकाली नेताओं ने आज़ादी के संघर्ष में भी संपूर्ण योगदान दिया, जिसकी वजह से देश को आज़ादी मिल सकी। अकाली दल ने हमेशा आगे आकर सरकारों की गलत नीतियों का विरोध किया। यही वजह रही कि पंजाब के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार ही होता आया है। चाबियों का मोर्चा, धर्म युद्ध मोर्चा सहित अनेक मोर्चे लगाकर सरकारों को घुटने टेकने पर मजबूर किया गया। समय के साथ-साथ अकाली दल भी कमज़ोर होता चला गया इसके अनेक टुकड़े हो गये। गुरचरण सिंह टोहड़ा ने अपना अलग गुट बना लिया। उसके बाद सुखदेव सिंह ढींडसा, रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा जैसे कद्दावर नेता भी पार्टी को अलविदा कह गये क्योंकि अकाली नेताओं को परिवारवाद मंज़ूर नहीं था। स. प्रकाश सिंह बादल जब तक अकाली दल की कमान संभाले रहे अकाली दल का वजूद दिखता था मगर परिवारवाद के चलते जब उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी कर अपने पुत्र को कमान सौंप दी तो वरिष्ठ नेता पार्टी से लगातार किनारा करने लगे। पार्टी को केवल सुखबीर सिंह बादल ही चलाने लगे। वैसे तो पार्टी में गिरावट तभी से दिखने लगी थी जब से अकाली दल के साथ किसी व्यक्ति विशेष का नाम जोड़ दिया गया था जो नहीं होना चाहिए था। पार्टी का अध्यक्ष आज कोई एक व्यक्ति है कल दूसरा होगा तो क्या प्रतिदिन पार्टी का नाम बदलता रहेगा? गुरु साहिब ने आदेश दिया था कि ‘‘राज बिना नहीं धर्म चले हैं, धर्म बिना सब ढले मले हैं’’ अर्थात धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए राज भी होना जरूरी है पर राज में अगर धर्म न हो तो सब तबाह हो जाता है। आज अकाली दल में गिरावट की वजह ही यही है कि धर्म के बजाये राजनीति पूरी तरह से हावी हो चुकी है। अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है सभी को एक होकर इस पर विचार करना चाहिए और अकाली दल को कायम रखना चाहिए जो सिखों की एकमात्र नुमाईंदा जत्थेबंदी है। नेताओं की आपस में लाख नाराज़गियां हो सकती हैं, मतभेद हो सकते हैं पर अगर जत्थेबंदी ही नहीं रहेगी तो सिखों का वजूद कैसे कायम रहेगा।
सिखों की सेवा को सलाम
सिख समुदाय के द्वारा वैसे तो हमेशा ही बढ़चढ़ कर सेवाएं की जाती हैं पर कई बार ऐसी सेवा देखने को मिलती है जिसकी प्रशंसा किए बिना रहा नहीं जाता। कुछ ऐसा ही नजारा राजौरी गार्डन में नगर कीर्तन के दौरान देखने को मिला। सिख यूथ फाउंडेश की पूरी टीम कप्तान हरनीक सिंह की रहनुमाई में हरे रंग की जैकेट पहने हुए नगर कीर्तन के सबसे आखिर में कूड़ा उठाकर सफाई करते दिखाई दिये। आमतौर पर देखा जाता है कि नगर कीर्तन में झाड़ू जत्थे पांच प्यारों और पालकी साहिब के आगे सफाई करते हैं पर सिख यूथ की टीम ने नगर कीर्तन में लगाए गये प्रशादि के स्टाल आदि से फैले कूड़े को उठाकर सफाई करते हुए मिसाल कायम की है नहीं तो अक्सर नगर कीर्तन निकलने के बाद सड़कों पर गंदगी का अंबार दिखाई देता है जिससे राहगीरों और स्थानीय निवासियों को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। नगर कीर्तन में स्टाल लगाने वालों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कूड़ा एकत्र करने के लिए पहले से ही इन्तजाम किये जायें जिससे कूड़ा सड़कों पर ना बिखरे। अन्य नगर कीर्तनों में भी युवाओं को आगे आकर इस तरह की सेवा को संभालना चाहिए।