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मोदी का अब्बास को सन्देश

01:21 AM Oct 21, 2023 IST
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फिलिस्तीन के राष्ट्रपति श्री महमूद अब्बास से टेलीफोन पर बात करके प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने साफ कर दिया है कि पश्चिम एशिया अरब-इजराइल समस्या के बारे में भारत का घोषित रुख वही है जिसका बयान वह पहले से करता आ रहा है। भारत फिलिस्तीन को एक संप्रभु व स्वतन्त्र राष्ट्र का दर्जा दिये जाने के हक में रहा है और वह इसका समाधान शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व के तरीके से चाहता है। श्री मोदी ने श्री अब्बास से गाजा में एक अस्पताल में हुई बमबारी से मृत हुए निरीह नागरिकों की हत्या पर गहरा दुख प्रकट किया और फिलिस्तीन को दी जाने वाली मानवीय सहायता को जारी रखने का वचन भी दिया। मगर भारत आतंकवाद के भी सख्त खिलाफ है और वह इसके किसी भी रूप में इस्तेमाल किये जाने को गलत मानता है। फिलिस्तीन की धरती गाजा में जो कुछ भी घट रहा है उसे मानवता के खिलाफ ही माना जायेगा क्योंकि विगत 7 अक्तूबर को गाजा में सक्रिय हमास के इजराइल पर हमले के बाद अब तक पांच हजार से अधिक सामान्य नागरिकों की जान जा चुकी है और 15 हजार से अधिक जख्मी हो चुके हैं।
भारत के फिलिस्तीन व इजराइल दोनों से ही दोस्ताना सम्बन्ध हैं। इसके साथ भारत के लगभग सभी अरब व इस्लामी देशों के साथ भी सांस्कृतिक व ऐतिहासिक सम्बन्ध रहे हैं। अरब देशों में लाखों प्रवासी भारतीय रहते हैं। जहां तक इजराइल का सम्बन्ध है तो भारत के साथ इसके सम्बन्ध 1992 के बाद से ही विकसित हुए हैं जबकि फिलिस्तीन को भारत इससे पहले से ही इसकी जायज मांगों के लिए समर्थन देता रहा है। इजराइल और फिलिस्तीनी संघर्ष का इतिहास 1948 से शुरू होता है जब राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव पर फिलिस्तीनी धरती पर इस नये देश की स्थापना अमेरिका व पश्चिमी यूरोपीय देशों के जबर्दस्त समर्थन की वजह से हुई थी। फिलिस्तीन में जब तक यासर अराफात रहे तब तक भारत की ओर से उन्हें सदैव सदाशयता प्राप्त होती रही और भारत राष्ट्रसंघ से लेकर अन्य विश्व मंचों पर संप्रभु फिलिस्तीन बनाये जाने का समर्थन करता रहा। लेकिन प्रधानमन्त्री पहले भी कह चुके हैं कि वर्तमान समय युद्ध का नहीं है बल्कि शान्ति व भाईचारे का है। इस तरफ फिलिस्तीन व इजराइल दोनों को ही ध्यान देना चाहिए क्योंकि युद्ध केवल विनाश और विध्वंस लेकर ही आता है।
दुनिया के विभिन्न देशों का इजराइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर दो धड़ों में बंट जाना भी दिखाता है कि पश्चिम एशिया के इस हिस्से में उठती ज्वाला को शान्त करने के मामले में शक्ति व ताकत के इस्तेमाल को किस तरह जायज ठहराने की तजवीजें भिड़ाई जा सकती हैं। मगर भारत की दृष्टि बिल्कुल साफ है क्योंकि वह पूरी दुनिया को शान्ति व सह अस्तित्व के मार्ग पर देखना चाहता है। फिलिस्तीन में सक्रिय संगठन हमास को अमेरिका व कुछ अन्य देश आतंकवादी संगठन मानते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि हमास ने विगत 7 अक्तूबर को जो कुछ किया वह आतंकवादी कार्रवाई ही थी क्योंकि उसने इजराइल के दो सौ से अधिक नागरिकों को बन्धक भी बनाया राकेट हमले करके 1400 लोगों की जान भी ली। मगर इसके उत्तर में इजराइल ने गाजा में भी बमबारी करके 3500 से अधिक निरपराध नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया। प्रतिशोध की इस ज्वाला में जो नुकसान हो रहा है वह मानवता का हो रहा है और इजराइल हमास का खात्मा करने के लिए गाजा के उत्तरी इलाके में बसे 11 लाख नागरिकों को अपने घर-बार छोड़कर दक्षिणी गाजा में चले जाने को मजबूर कर रहा है। उसने गाजा की बिजली, पानी, दवा आपूर्ति व रसद सप्लाई भी काट दी है जबकि इन 11 लाख लोगों का वतन गाजा ही है। अतः मानवता का चीत्कार करना स्वाभाविक था । ऐसे माहौल में यदि अमेरिका के राष्ट्रपति इजराइल की सात घंटे की यात्रा करके भी कोई शान्तिपूर्ण हल नहीं निकाल सके तो इसका क्या मतलब निकाला जाये। ब्रिटेन व जर्मनी के मुखिया भी इजराइल का दौरा करते हैं और नतीजा कुछ भी नहीं निकलता है।
सवाल किसी देश के समर्थन का नहीं है बल्कि उन निरपराध नागरिकों का है जो बिना किसी कुसूर के मारे जा रहे हैं। दुनिया के कुछ देश व अन्तर्राष्ट्रीय मानवीय संस्थाएं गाजा के लोगों के लिए जो मदद सामग्री भेज रही हैं यदि उसकी आवक ही रोकी जा रही है तो सवाल उठना लाजिमी है कि 21वीं शताब्दी में हम किन मानवाधिकारों की बात कर रहे हैं? सवाल यह भी उठना स्वाभाविक है कि इन परिस्थितियों में राष्ट्रसंघ क्या कर रहा है और खुद को सभ्य व आधुनिक कहने वाले देश क्या कर रहे हैं। राष्ट्रसंघ की आपात बैठक में यदि गाजा-इजराइल के बीच युद्ध विराम का प्रस्ताव रखा जाता है तो उसकी मुखालफत अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देशों ने क्यों की ? भारत आतंकवाद का भुक्तभोगी तब रहा है जब अमेरिका भारत की दलीलों को दरगुजर कर देता था और अफगानिस्तान तालिबान लड़ाकुओं को सबक सिखाने के लिए पाकिस्तान की जम कर मदद किया करता था और पाकिस्तान भारत में ही सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियां किया करता था। अतः भारत का यह कहना आज के माहौल में सर्वथा उचित है कि शान्ति व भाईचारे के साथ ही समस्या का हल होना चाहिए। पश्चिमी देशों को सोचना चाहिए कि रूस- यूक्रेन युद्ध के बारे में उनका नजरिया कितना सही है और वे अब जो इजराइल-फिलिस्तीन के बारे में रुख अपना रहे हैं उसमें उनकी दृष्टि क्या है?

 

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