मिजोरमः नया क्षेत्रीय दल जीता
चार राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद सोमवार को उत्तर पूर्व के राज्य मिजोरम से जो चुनाव परिणाम आया है वह भी कोई कम रोचक और विस्मयकारी नहीं है क्योंकि इस राज्य में एक नवोदित क्षेत्रीय दल ‘जोराम पीपुल्स मूवमेंट’ ने 40 सदस्यीय विधानसभा में 27 सीटें प्राप्त करके पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने की तरफ कदम बढ़ा दिया है। मिजोरम की मुख्य पार्टी अभी तक एक जमाने के विद्रोही नेता ललथनहवला की पार्टी ‘मिजो नेशनल फ्रंट’ मानी जाती थी औऱ पिछले पांच वर्षों से यही सत्तारूढ़ भी थी। मगर इस पार्टी के मुख्यमन्त्री श्री जोराम थांगा ने जिस प्रकार से निकटवर्ती राज्य मणिपुर में उपजी हिंसा पर रुख अपनाया उसका सीधा परिणाम उन्हें इन चुनावों में भुगतना पड़ा और फ्रंट को केवल दस सीटें ही मिल पायीं औऱ वह सत्ता से बाहर हो गई। जोरामथांगा राज्य में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे हालांकि भाजपा का केवल एक विधायक ही था मगर श्री जोराम थांगा ने राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए का सदस्य बनना कबूल किया था। इस पर भी कम आश्चर्य व्यक्त नहीं किया जा रहा है कि राज्य में कांग्रेस पार्टी को इस बार केवल एक सीट ही मिली जबकि भाजपा दो सीटें पाने में कामयाब हो गई। मणिपुर में भाजपा की सरकार है औऱ इस राज्य के मुख्यमन्त्री एम बीरेन सिंह की राज्य की जातीय हिंसा के मामले में कड़ी आलोचना भी की जा रही थी। इसके बावजूद भाजपा का समर्थन बढ़ने पर भी अचरज व्यक्त किया जा रहा है वह भी तब जब विधानसभा चुनावों में प्रचार के समय श्री जोराम थांगा ने भाजपा के नेताओं से साफ कर दिया था कि उनकी पार्टी एनडीए की सदस्य जरूर है मगर चुनावी मंच को वह प्रधानमन्त्री समेत किसी भी अन्य भाजपा नेता के साथ साझा नहीं कर सकते हैं। कांग्रेस के एक ही सीट पर सिमट जाने को राज्य की राजनीति के संदर्भ में बहुत गंभीर इसलिए भी माना जा रहा है कि स्व. ललथनहवला के साथ स्व. राजीव गांधी ने ही मिजोरम में विद्रोही गतिविधियों को विराम देने के लिए शान्ति समझौता किया था औऱ अपनी पार्टी की सरकार से इस्तीफा दिलवा कर ललथनहवला को मुख्यमन्त्री बनाया था। यह 80 के दशक की घटना है। मिजोरम में भाजपा की तरफ से चुनाव प्रचार करने भी कोई राष्ट्रीय स्तर का नहीं गया मगर इसकी सीट एक की जगह दो हो गई जबकि कांग्रेस की पिछली विधानसभा में चार सीटें थीं औऱ वह एक पर सिमट गई। पूर्वोत्तर राज्यों में कांग्रेस की पैठ अच्छी समझी जाती रही है। इस बार के चुनावों में भी श्री राहुल गांधी ने राज्य की राजधानी आइजोल पहुंच कर तीन दिन तक चुनाव प्रचार किया था। इससे पूर्व पूरे मणिपुर अमानवीय जातीय हिंसा होने पर भी वह मणिपुर गये थे। मिजोरम बहुत छोटा राज्य है और इसमें कुल साढ़े आठ लाख मतदाता ही हैं। इसकी आबादी ईसाई बहुल है । रविवार को चार अन्य राज्यों के साथ यहां चुनाव आयोग ने मतगणना इसलिए अगले दिन के लिए मुल्तवी कर दी थी क्योंकि राज्य की इसाई जनता रविवार को चर्चों में जाकर पूजा-पाठ करती है और इस दिन वह अपने धार्मिक कार्यों में ही व्यस्त रहती है। इसके अलावा राज्य के इसाई संगठन हर चुनाव मंे भाग लेने वाले हर राजनीतिक व प्रत्याशियों के लिए अपनी आचार संहिता भी जारी रखते हैं जिसे चुनाव लड़ने सभी प्रत्याशी बाकायदा हस्ताक्षर करके स्वीकृत करते हैं। इसमें मुख्य रूप से यह लिखा रहता है कि वे चुनाव में कोई भी अवैध या अनैतिक तरीका इस्तेमाल नहीं करेंगे औऱ चुने जाने के बाद दल-बदल नहीं करेंगे। इसके साथ ही इस राज्य में चुने गये विधायक विधानसभा में पहुंचने के बाद यदि वे विपक्ष में बैठते हैं तो सरकार की नीतियों का विरोध करते समय कभी भी अध्यक्ष के आसन के पास जाकर नारेबाजी या कोई हल्ला-गुल्ला नहीं करते हैं। कई मायनों में यह राज्य विलक्षण राज्य माना जाता है जिसमें भारत के संविधान के अऩुसार चुनाव नियमों के तहत मतदान होता है मगर नागरिकों की अपनी आचार संहिता भी लागू रहती है। लेकिन इस बार इस राज्य से भी चुनाव आयोग ने शराब व नकदी जब्त की है। निश्चित रूप से इसे गंभीर घटना माना जाना चाहिए। लेकिन भारत राष्ट्र के सन्दर्भों में पूर्वोत्तर के छोटे से छोटे राज्य का भी विशेष महत्व है क्योंकि इऩमें से जो भी राज्य चीन व म्यामांर की सीमा के आसपास रहे हैं उनमें विदेशी शक्तियां भारत विरोधी गतिविधियों को हवा देने का काम करती रही हैं मगर इन राज्यों की देश भक्त जनता ने सर्वदा ‘जय हिन्द’ बोल कर ही उत्तर और दक्षिण के नागरिकों के साथ अपनी आवाज मिलाई। यहां के लोग भारतीय सेना में भर्ती होकर भी भारत माता की सेवा करने में गर्व का अनुभव करते हैं और वीरता व शौर्य की मिसालें कायम करते रहे हैं।