भारत देगा चीन को टक्कर
रबार्कलेज पीएलसी का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था को चीन से आगे निकलने के लिए प्रति वर्ष आठ प्रतिशत वृद्धि की जरूरत है। भारत को काफी ज्यादा निवेश की जरूरत है। दक्षिण एशियाई देशों को माइनिंग, ट्रांसपोर्ट, यूटिलिटीज और स्टोरेज जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने की जरूरत है। भारत ने हाल ही के वर्षों में दूरसंचार और डिजिटल सैक्टर में ज्यादा निवेश किया है जिसका लाभ उसे मिल रहा है। निवेशक चीन के शेयर बाजार से धन निकाल कर भारत में लगा रहे हैं। कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां चीन से निकलकर भारत और अन्य देशों में उद्योग लगा रही हैं। चीन से निकलकर एप्पल, सैमसंग जैसी कई कम्पनियां भारत में आ चुकी हैं। जी-20 देशों से प्रगाढ़ संबंध कायम करके भारत अपना व्यापार भी बढ़ा रहा है। इस सबके बावजूद भारत द्वारा चीन को पछाड़ना काफी चुनौतीपूर्ण है। जरूरत इस बात की है कि भारत ज्यादा उत्पादन करे ताकि रोजगार के अवसर बढ़ें। देश में नए क्षेत्रों के साथ-साथ पारम्परिक क्षेत्रों में निवेश बढ़ाए। सैमी कंडक्टर के निर्माण में तेजी लाकर परिदृश्य बदला जा सकता है। भारत की एफडीआई के लिए अपनी नीतियों को और भी उदार बनाना होगा। अभी भी भारत के बाजारों में चीनी माल हावी है। इसका मुकाबला करने का साहस हम आज भी नहीं कर रहे।
भारत और चीन में आर्थिक वृद्धि को लेकर होड़ जरूर है, लेकिन अभी हमें बहुत लम्बा रास्ता तय करना है। लम्बे समय तक भारत को भूखे नंगे देश के रूप में जाना जाता रहा। उसके बाद भारत को एक बड़े बाजार के रूप में देखा जाने लगा, लेकिन भारत ने जिस तरीके से आर्थिक अवसरों का लाभ उठाया है, उससे भारत अब वैश्विक आर्थिक शक्ति बन चुका है। आर्थिक विशेषज्ञों के विचार काफी अलग-अलग हैं। लेकिन इतना निश्चित है कि भारत के चीन को आर्थिक टक्कर देने के कई कारण हमारे सामने हैं। कुछ समय पहले ऐसा माना जाता रहा था कि चीन की विकास की रफ्तार से दुनिया धीमी पड़ गई है। दुनियाभर के बाजार चीन के माल से पटे पड़े थे। ऐसा शोर मच गया था कि चीन जल्द ही अमेरिका को पछाड़ कर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। लेकिन कोरोना महामारी के चलते चीन की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से हिल गई। आज चीन में बेरोजगारी बहुत बढ़ चुकी है। रियल स्टेट पूरी तरह से धड़ाम हो चुका है।
पिछले साल चीन की इकोनॉमी तीन प्रतिशत की ग्रोथ से बढ़ी जो 10 सालों में सबसे कम है। चीन का एक्सपोर्ट धड़ाम से गिर गया है, सर्विस पीएमआई 8 महीने के लो पर पहुंच गया। कंपनियों पर सरकार की कार्रवाई से भी दुनिया का भरोसा चीन पर कम हुआ है। साथ ही अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ चीन का तनाव चरम पर है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका आज बेहतर स्थिति में दिख रहा है। स्ट्रॉन्ग लेबर मार्केट, कंज्यूमर खर्च में बढ़ोतरी और महंगाई में गिरावट से देश की इकोनॉमी में आत्मविश्वास की बहाली हुई है। कुछ महीने पहले तक अमेरिका के मंदी में फंसने का अनुमान लगाया जा रहा था लेकिन फिलहाल अमेरिका की इकोनॉमी उस स्थिति से बाहर निकल गई है।
अगर भारत की बात करें तो लगातार 2 साल से ऐसा हो रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था चीन की अर्थव्यवस्था के मुकाबले ज्यादा तेजी से वृद्धि कर रही है। अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7 फीसदी रहेगी, जबकि कैलेंडर वर्ष 2022 में चीन की वृद्धि दर अस्वाभाविक रूप से महज 3 फीसदी रही। इसी तरह, पिछले वर्ष भी भारत ने 9.1 फीसदी की दर के साथ चीन को मात दी, जिसकी दर 8.1 फीसदी रही। यह कोविड के लक्षण उभरने से 5 साल पहले तक (कैलेंडर वर्ष 2014-18, और उनके बाद के भारत के वित्त वर्षों में) दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले दो देशों के तुलनात्मक प्रदर्शन के बावजूद हुआ है। तब भारत ने औसत 7.4 फीसदी की वृद्धि दर के साथ पड़ोसी देश चीन को पहली बार पीछे छोड़ा, जो 7 फीसदी की वृद्धि दर ही हासिल कर पाया था। इस तरह यह कहानी चल पड़ी कि भारत दुनिया की वह बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो सबसे तेजी से वृद्धि दर्ज कर रही है और उसने तीन दशकों से इस गौरव के हकदार चीन को इस गद्दी से नीचे उतार दिया है।
आजकल आर्थक क्षेत्रों में इस बात पर गम्भीरता से चर्चा हो रही है कि क्या भारत अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चीन को पछाड़ देगा? भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी संकेतक इस समय अच्छा महसूस करने के लिए काफी हैं। वैश्विक वित्त संस्थान भी लगातार भारत की हवा बनाने में लगे हुए हैं। भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों से बुनियादी ढांचे पर अपना खर्च बढ़ाया है और चालू वित्त वर्ष में मार्च 2024 तक रिकार्ड 10 ट्रिलियन यानि 10 लाख करोड़ रुपए का आवंटन किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगले 2 वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था को 3.7 ट्रिलियन डॉलर से बढ़ाकर 5 ट्रिलियन डॉलर करने की अपनी महत्वाकांक्षा को लेकर दिन-रात एक कर रहे हैं। चीन की अर्थव्यवस्था भारत से 7 गुणा बड़ी है। चीन की तुलना में भारत की प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ रही है। मॉर्गन स्टेनली ने अपनी रिपोर्ट में भारत को एशिया के सबसे उभरते बाजारों की सूची में पहले नम्बर पर रखा है। रिपोर्ट के अनुुसार भारत में ढांचागत विकास की तेजी, बढ़ते विदेशी निवेश, मजबूत राजनीतिक नेतृत्व, मध्यम वर्ग की बढ़ रही क्रय शक्ति और कार्पोरेट सैक्टर का विकास भारत की अर्थव्यवस्था की ताकत को बढ़ा रहे हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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