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महुआ मोइत्रा और ममता दीदी

05:52 AM Nov 15, 2023 IST
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तृणमूल कांग्रेस की नेता सुश्री महुआ मोइत्रा को इस पार्टी की नेता ममता दीदी ने प. बंगाल के नदिया जिले का पार्टी अध्यक्ष बना दिया है। इसे लेकर राजनीतिक क्षेत्रों में इस वजह से आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है क्योंकि महुआ मोइत्रा पर संसद में प्रश्न पूछने के मामले में भाजपा सांसद निशिकान्त दुबे ने जिस प्रकार के आरोप लगाये और उन पर एक संसद सदस्य के रूप में अनुचित आचरण करने की बात कही, उन्हें लेकर संसद की आचार समिति ने जांच की और अपनी तुरत-फुरत की गई जांच में इसने पाया कि सुश्री महुआ ने अपने सांसद के रूप में प्राप्त किया गया अपना इंटरनेट का लाॅगइन पासवर्ड अनधिकृत रूप से एक पूंजीपति दर्शन हीरा नन्दानी को दिया। हीरा नन्दानी ने इस पासवर्ड का उपयोग करके महुआ मोइत्रा को संसद में कुछ सवाल पूछने के लिए भेजे जिन्हें उन्होंने लोकसभा में पूछा भी। आचार समिति ने महुआ के इस आचरण को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखते हुए इसे राष्ट्रीय सुरक्षा तक से जोड़ दिया और बहुमत से फैसला किया कि उनकी लोकसभा सदस्यता समाप्त कर दी जाये परन्तु राजनीति ऐसा विज्ञान माना जाता है जिसमें ऊपर से दिखाई पड़ता है वह शत- प्रतिशत भीतर से नहीं होता है। सुश्री मोइत्रा ने आचार समिति की जांच का बीच में ही बहिष्कार यह कहते हुए किया कि उनसे जो सवाल पूछे गये वे उनके निजी जीवन के बारे में इस तरह के थे कि किसी भी स्त्री को उनका विवरण देते हुए लाज व शर्म लगेगी। उन्होंने इसे अपने ‘वस्त्र हरण’ के समकक्ष तक रख दिया। महुआ मोइत्रा के इस कड़े व स्पष्ट रुख की वजह से आम जनता के बीच जो सन्देश गया उससे आचार समिति को लेकर ही लोगों के दिमाग में भ्रम का वातावरण बन गया क्योंकि जब महुआ से आचार समिति सवाल पूछ रही थी तो समिति में शामिल विपक्षी दलों के सांसदों ने भी इसका विरोध किया था और बहिष्कार तक किया था। लोकतन्त्र की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि इसमें किसी भी हकीकत को लम्बे समय तक जनता से छिपाया नहीं जा सकता। वैसे तो संसदीय समितियों की रिपोर्ट संसद की सम्पत्ति होती है और इनकी रिपोर्ट नियमानुसार तब तक सार्वजनिक नहीं की जा सकती जब तक कि उसे संसद में पेश न कर दिया जाये। मगर महुआ के मामले में सभी नियम धराशायी होते गए। लोकसभा अध्यक्ष को रिपोर्ट सौंपने से पहले ही आचार समिति की रिपोर्ट मीडिया को ‘लीक’ हो गई जिससे नियमानुसार यह मामला भी संसद के विशेषाधिकार हनन का बन जाता है। मगर आम जनता को इस बात पर भी कम आश्चर्य नहीं था कि जब महुआ मोइत्रा तृणमूल कांग्रेस सांसद की हैसियत से अपनी लड़ाई लड़ रही थीं तो इस पार्टी की नेता ममता दीदी ने उन्हें बिल्कुल अकेला छोड़ दिया था। पार्टी का कोई भी अधिकारिक प्रवक्ता इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल रहा था और ममता दी समेत सभी ने अपने होंठ सिल रखे थे परन्तु जब महुआ ने अपनी लड़ाई अकेले ही लड़कर आम जनता के बीच अपने प्रति सहानुभूति प्राप्त करने की तरफ कदम बढ़ाये तो ममता दी ने उन्हें लपकने में क्षण भर की देरी भी नहीं लगाई। इस दौरन ये अपवाहें भी तेजी से उड़ने लगीं थीं कि महुआ मोइत्रा आगामी लोकसभा चुनावों से पहले ही तृणमूल कांग्रेस छोड़कर असली कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर लेंगी परन्तु ममता दी ने इसका अवसर महुआ को देना उचित नहीं समझा और उन्हें पुनः संगठन में वही पद देने की घोषणा कर दी जिस पर वह पहले भी रह चुकी थीं। महुआ मोइत्रा कृष्णानगर जिला पार्टी की अध्यक्ष रही थीं। अब नदिया जिला इसी से काट कर अलग कर दिया गया है और महुआ को इसका अध्यक्ष बना दिया गया है। महुआ मोइत्रा की सांसदी जानी तय मानी जा रही है क्योंकि आचार जांच समितियों की सिफारिशों को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा स्वीकार करने की पुरानी परंपरा है। ममता दी ने महुआ को अपनी पार्टी में ही रोके रखने का जो निर्णय लिया उसके भी कई पहलू हैं। बेशक तृणमूल कांग्रेस प. बंगाल की सत्तारूढ़ व बलशाली पार्टी है। यह कांग्रेस की सदस्यता वाले ‘इंडिया गठबन्धन’ में भी शामिल है परन्तु लोकसभा के चुनाव देश में केन्द्र की सरकार बनाने के लिए होंगे । इन चुनावों में क्षेत्रीय दलों की बहुत सीमित ही भूमिका होती है । देश की सरकार के लिए ममता दी कोई प. बंगाल परक विमर्श राज्य की जनता के गले नहीं उतार सकतीं क्योंकि मतदाताओं के सामने दो विकल्प स्पष्ट होने जा रहे हैं। ये विकल्प विमर्श रूप में भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस के ही होंगे। भारत के लोगों को इन दो में से एक ही विमर्श चुनना होगा। क्षेत्रीय दलों की भूमिका निश्चित रूप से इन विमर्शों के सहायकों की होगी परन्तु वे किसी भी सूरत में अग्रणी भूमिका में नहीं आ पायेंगे। जबकि महुआ मोइत्रा ने संसद में जो लड़ाई लड़ी है उसके केन्द्र में राष्ट्रीय विमर्श है जो कि भारत की आर्थिक नीतियों से जुड़ा हुआ है। अतः महुआ को तृणमूल कांग्रेस में ही रोके रखना ममता दी की मजबूरी थी। लोकतन्त्र में राजनीति के जितने भी रंग हो सकते हैं वे इस तरह की राजनीति में निखर कर जनता के सामने किसी न किसी रूप में आ ही जाते हैं। इसीलिए इसे दुनिया की सबसे बेहतरीन प्रशासन प्रणाली कहा जाता है।

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