मणिपुरः हिंसा पर लगे लगाम
जिस फैसले के कारण पिछले वर्ष 27 मार्च को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें अब तक 200 से ज्यादा नागरिक मारे जा चुके हैं और 50 हजार के लगभग लोग विस्थापित हो चुके हैं, उस फैसले को ही मणिपुर हाईकोर्ट ने पलट दिया है। मणिपुर हाईकोर्ट ने अपने ही पुराने आदेश के उस पैराग्राफ को हटाने का आदेश दिया है जिसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में शामिल करने पर विचार करने का आदेश दिया गया था। मणिपुर हाईकोर्ट ने पिछले वर्ष जून माह में विवादित आदेश में संशोधन के लिए पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया था। इस मामले में राज्य और केन्द्र सरकार से जवाब मांगा गया था। याचिकाकर्ता उस आदेश के एक हिस्से में संशोधन चाहता था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश है कि किसी समुदाय को एसटी का दर्जा देने के लिए सूची में शामिल करना या निकालना संसद या राष्ट्रपति का विशेषाधिकार है। ऐसे में अदालत द्वारा दिए गए निर्देश उसका पालन नहीं करते। पिछले वर्ष 3 मई को हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य में विरोध प्रदर्शन हुआ था। जिसके बाद घाटी में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय और पहाड़ी इलाकों में बहुसंख्यक कुकी-जोमी समुदाय के लोगों के बीच जातीय हिंसा शुरू हो गई थी। इस जातीय हिंसा के दौरान महिलाओं को निर्वस्त्र कर उनकी परेड कराए जाने की घटना ने न केवल शर्मसार किया बल्कि इस िघनौने और क्रूरतम कांड पर देशभर में तूफान खड़ा हो गया था।
मणिपुर हिंसा की आग में झुलसने लगा। हालात ऐसे उत्पन्न हो गए कि उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी करने पड़े। ट्रेनें और बसें ठप्प हो गईं। इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी लगानी पड़ी। धर्मस्थल जला दिए गए। राज्य की सबसे बड़ी जनजाति कुकी समुदाय ने मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने का जमकर विरोध किया। अब तक भी हिंसा खत्म नहीं हुई है। हिंसा के कारणों में केवल मैतेई समुदाय को मिलने वाला आरक्षण ही एक मात्र कारण नहीं है। साथ ही यह लड़ाई जमीन पर वर्चस्व स्थापित करने और ड्रग्स की भी है।
मणिपुर में 16 जिले हैं। राज्य की जमीन इंफाल घाटी और पहाड़ी जिलों के तौर पर बंटी हुई है। इंफाल घाटी मैतेई बहुल है। मैतेई जाति के लोग हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। पहाड़ी जिलों में नागा और कुकी जनजातियों का वर्चस्व है। हालिया हिंसा चुराचांदपुर पहाड़ी जिलों में ज्यादा देखी गई। यहां पर रहने वाले लोग कुकी और नागा ईसाई हैं। चार पहाड़ी जिलों में कुकी जाति का प्रभुत्व है। मणिपुर की आबादी लगभग 28 लाख है। इसमें मैतेई समुदाय के लोग लगभग 53 फीसद हैं। मणिपुर के भूमि क्षेत्र का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं लोगों के कब्जे में है। ये लोग मुख्य रूप से इंफाल घाटी में बसे हुए हैं। कुकी जातीय समूह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का विरोध कर रही है। कुकी जातीय समूह में कई जनजातियां शामिल हैं। मणिपुर में मुख्य रूप से पहाड़ियों में रहने वाली विभिन्न कुकी जनजातियां वर्तमान में राज्य की कुल आबादी का 30 फीसद हैं। कुकी जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने का विरोध करती आई है। इन जनजातियों का कहना है कि अगर मैतेई समुदाय को आरक्षण मिल जाता है तो वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले से वंचित हो जाएंगे।
कुुकी जनजातियों का मानना है कि आरक्षण मिलते ही मैतेई लोग अधिकांश आरक्षण को हथिया लेंगे। दूसरी तरफ मैतेई समुदाय का कहना है कि 1949 में जब मणिपुर का भारत में विलय हुआ, उससे पहले मैतेई को जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। दलील यह थी कि मैतेई को जनजाति का दर्जा, इस समुदाय, पूर्वजों की जमीन, परम्परा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए जरूरी है। सवाल यह भी उठा कि उन्नत और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा कैसे मिल सकता है। कुकी समुदाय की यह भी आशंका रही कि मैतेई समुदाय उनकी सारी जमीन भी हड़प लेंगे। मणिपुर की वीरेन सरकार ने राज्य में अफीम की अवैध खेती के खिलाफ जबरदस्त अभियान चलाया। 13 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर कुकी-चिन समुदाय के लोग अफीम की खेती करते हैं। करीब 2300 एकड़ जमीन पर नागा खेती करते हैं। बाकी 35 एकड़ जमीन पर बाकी समुदाय के लोग अफीम की खेती करते हैं। जिसकी वजह से मणिपुर में बहुत बड़ा ड्रग कल्चर खड़ा हो चुका है। जब सरकार ने अफीम की खेती पर क्रैकडाउन किया तो समुदाय में आक्रोश की लहर फैल गई और हिंसा शुरू हो गई। हिंसा ने कुकी और मैतेई समुदाय को बांट कर रख दिया। सामाजिक खाई इतनी ज्यादा चौड़ी हो चुकी है कि उसे पाटना मुश्किल हो चुका है। स्थिति को देखकर यह भी कहा जाता रहा है कि राज्य में लगभग गृह युद्ध की स्थिति है। सेना की तैनाती के बावजूद हिंसा पर काबू नहीं पाया जा सका है। मणिपुर हाईकोर्ट के हाल ही के फैसले का कुकी संगठनों ने स्वागत किया है जबकि मैतेई समुदाय का कहना है कि वह एसटी दर्जे के लिए आंदोलन जारी रखेंगे। अब जबकि विरोध का मुद्दा ही खत्म हो चुका है, इसलिएअब यह जरूरी है कि दोनों समुदायों में दूरियां पाटने के लिए राज्य सरकार जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों को हर सम्भव प्रयास करने होंगे। अब क्योंकि लोकसभा चुनाव आने वाले हैं इसलिए राज्य में शांति स्थापना बहुत जरूरी है। बेहतर यही होगा कि राज्य में शांति बहाली का काम वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर किया जाए। अगर वोट बैंक की राजनीति की गई तो शांति स्थापना का सपना पूरा नहीं होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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