मणिपुर में शांति की तलाश
मणिपुर में हिंसा के लगभग 6 महीने बाद अपने ही राज्य में शरणार्थी हुए लोग जिन्दगी और शांति की तलाश कर रहे हैं। जलते-सुलगते राज्य को आज ऐसे व्यक्तित्व की जरूरत है जो बस्ती-बस्ती जाकर महसूस कर सके कि लोगों की वास्तविक पीड़ा क्या है। इतनी भयानक, वीभत्स आपसी हिंसा आखिर समाज में इतने भीतर तक कैसे पैठ कर गई, कब पैठ गई। मणिपुर की समस्या का हल राजनीतिज्ञों से ज्यादा मणिपुर के लोग ही निकाल सकते हैं। आज भी राज्य में तनावपूर्ण शांति है। मणिपुर का फट पड़ना इस बात का प्रमाण है कि समस्याओं का निराकरण करने की बजाय उन्हें नजरंदाज करना अंततः सामाजिक संघर्ष को ही बढ़ाता है। मणिपुर में घर जलाए गए, धर्मस्थल जलाए गए, चर्च जला दिए गए। अब केवल शांति की अपीलें की जा रही हैं। मरघट तो वैसे भी शांत ही रहता है। सांस्कृतिक और सामाजिक समस्याओं का निराकरण मात्र सियासत से नहीं हो सकता। मणिपुर की छवि एक बेहद कलात्मक राज्य की रही है लेकिन अब समस्या यह है कि यहां के लोगों में नृत्य जैसी लयात्मकता अब दिखाई नहीं देती। कुकी और मैतेई समुदाय आज भी आमने-सामने खड़ा है।
सवाल यह भी है कि छोटे से राज्य में लोगों के पास घर-घर हथियार कैसे पहुंचे और क्यों पहुंचे। राज्य सरकार ने मई की शुरूआत में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जातीय संघर्ष को देखते हुए पुलिस और राज्य के शस्त्रागारों से लूटे गए हथियारों की बरामदगी के संबंध में एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लूटे गए हथियारों में से केवल एक चौथाई यानि 25 प्रतिशत ही बरामद हो सके। वहीं 5 प्रतिशत से भी कम गोला बारूद ही बरामद किया जा सका है। लूटे गए लगभग 5600 हथियारों में से करीब 1500 बरामद कर लिए गए हैं और गायब हुए 6.5 लाख राउंड गोला बारूद में से लगभग 20 हजार अब तक पुलिस के पास आ गए हैं। ऐसा तब है जब राज्य के मुख्यमंत्री वीरेन सिंह बार-बार अवैध हथियारों के साथ पाए जाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की बात कह रहे हैं। लूटे गए हथियारों में से लगभग 80 प्रतिशत हथियार तीन जिलों इंफाल पूर्व, चुराचांदपुर और विष्णुपुर में स्थित पुलिस और राज्य शस्त्रागार से थे। इन तीन जिलों के बीच, इंफाल पूर्व में 3,500 से अधिक चोरी हुए हथियारों (कुल 5,600 में से) और लगभग 4 लाख लूटे गए गोला-बारूद (लगभग 6.5 लाख में से) के साथ सबसे आगे है। मणिपुर राइफल्स की 7वीं बटालियन, 8वीं इंडिया रिजर्व बटालियन (दोनों खाबेइसोई गांव में) और मणिपुर पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज (पांगेई गांव में) के परिसर इंफाल पूर्वी जिले में स्थित है। विष्णुपुर और चुराचांदपुर जिलों के शस्त्रागारों से लगभग 1,000 हथियार (5,600 में से) चोरी हुए।
लूटपाट की घटनाओं के बाद से राज्य सरकार ने सभी शस्त्रागारों की सुरक्षा के लिए केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों को तैनात कर रखा है। जातीय हिंसा के बाद सरकार की सख्ती के चलते हजारों लोगों ने अपने हथियार पुलिस के पास जमा भी करवाए हैं। इसके बावजूद राज्य में हथियारों और गोला बारूद की मौजूदगी खतरे के संकेत ही देते हैं। अगस्त महीने में 45 गाड़ियों में सवार होकर और पैदल आए 500 के लगभग उपद्रवियों ने आईआरबी के हैडक्वाॅटर से 400 से अधिक घातक हथियार लूट लिए थे। अगस्त से पहले भी कई शस्त्रागार लूटे गए। सवाल उठता है कि मणिपुर के अधिकांश हिस्सों में सेना, असम राइफल्स, अर्धसैनिक बल और लोकल पुलिस की तैनाती के बावजूद उपद्रवी हथियार लूटने में कैसे कामयाब हो जाते हैं। अब यह कहा जा रहा है कि मणिपुर की हिंसा में विदेशी ताकतों का हाथ है। म्यांमार, बंगलादेश में बैठे उग्रवादी समूहों का राज्य में मौजूद उग्रवादी तत्वों से सांठगांठ है। भारत-म्यांमार सीमा पर निगरानी किसी भी कीमत पर सख्त होनी चाहिए।
पूर्वोत्तर में अलगाववादी ताकतों के फिर से सिर उठाने की आशंका को नजरंदाज करना समझदारी नहीं होगा, खासकर मणिपुर में जो कुछ हो रहा है, उसे देखते हुए, असम राइफल्स सीमा सुरक्षा के लिए कोई अतिरिक्त यूनिट्स नहीं दे पाएगा। इसलिए, विशेष रूप से सीमा सुरक्षा के लिए असम राइफल्स के अलावा किसी अन्य बल को तैनात करना समझदारी होगी। गहरे ऐतिहासिक जुड़ाव, पूर्वोत्तर के इलाके, संस्कृति और लोकाचार का ज्ञान और उस क्षेत्र में विद्रोहियों और अलगाववादियों के खिलाफ काम करने का व्यापक अनुभव वाला असम राइफल्स इस भूमिका में अधिक प्रभावी होगा, इससे उचित सीमा सुरक्षा सुनिश्चित करने के अलावा पूर्वोत्तर में आंतरिक सुरक्षा स्थिति को बेहतर बनाने में काफी मदद मिलेगी। भारत-बंगलादेश और भारत-पाकिस्तान सीमाओं पर त्रिपुरा और मिजोरम में भारत-म्यांमार सीमाओं के समान सीमा सहित विभिन्न इलाकों में सीमा सुरक्षा में 57 वर्षों से अधिक अनुभव वाला बीएसएफ भारत-म्यांमार सीमा की रक्षा करने का कार्य सौंपे जाने के लिए सबसे सही संगठन है।
सीमा पर बीएसएफ तैनात करने का निर्णय म्यांमार से किसी भी अवैध प्रवास को रोकने के लिए बेहद महत्वपूर्ण होगा बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी। सत्ता के पास बल प्रयोग ही एकमात्र उपाय बचा रहता है। पिछले करीब 5 दशकों से आंख मिचौली का खेल चल रहा है। सशस्त्र सेना विशेष अधिकार नियम भी कोई समाधान नहीं कर पाया। मणिपुर में अगर शांति स्थापित करनी है तो उसे संस्कृति की ओर लौटना होगा। संस्कृति से ही आपसी तालमेल और भाईचारा कायम हो सकता है। राज्य सरकार और राजनीतिक दलों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आपसी सौहार्द बढ़ाने के उपाय करने होंगे। इसके लिए सभी समुदायों में इस बात का भरोसा दिलाना होगा कि उनके हितों को भविष्य में कभी कोई नुक्सान नहीं पहुंचेगा। मणिपुर के गुलशन में फिर से फूल खिलें ऐसे प्रयास करने होंगे। सवाल यही है कि ऐसा कौन करेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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