India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

भारत और ब्रिक्स

01:28 AM Aug 20, 2023 IST
Advertisement
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एक लोकप्रिय वाक्य है कि हर देश को अपना हित सबसे प्यारा होता है। वैश्विक राजनीति में शक्तिशाली देश अपने-अपने गुट खड़े करने में लगे हैं। अमेरिका अपने गुट को मजबूत करने में लगा है तो दूसरी तरफ चीन और रूस भी ऐसी ही कोशिशें कर रहे हैं। यूूरोपीय देश अमेरिका के साथ खड़े हैं तो अन्य देश रूस और चीन के साथ खड़े हैं। भारत इन सब देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अमेरिका और चीन दोनों ही भारत को लुभाने की कोशिशें कर रहे हैं। ऐसे में भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। भारत ब्रिक्स संगठन का भी सदस्य है और भारत दूसरी तरफ अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान के साथ क्वाड संगठन में भी शामिल है। ब्रिक्स का गठन 2006 में किया गया था। तब रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुई शिखर बैठक में ब्राजील, भारत, रूस और चीन के नेता शामिल हुए थे। पहले इसका नाम ब्रिक था बाद में जब दक्षिण अफ्रीका इसमें शामिल हुआ तो यह ब्रिक्स हो गया। ब्रिक्स की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाने में तत्कालीन विदेशमंत्री प्रणव मुखर्जी ने बड़ी भूमिका निभाई थी। ब्रिक्स का उद्देश्य कई तरह से चुनौतियों के साथ-साथ बाजार में यूरोपीय देशों की दादागिरी का मुकाबला करने का रहा है। जबकि क्वाड का उद्देश्य हिन्द प्रशांत सागर और दक्षिणी चीन सागर में चीन की धौंसपट्टी का मुकाबला करना है। इस दृष्टि से ब्रिक्स को क्वाड का विरोधी माना जाता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 15वें ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होने के लिए 22 से 24 के बीच दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर रहेंगे। चीन लम्बे समय से ब्रिक्स के विस्तार पर बल दे रहा है। 40 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है। इनमें से क्यूबा, मिस्र, ईरान, इंडोनेशिया, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश शामिल हैं। चीन संगठन के विस्तार को लेकर पूरा जोर इसलिए लगा रहा है ताकि वह वैश्विक मामलों में पश्चिम के दबदबों को खत्म कर खुद का वर्चस्व कायम कर सके। भारत इसके विरोध में है। चीन के प्रयासों को रूस भी परोक्ष हवा दे रहा है। क्योंकि वह यूक्रेन युद्ध के कारण राजनयिक अलगाव से जूझ रहा है। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन इस सम्मेलन में भाग लेने नहीं जा रहे, वह वर्चुअली सम्मेलन से जुड़ेंगे। संगठन के विस्तार का विरोध करने वालों में ब्राजील भी शा​िमल है। चीन की मंशा ब्रिक्स में अपने करीबी देशों को शामिल कर एक नया वर्ल्ड आर्डर बनाने की है जो अमेरिका विरोधी प्रचार में उसका खुलकर साथ दे। 
चीन की इन कोशिशों से पश्चिम को डर सताने लगा है कि ब्रिक्स भविष्य में अमेरिका और यूरोपीय संघ का कट्टर प्रतिद्वंद्वी बनने की ओर बढ़ रहा है। ब्राजील इन चिंताओं के कारण ब्रिक्स के विस्तार से बचना चाहता है, जबकि भारत औपचारिक रूप से विस्तार किए बिना अन्य देश कैसे और कब समूह के करीब आ सकते हैं, इस पर सख्त नियम चाहता है। किसी भी निर्णय के लिए 22-24 अगस्त को बैठक करने वाले सदस्यों के बीच आम सहमति की आवश्यकता होगी। इस बैठक पर बारीकी से निगाह रखने वाले विशेज्ञों का कहना है कि भारत और ब्राजील शिखर सम्मेलन का उपयोग संभावित रूप से सदस्यता चाहने वाले देशों को पर्यवेक्षक का दर्जा देने पर चर्चा करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका इस विवाद से निपटने के लिए विभिन्न सदस्यता विकल्पों पर चर्चा करने का समर्थन कर रहा है लेकिन विस्तार का विरोध नहीं कर रहा।
विस्तार को लेकर भारतीय पक्ष की सबसे बड़ी चिंता यह है कि कहीं ब्रिक्स चीन केन्द्रित समूह न बन जाए। खासकर ऐसे समय में जब वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य गतिरोध के कारण नई दिल्ली और बीजिंग में संबंध सबसे निचले स्तर पर हैं। भारत को संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों को शामिल करने में कोई समस्या नहीं है लेकिन कुछ देशों के बारे में उसकी अपनी चिंताएं हैं। भारतीय पक्ष उन बदलावों पर ध्यान केन्द्रित करने की मांग कर रहा है जो समूह को मजबूती प्रदान करें। भारत का यह भी कहना है कि वह विस्तार को रोक नहीं रहा है, बल्कि वह इस संबंध में सर्वसम्मति के आधार पर विस्तार प्रक्रिया के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों, मानकों और मानदंडों और प्रक्रियाओं पर चर्चा करने का पक्षधर है। जहां तक एक आम मुद्रा बनाने के मुद्दे पर भी इस सम्मेलन में चर्चा होगी लेकिन भारत को आम मुद्रा पर युवान (चीनी करैंसी) के प्रभुत्व को लेकर भी चिंताएं हैं। भारत विस्तार प्रक्रिया में तलवार की धार पर चल रहा है। अगर चीन की इच्छा के अनुरूप विस्तार हो जाता है तो यह अमेरिका विरोधी मंच ही बन जाएगा। पूरे विश्व की नजरें इस सम्मेलन की ओर लगी हुई है। देखना होगा कि क्या होता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Next Article