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महिलाओ को मिला उनका हक

02:30 AM Sep 22, 2023 IST
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महिला आरक्षण विधेयक 27 साल की लम्बी प्रतीक्षा के बाद अब संसद से पारित होकर कानून बनने की प्रक्रिया में पहुंच गया है। 1996 में पहली बार श्री देवेगौड़ा की सरकार के दौरान जब इस विधेयक को पहली बार संसद में लाया गया था तो इसका भारी विरोध हुआ था। हालांकि श्री देवेगौड़ा ने 2001 में जनगणना कराने के प्रस्ताव को भी हरी झंडी दे दी थी। उसके बाद स्व. वाजपेयी की सरकार के दौरान भी 1998 से कई बार प्रयास हुए मगर हर बार असफलता ही हाथ लगी। मगर 2010 में डा. मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान यह राज्यसभा में 33 प्रतिशत आरक्षण सीमा के साथ भयंकर शोर-शराबा और हंगामा होने के बाद मार्शल-पुलिस के साये में पारित हुआ। उस समय सत्ताधारी कांग्रेस, विपक्षी पार्टी भाजपा और दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों ने इसका समर्थन किया और समाजवादी पार्टी, जनता दल (यू) और राष्ट्रीय जनता दल ने इसका कड़ा विरोध किया था। उनके विरोध का मुख्य कारण यह था कि ये दल 33 प्रतिशत आरक्षण के बीच पिछड़ी जाति की महिलाओं का भी आरक्षण चाहते थे। इन दलों का कहना था कि महिलाओं के लिए दिये जा रहे आरक्षण का लाभ वे ही महिलाएं उठा ले जायेंगी जो या तो राजनैतिक परिवारों से आती हैं अथवा शहरों में पढ़ी-लिखी हैं। इसमें गांवों की गरीब महिलाओं को कोई भागीदारी नहीं मिलेगी।
महिला आरक्षण विधेयक पारित हो जाने के बाद यह सवाल आज भी जस का तस बना हुआ है मगर इसके बावजूद वह बन्धन तो टूटा है जो पिछले 27 साल से खासतौर से 2010 के बाद से बन्धा हुआ था और राज्यसभा की मंजूरी के बावजूद यह लोकसभा में पारित नहीं हो पा रहा था। इस बार लोकसभा से ही मोदी सरकार ने शुरूआत की और राज्यसभा ने भी इसे पारित किया। विधेयक में अनुसूचित जाति व जन जाति की महिलाओं के लिए भी 33 प्रतिशत आरक्षण होगा। इसका मतलब यह हुआ कि इन जातियों का लोकसभा व विधानसभाओं में जो 22.5 प्रतिशत प्रतिनिधि चुनने का कोटा है उसे 33 प्रतिशत महिलाएं होंगी लेकिन यह कानून 2029 के चुनावों से पहले लागू नहीं हो सकेगा इसका विस्तार से वर्णन गृहमंत्री श्री अमित शाह ने लोकसभा में करके यह सिद्ध किया कि संसद में उन जैसा पारंगत संसदीय विद्वान भाजपा के पास है जिसमें उलझे हुए पेचीदा सवालों का सरल जवाब पेश करने की गजब की क्षमता है। भाजपा को बहुत दिनों बाद कोई विद्वान सांसद मिला है। खास कर अटल जी और श्री अडवानी के बाद।
श्री शाह ने बताया कि महिला आरक्षण को लागू करने के लिए पहले जनगणना और चुनाव क्षेत्र परिसीमन आयोग की जरूरत क्यों पड़ेगी? 2026 तक लोकसभा की सदस्य संख्या जाम की हुई है। इस आशय का विधेयक 2001 में पारित किया गया था। 2021 में जो जनगणना होनी थी वह कोराेना काल की वजह से टाल दी गई। अब 2024 में लोकसभा चुनाव हैं। नई जनगणना इन चुनावों के बाद ही 2025 से शुरू की जा सकती है। इसके परिणाम के बाद परिसीमन आयोग का गठन होगा और वह भी जनगणना के अनुसार लोकसभा की सदस्य संख्या में वृद्धि करेगा जिसमें से 33 प्रतिशत महिलाओं का आरक्षण किया जायेगा। यह परिसीमन आयोग तय करेगा कि कौन सी सीट महिला के लिए आरक्षित की जाये। उसका फैसला निर्विवाद होता है क्योंकि उसके निर्णय को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। कांग्रेस की मांग है कि आरक्षण अभी से लागू किया जाये। यह काम यदि चुनाव आयोग की मदद से सरकार करती है तो उसके फैसले को पक्षपातपूर्ण माना जा सकता है। उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। मसलन किसी बड़े नेता की सीट यदि महिला के लिए आरक्षित कर दी जाती है तो भारी राजनैतिक विवाद खड़ा हो सकता है। अतः इस स्थिति को टालने के लिए ही संविधान में परिसीमन आयोग का प्रावधान किया गया है। यह प्रावधान मूल रूप से अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षित की जाने वाली सीटों के लिए था। अब महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें भी इसके दायरे में आ जाएंगी। मगर फिलहाल आरक्षण 15 वर्ष के लिए ही होगा और बाद में इसके बढ़ाये जाने का दारोमदार संसद पर ही होगा।
वास्तव में महिलों की संसदीय प्रणाली में शिरकत बढ़ाने के लिए भारत में बहुत लम्बे अर्से से बहस गैर सरकारी मंचों पर चलती रही है। इस सपने को पहली बार स्व. राजीव गांधी ने पंचायती राज प्रणाली में और स्थानीय निकायों में 1989 में साकार किया था। इसके बाद विधानसभाओं व लोकसभा में भी वाजिब शिरकत देने की बात उठने लगी जिसे अब 2023 में जाकर पूरा किया गया। लोकसभा में यह विधेयक लगभग सर्वसम्मति 454 व 2 के मुकाबले से पारित हुआ। अतः इसे पारित करने का श्रेय देश के सभी प्रमुख राजनैतिक दलों को दिया जाना चाहिए। बेशक बहस में सत्ता पक्ष व विपक्ष की ओर से श्रीमती सोनिया गांधी व राहुल गांधी ने पिछड़ी जातियों की महिलाओं के कोटे की पुरजोर वकालत की है मगर अंत में उनकी पार्टी ने विधेयक का समर्थन करके अपने राष्ट्रीय दायित्व को निभाने और महिलाओं के हक में लड़ने का परिचय उसी प्रकार दिया है जिस प्रकार विधेयक पेश करने वाली पार्टी भाजपा ने। अतः महिलाओं को उनका अधिकार देकर राजनैतिक जगत ने अपने सम्यक दायित्व को निभाया है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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