मथुरा विवाद: सच आएगा सामने
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का पवित्र स्थान है। वैसे तो मथुरा में हजारों मंदिर हैं लेकिन श्रीकृष्ण जन्मस्थली और कुछ अन्य मंदिर सदियों से विशेष महत्व रखते हैं। लम्बे इंतजार के बाद अयोध्या में भव्य राम मदिर का निर्माण पूरा होने जा रहा है। काशी विश्वनाथ धाम परिसर में स्थित ज्ञानवापी का सर्वेक्षण भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) द्वारा किया जा चुका है और अब मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद के विवादित स्थल के एएसआई सर्वेक्षण कराने की स्वीकृति देकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। इसके साथ ही अदालत ने हिन्दू पक्ष की याचिका स्वीकार करते हुए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने का भी आदेश दिया है। अब 18 दिसम्बर को सर्वेक्षण की रूपरेखा तय होगी। 350 वर्ष का फासला तय करने के बाद श्रीकृष्ण विराजमान अपनी बची हुई 2.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक हासिल करने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। हिन्दुओं को भी उम्मीद है कि एएसआई सर्वेक्षण से सच सामने आ जाएगा। पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक का है। इस जमीन के 11 एकड़ में श्रीकृष्ण जन्मभूमि बनी है, वहीं 2.37 एकड़ हिस्सा शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। हिन्दू पक्ष का दावा है कि पूरी जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि की है।
इस पूरे विवाद की कहानी 1670 से शुरू हुई, जब मुगल शासक औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान कहे जाने वाले क्षेत्र को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया। जिस मंदिर को ध्वस्त किया गया उसे 1618 में बुंदेल राजा यानी ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने 33 लाख मुद्राओं में बनवाया था। वहीं एक खबर के मुताबिक मुगल दरबार में आने वाले इटालियन यात्री निकोलस मनुची ने अपनी किताब 'मुगलों का इतिहास' में बताया है कि कैसे रमज़ान के महीने में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को ध्वस्त किया गया और वहां ईदगाह मस्जिद बनाने का फरमान जारी हुआ।
कहा जाता है कि मुगलों का राज होने की वजह से यहां हिंदुओं के आने पर रोक लगा दी गई, नतीजा ये हुआ कि 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं के बीच जंग हुई जिसमें मराठाओं की जीत हुई, इसके बाद वहीं पर मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण किया। कहा जाता है कि मराठाओं ने ईदगाह मस्जिद के पास ही 13.37 एकड़ ज़मीन पर भगवान केशवदेव यानी श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाया, लेकिन धीरे-धीरे ये मंदिर भी जर्जर होता चला गया, कुछ सालों बाद आए भूकंप में मंदिर ध्वस्त हो गया और ज़मीन टीले में बदल गई, फिर 1803 में अंग्रेज मथुरा आए और 1815 में उन्होंने कटरा केशवदेव की जमीन को नीलाम कर दिया, इसी जगह पर भगवान केशवदेव का मंदिर था। बनारस के राजा पटनीमल ने इस जमीन को खरीदा।
1920 और 1930 के दशक में ज़मीन खरीद को लेकर विवाद शुरू हो गया। मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि अंग्रेज़ों ने जो ज़मीन बेची, उसमें कुछ हिस्सा ईदगाह मस्जिद का भी था। फरवरी 1944 में उद्योगपति जुगल किशोर बिरला ने राजा पटनीमल के वारिसों से ये ज़मीन साढ़े 13 हज़ार रुपये में खरीद ली, आज़ादी के बाद 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना और ये 13.37 एकड़ जमीन कृष्ण मंदिर के लिए इस ट्रस्ट को सौंप दी गई।
उद्योगपतियों द्वारा दिए गए चंदे के पैसों से साल 1953 के अक्टूबर से 1958 तक राम कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का निर्माण चला और इसे शाही ईदगाह से बिल्कुल सटाकर बनाया गया। इसके बाद साल 1958 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संस्थान नाम की एक संस्था का गठन हुआ, हालांकि कानूनी तौर पर इस संस्था का 13.37 एकड़ ज़मीन पर हक नहीं है। 12 अक्तूबर 1968 का दिन एक महत्वपूर्ण दिन था, जब श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्ज़िद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक ऐतिहासिक समझौता किया, इसमें तय हुआ कि 13.37 एकड़ ज़मीन पर मंदिर और मस्ज़िद दोनों बने रहेंगे। हालांकि श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट आज भी इस समझौते को धोखा बताता है।
मान्यता है कि मथुरा कारागार यानि कृष्ण जन्म स्थान पर सबसे पहले मंदिर का निर्माण श्री कृष्ण पड़पौत्र प्रद्युमन के बेटे अनिरुद्ध के पुत्र ने ही करवाया था। मथुरा नगर, वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, बरसाना और नंदगांव का अस्तित्व तो श्रीकृष्ण के जन्म से भी पहले से है। पौराणिक इतिहास चीख-चीख कर कह रहा है कि पूरी भूमि मंदिर की है और वहां हिन्दू धर्म से जुड़े चिन्ह भी माैजूद हैं। हिन्दू पक्ष ने दावा किया है कि भगवान कृष्ण की जन्मस्थली उस मस्जिद के नीचे मौजूद है और ऐसे कई संकेत हैं जो यह साबित करते हैं कि वह मस्जिद एक हिन्दू मंदिर है। याचिका में कहा गया है कि वहां कमल के आकार का एक स्तम्भ है, वहां शेषनाग की एक प्रतिकृति है, जिन्होंने जन्म की रात भगवान कृष्ण की रक्षा की थी। मस्जिद के स्तम्भ के आधार पर हिन्दू धार्मिक प्रतीक है जो नक्काशी में साफ-साफ दिखाई देते हैं।
मैं बार-बार लिखता रहा हूं कि मुस्लिम भाइयों को ज्ञानवापी क्षेत्र और श्रीकृष्ण जन्मभूमि हिन्दुओं को सौंप देनी चाहिए और भारत की एकता और गंगा जमुनी तहजीब में इजाफा देने के लिए अपना बड़ा दिल दिखाना चाहिए। आज के दौर में मुस्लिम भाइयों की यह फराखदिली देश की सियासत की फिजा को खुशनुमा बना देगी। मुस्लिम भाई इतिहास के सच को स्वीकार करें और भारतीय संस्कृति का सम्मान करते हुए अपना बड़ा दिल दिखाएं। अतः काशी और मथुरा का विवाद दोनों सम्प्रदाय बैठकर सुलझा सकते हैं। क्योंकि अब मामला एएसआई सर्वेक्षण के निष्कर्षों और कोर्ट के फैसले पर निर्भर करता है। इसलिए किसी भी पक्ष को उत्तेजित न होकर न्यायालय के फैसले का सम्मान करने की बात कहनी चाहिए, जैसा अयोध्या के मामले में हुआ है।