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संसद के विशेष सत्र का सबब ?

01:43 AM Sep 02, 2023 IST
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स्वतन्त्र भारत के संसदीय इतिहास में संसद के विशेष सत्र बुलाने की भी एक परंपरा रही है जो विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस करने या किसी घटना अथवा अवसर का जश्न मनाने के लिए बुलाये जाते रहे हैं। ये जश्न कई दिनों के भी होते रहे हैं और केवल एक रात भर के भी होते रहे हैं और संयुक्त सत्र भी होते रहे हैं। 1952 में पहले आम चुनाव होने के बाद संसद का विशेष सत्र सबसे पहले पं. जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमन्त्री रहते हुए बुलाने पर अपनी सहमति तब दी थी जब भारत-चीन से युद्ध में परास्त हो रहा था। तब उनकी सरकार के विरुद्ध तीन अविश्वास प्रस्ताव अलग-अलग विरोधी दलों के सांसदों ने रखे थे मगर प्रख्यात समाजवादी नेता व कांग्रेस के ही पूर्व अध्यक्ष रहे आचार्य कृपलानी का अविश्वास प्रस्ताव सांसदों की आवश्यक संख्या का समर्थन होने की वजह से लोकसभा अध्यक्ष सरदार हुकुम सिंह ने स्वीकार कर लिया था। मगर नवम्बर 1962 में रखा गया अविश्वास प्रस्ताव भारी बहुमत से गिर गया था। उसके बाद किसी सरकार के अस्तित्व से जुड़ा और महत्वपूर्ण मुद्दे पर बहस करने के लिए जुलाई 2008 में डा. मनमोहन सिंह की सरकार ने दो दिन का केवल लोकसभा का विशेष सत्र बुलाया जिसमें सरकार की ओर से स्वयं यह ‘विश्वास प्रस्ताव’ रखा गया कि ‘यह सदन सरकार में विश्वास प्रकट करता है’।
इस प्रस्ताव को रखने का मुख्य उद्देश्य यह था कि भारत की मनमोहन सरकार अमेरिका के साथ परमाणु करार करने से पहले संसद को विश्वास में लेना चाहती थी। इसके दो कारण थे। एक तो अमेरिका भी परमाणु समझौता करने के लिए अपने संविधान में संशोधन अपनी संसद (हाउस आफ रिप्रजेंटेटिव एवं सीनेट) के माध्यम से करके उसकी अनुमति ले रहा था। दूसरा तत्कालीन विदेश मन्त्री भारत रत्न स्व. प्रणव मुखर्जी जब लगभग इससे सात-आठ महीने पहले अमेरिका की यात्रा पर गये थे तो उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश से व्हाइट हाऊस में भेंट करके साफ कर दिया था कि भारत समझौते पर तब तक हस्ताक्षर नहीं कर सकता जब तक कि भारत की संसद इसकी इजाजत न दे दे। हालांकि अगर मनमोहन सरकार यदि चाहती तो बिना संसद की स्वीकृति के भी भारतीय संविधान के अनुसार अमेरिका से समझौता कर सकती थी और इसकी सूचना बाद में संसद को दे सकती थी मगर डा. मनमोहन सिंह व कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी चाहती थी कि पहले संसद की मंजूरी ली जाये क्योंकि भारत देश के हितों व अगली पीढि़यों की खुशहाली के लिए उस अमेरिका के साथ परमाणु समझौता कर रहा है जिसने भारत द्वारा दो परमाणु परीक्षण (1974 व 1998) करने के बाद उस पर विभिन्न प्रकार के टैक्नोलोजी  स्थानान्तरण व आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिये थे। 
इन दो महत्वपूर्ण विशेष सत्रों के अलावा केवल एक दिन का लोकसभा व राज्यसभा के संयुक्त सत्र रात्रि के समय 2003 में स्व. वाजपेयी की सरकार के समय तब बुलाया गया जब तत्कालीन गृह व उप प्रधानमन्त्री श्री लालकृष्ण अडवानी आतंकवाद विरोधी ‘पोटा’ कानून लागू करना चाहते थे। एक रात के इस सत्र में सरकार की जीत हुई थी। इनके अलावा अधिसंख्य विशेष  सत्र  किसी घटना या अवसर का जश्न मनाने के लिए आयोजित किये गये। सबसे ताजा एक रात का विशेष संयुक्त सत्र 30 जून 2017 को जीएसटी ( वस्तु व सेवा कर) को देश में एक देश एक टैक्स के जश्न के रूप में बुलाया गया था। परन्तु इससे पहले 14-15 अगस्त 1997 की मध्य रात्रि में एक दिन का सत्र आजादी की स्वर्ण जयन्ती मनाने के लिए बुलाया गया था। परन्तु आजादी की स्वर्ण जयन्ती का बाकायदा मूल्यांकन करने के संसद का 26 अगस्त से लेकर 1 सितम्बर तक का सात दिवसीय सत्र भी इसी वर्ष बुलाया गया था।  इससे पूर्व 9 अगस्त 1992 को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आन्दोलन की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए बुलाया गया जो कि केवल एक रात का ही था।
इससे पहले 14-15 अगस्त 1972 को दो दिवसीय संयुक्त सत्र भारत की आजादी की रजत जयन्ती या 25 वर्ष पूरे होने के जश्न को मनाने बुलाया गया था। जबकि 26 व 27 नवम्बर 2015 को डा. भीमराव अम्बेडकर की याद में भी दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया था। अब मोदी सरकार ने 18 से 22 सितम्बर तक का पांच दिवसीय विशेष सत्र बुलाया है मगर यह किस वजह से बुलाया जा रहा है, इसे देश के सामने स्पष्ट नहीं किया है। जिसकी वजह से अटकलों का बाजार गर्म है क्योंकि मुम्बई में इंडिया गठबन्धन के 29 विपक्षी दलों की महत्वपूर्ण बैठक भी चल रही है। इसके समानान्तर ही मोदी सरकार ने लोकसभा व विधानसभा के चुनाव एक साथ कराये जाने के मुद्दे पर पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक समिति गठित करने की भी घोषणा कर दी है। अतः विशेष सत्र बुलाये जाने का मुद्दा यह नहीं हो सकता। कयासों का जिक्र करने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि केवल सरकार ही जानती है कि वह विशेष सत्र क्यों बुला रही है मगर सर्वाधिक संभावना इस बात की दिखाई दे रही है कि जम्मू-कश्मीर राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाये क्योंकि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में सरकार की तरफ से कहा गया है कि वह जम्मू-कश्मीर में कभी भी चुनाव कराने के लिए तैयार है।
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