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बैंकिंग सुधारों से लोगों का भरोसा बढ़ा

01:11 AM Aug 25, 2023 IST
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इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया का चमकता सितारा है। इसकी तरक्की के बहुआयामी तंत्रों में भारतीय बैंकिंग सैक्टर सबसे महत्वपूर्ण है।  बैंकिंग क्षेत्र को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। बैंकिंग क्षेत्र अर्थव्यवस्था का संकेतक होने के नाते मैक्रो आर्थिक तंत्र का प्रतिबिंब भी है। भारत में बैंकिंग क्षेत्र की संरचना किसी देश की बैंकिंग प्रणाली की तरह देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका​ निभाती है। बैंकिंग प्रणाली में केन्द्रीय बैंक से लेकर सभी बैंकिंग संस्थान शामिल हैं जो कृषि, उद्योगों, व्यापार, आवास आदि के क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। इस देश ने अनेक बैंक घोटालेे देखे हैं। बैंकों से करोड़ों का ऋण लेकर घी पीने वाले फरार हो गए। बैंकों के नुक्सान का सबसे ज्यादा असर हर उस आदमी पर पड़ा जिनकी बैंकों में राशि पड़ी होती थी।  बैंक डूबे उसके जमाकर्ताओं को अपना पैसा नहीं मिला। लोग मारे-मारे फिरते थे। घोटालों के बाद सरकार सतर्क हुई तो बैंकिंग प्रणाली में सुधार किया गया। मोदी सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों के लिए अनेक कदम उठाए।
बैंक डूबने पर खाताधारक को केवल एक लाख रुपए मिलते थे, उसे हासिल करने के लिए भी लोगों को बैंकों और सरकारी कंपनियों के धक्के खाने पड़ते थे। लोगों की हमेशा मांग रही कि बैंक डूबने की सारी जिम्मेदारी प्रबंधन और नियामक की होती है इसलिए इसका खामियाजा जनता क्यों भुगते। इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों के लिए अनेक कदम उठाए। बैंकों का एनपीए कम करने के लिए कड़े कदम उठाए। घाटे वाले बैंकों का विलय लाभ हासिल करने वाले बैंकों में किया गया। सबसे महत्वपूर्ण कदम यह उठाया गया कि बैंक डूबने पर खाताधारक को एक लाख की बजाय 5 लाख रुपए मिलेंगे। हालांकि लोग इससे भी संतष्ट नहीं क्योंकि सेवानिवृत्त हो चुके लोगों ने अपनी भविष्यनिधि का पूरा पैसा बैंकों में रखा हुआ है और जो ब्याज मिलता है उससे ही वे अपना खर्च चलाते हैं। फिर भी पांच लाख की राशि मिलना एक बड़ी राहत है। वरिष्ठ नागरिकों की शिकायत है कि बैंकों द्वारा ब्याज दरें घटाए जाने से उन्हें बचत का कुछ खास नहीं मिलता।
बैंकिंग सुधार का एक और कदम उठाते हुए मोदी सरकार के शासन में घाटे वाले बैंकों का बड़े बैंकों में विलय किया गया और उनके कामकाज को सुधारा गया। अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैैंकों द्वारा वसूली को न्यायसंगत बनाने की पहल की है। वैसे तो बैंकों को स्वयं ही न्यायपूर्ण ढंग से काम करना चाहिए और जहां भी दंडात्मक शुल्क लगाने की जरूरत है वहां तार्किकता से काम लेना चाहिए, पर आमतौर पर बैंक ऐसा नहीं करते हैं, इसीलिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को आवश्यक निर्देश जारी करना पड़ा है। ऋण पर दंडात्मक शुल्क और ब्याज दरों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक का यह कदम कारगर सिद्ध होना चाहिए। ऋण खातों में दंड शुल्क के संबंध में ये दिशा-निर्देश 1 जनवरी, 2024 से प्रभावी होंगे। हालांकि, अगर कोई वसूली गलत ढंग से या गलत मानसिकता के साथ की जा रही है तो उसे जल्द से जल्द रोकने में कोई हर्ज नहीं है। पहली जनवरी 2024 तक न जाने कितने ग्राहकों से करोड़ों रुपये बैंक गलत ढंग से वसूल लेंगे। ऐसे जरूरी आर्थिक सुधारों को जल्द से जल्द लागू करने के प्रति उदासीनता ठीक नहीं है। अपने हित में कोई नया शुल्क वसूलने में बैंक जब देरी नहीं करते हैं तब ग्राहकों के हित में किसी शुल्क सुधार के लिए उन्हें इतना समय क्यों मिलना चाहिए?
इससे पहले आरबीआई ने डिफाल्ट ऋणों के लिए भी समायोजन की नीति पेश की थी कि अगर कोई व्यक्ति ऋण नहीं चुका पाता तो बीच का रास्ता अपनाया जाना चाहिए। बैंक का मतलब क्या होता है? मोटे तौर पर समझा जाए तो ऐसी वित्तीय संस्था जहां जनता पैसा जमा करती है और उस पैसे का इस्तेमाल कर आम जनता को कई तरह के कर्ज दिए जाते हैं। कर्ज दी गई इस राशि पर जो ब्याज मिलता है उससे बैंकों की कमाई होती है लेकिन यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं होती है। व्यक्ति, समाज और देश से जुड़े सभी आर्थिक हित अपने वित्तीय लेने-देन के लिए बैंकों का ही इस्तेमाल करते हैं। इसलिए बैंकिंग का सबसे महत्वपूर्ण काम यह होता है कि वह इन सभी हितधारकों के बीच संतुलन बिठाकर अर्थव्यवस्था की गाड़ी को सही तरह से खींचती रहे और ऐसा करते वक्त बैंकों का मकसद जन कल्याण का ही रहे।
भारतीय बैंकिंग सैक्टर ने कैशलेस अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है। यूपीआई प्रणाली की सफलता ने पूरी दुनिया को हतप्रभ कर रखा है। पीएम मोदी के विजन को साकार करने और आमजन को आर्थिक रूप से सबल बनाने में बैंकों की कार्यप्रणाली सफल सा​बित हुई है। अभी तीन हफ्ते पहले ही  बैंकिंग क्षेत्र में बहुत बड़े कदम उठाये गए जिसे बैंकिंग क्षेत्र में सुधार का नाम दिया गया। 10 पब्लिक सेक्टर बैंकों को आपस में मिलाकर 4 बैंकों में बदल दिया गया। बैंकिंग सेक्टर के लिए उठाया गया यह कदम बेशक नरेंद्र मोदी के इस शासनकाल में हुआ है लेकिन इसकी सिफारिश साल 1991 में नरसिंहम समिति द्वारा की जा चुकी थी। केवल नाम के तौर देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि यह कदम नरसिंहम समिति की सिफ़ारिश पर उठाया गया है लेकिन दरअसल उस भावना से यह कदम नहीं उठाया गया है जिस भावना से नरसिंहम समिति ने इस तरह के कदम उठाने की बात की थी। इस पर बात करने से पहले मोटे तौर पर एक बार यह समझा जाए कि आज़ादी के बाद से लेकर अब तक भारत में किस तरह से बैंकिंग सुधार होते आ रहे हैं? भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया के लिए आशा की किरण है और केन्द्रीय नियामकों को इसके​ विश्वास को मजबूत बनाकर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ना होगा और देश को विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
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