मैक्रों का मेहमान होना
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों इस बार 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि होंगे। उन्होंने भारत का न्यौता स्वीकार कर लिया है। अब वे भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने वाले फ्रांस के छठे राष्ट्रपति होंगे। भारत ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था लेकिन उन्होंने पहले से तय अपने व्यस्ततम कार्यक्रम के चलते भारत आने में असमर्थता जताई थी। 1976 में फ्रांसिसी प्रधानमंत्री जैक्स शिराक गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने वाले पहले नेता थे। वहीं 1980 में फ्रांसीसी राष्ट्रपति वैलेरी गिस्कार्ड डी एस्टेंग भारत आये थे और रिपब्लिक डे के समारोह में शामिल हुए थे। इसके बाद 1998 में एक बार फिर जैक्स शिराक भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में आये लेकिन वे फ्रांस के राष्ट्रपति के तौर पर शामिल हुए थे। इससे पहले जब जैक्स शिराक साल 1976 में भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल हुए थे तो उस समय वे फ्रांस के प्रधानमंत्री थे। 2008 में राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी और 2016 में राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद आये थे। इस आकड़े के अनुसार कहा जा सकता है कि भारत ने गणतंत्र दिवस पर सबसे अधिक फ्रांस के नेताओं को आमंत्रित किया है।
भारत द्वारा फ्रांस के नेताओं की यह मेहमान नवाजी यह बताती है कि दोनों देशों के संबंध कितने गहरे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों में जबरदस्त कैमिस्ट्री देखी गई है। नरेन्द्र मोदी इसी वर्ष फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस बैस्लि डे में भाग लेने गए थे तो उनका भव्य स्वागत हुआ था। इमैनुएल मैक्रों नई दिल्ली में आयोिजत जी-20 सम्मेलन में भी भाग लेने भारत आए थे। दोनों देशों की दोस्ती तीन दशक पुरानी है। फ्रांस यूरोप में भारत के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक रहा है। वह एकमात्र ऐसा देश था जो 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद भी भारत के साथ खड़ा रहा था। बाकी देशों से उलट उसने भारत पर किसी तरह का कोई भी प्रतिबंध नहीं लगाया था। बल्कि कहा था कि एशिया में यदि कोई देश हमारा साझीदार है तो वह भारत है। फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति जैक्स शिराक ने सार्वजनिक रूप से भारत के परमाणु परीक्षण का समर्थन किया था और अमेरिका के परमाणु प्रतिबंधों की अवहेलना कर दी थी।
भारत के परमाणु परीक्षण से नाराज अमेरिका ने मानवीय सहायता को छोड़ भारत को दी जाने वाली सभी तरह की सहायता पर तब रोक लगा दी थी। इस प्रकार, 1998 में दोनों देशों ने एक रणनीतिक साझेदारी में प्रवेश किया जो दिनों-दिन घनिष्ठ होती गई और दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध प्रगाढ़ होते चले गये। रक्षा और सुरक्षा सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग और असैनिक परमाणु सहयोग के क्षेत्र दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी के प्रमुख स्तंभ हैं। इतना ही नहीं भारत और फ्रांस के बीच मजबूत आर्थिक साझेदारी भी है। इसके अतिरिक्त, दोनों देश हिंद प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला, शिक्षा, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण, नवीकरणीय ऊर्जा और सतत् वृद्धि व विकास, साइबर स्पेस और डिजिटल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी एक-दूसरे का सहयोग करने के लिए आगे आ रहे हैं।
भारत और फ्रांस के मजबूत रिश्तों की एक मजबूत कड़ी राफेल डील भी है। भारत के पास राफेल के एयरफोर्स वर्जन हैं। आजादी के बाद भारत का करीबी दोस्त ब्रिटेन ही था लेकिन शीत युद्ध के दौर में दुनिया बदली। विचारों और द्विपक्षीय हितों के स्तर पर फ्रांस यूरोप में भारत का सबसे मजबूत दोस्त बनकर उभरा। भले ही रूस के साथ हमारे गहरे संबंध हैं लेकिन रूस के बाद यदि कोई हमारा मजबूत साझेदार बना तो वह फ्रांस ही है। हाल ही के वर्षों में हिन्द महासागर पर ध्यान केन्द्रित करते हुए दोनों देशों ने समुद्री सुरक्षा सहयोग में काफी प्रगति की है। फ्रांस ने भी भू-राजनीतिक बदलाव को पहचानते हुए हिन्द प्रशांत महासागर क्षेत्र के राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाने और भारत के साथ साझेदारी मजबूत करना जरूरी समझा। इसी साल अक्तूबर में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह पैरिस गए थे और उन्होंने फ्रांस के सशस्त्र बलों के मंत्री के साथ पांचवां वार्षिक रक्षा संवाद किया था। चीन के हिन्द प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते दखल से फ्रांस भी चंतित है। ऐसे में दोनों देशों के बीच हिन्द प्रशांत क्षेत्र का मुद्दा काफी अहम है। कुछ अन्य मुद्दों पर भारत और फ्रांस के विचार मिलते हैं। मैक्रों ने कहा था कि यूरोप के देशों को अमेरिका का पिछलग्गू नहीं बनना चाहिए। भारत को फ्रांस से एयरक्राफ्ट से लेकर पनडुब्बी तक अलग-अलग रक्षा उत्पाद मिले हैं। संंयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी फ्रांस ने हमेशा भारत का साथ दिया है। काऊंटर टैररिज्म, आतंकवाद, मिसाइल कंट्रोल रिजाइन के मुद्दे पर फ्रांस ने भारत के विचारों का समर्थन ही किया है। भारत के सच्चे दोस्त फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का भारत द्वारा मुख्य अतिथि के तौर पर स्वागत करना संबंधों को मजबूत बनाने की दिशा में एक अहम पड़ाव होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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