सीट बंटवारे के भंवर में फंसा इंडिया गठबंधन
विपक्षी गठबंधन इंडिया की चार बैठकें हो चुकी हैं। बीते 19 दिसंबर को गठबंधन के नेता दिल्ली में मिले थे। इस बैठक में भी भाजपा को हराने और एक साथ चलने जैसी हवा हवाई बातों के अलावा कुछ ठोस नहीं निकला। सीट बंटवारे जैसे अहम मुद्दे पर कोई ठोस पहल या निर्णय इस बैठक में नहीं हुआ। अब जब लोकसभा चुनाव सिर पर खड़े हैं और इंडिया गठबंधन अभी तक अपने संयोजक का चुनाव नहीं कर सका है। और न ही गठबंधन सीट बंटवारे का कोई फार्मूला तय कर पाया है। ऐसे माहौल में विपक्षी एकता का भविष्य क्या होगा, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे के फार्मूले पर फंसे पेच के बीच बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और और जनता दल यूनाईटेड के बीच बढ़ी खटास ने गठबंधन की परेशानी बढ़ा दी है। महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ को महत्व नहीं दे रहे। दूसरी ओर दिल्ली, हरियाणा, गुजरात में आम आदमी पार्टी ने सीट बंटवारे को उलझा दिया है। इस बीच खबर यह भी है कि सीट बंटवारे को लेकर इंडिया गठबंधन ने मियाद तय कर दी है। जिसके तहत जनवरी के दूसरे हफ्ते यानी 15 जनवरी तक सीटों का बंटवारा कर लिया जाएगा। कांग्रेस ने सहयोगियों के साथ सीटों के तालमेल के लिए 5 सदस्यों की एक कमेटी भी गठित की है।
सीट बंटवारे में सबकी नजर यूपी, महाराष्ट्र और बंगाल समेत 5 बड़े राज्यों पर है, जहां कांग्रेस का जनाधार काफी कमजोर है। केरल और पंजाब जैसे राज्यों में भी कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं है। कांग्रेस यहां विधानसभा में कमजोर है, जबकि लोकसभा में उसे बढ़त हासिल है। इंडिया गठबंधन के सूत्रों के मुताबिक सीट बंटवारे के लिए शुरू में ही तीन फॉर्मूले नीतीश कुमार ने दिये थे लेकिन कई नेता इस पर सहमत नहीं थे। ऐसे में बड़े नेताओं को नए सिरे से भी सीट बंटवारे का फॉर्मूला ईजाद करना होगा। कई राज्यों में फ्रेंडली फाइट जैसे हालात भी बन गए हैं।
इंडिया गठबंधन बनाने का मुख्य मकसद लोकसभा चुनाव में 450 सीटों पर मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए को सीधी टक्कर देनी है। एनडीए खासकर उत्तर और मध्य भारत में काफी मजबूत स्थिति में है। ऐसे में सारे समीकरण इन्हीं राज्यों के लिए तैयार किए गए हैं। लोकसभा सीटों के लिहाज से उत्तर प्रदेश में 80, महाराष्ट्र में 48, पश्चिम बंगाल में 42, बिहार में 40 और तमिलनाडु में 39 सीटों के साथ सबसे बड़ा राज्य है। इन राज्यों में जो समीकरण बन रहे हैं, उसमें कांग्रेस को 50 सीटें मिलना मुश्किल लग रहा है।
सबसे ज्यादा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आरएलडी के साथ गठबंधन में है। सपा ने आजाद समाज पार्टी और अपना दल (कमेरावादी) को भी साथ जोड़ा है। यानी गठबंधन में मुख्य 3 दल के अलावा 2 छोटे दल भी शामिल हैं। 80 सीटों वाली उत्तर प्रदेश में कांग्रेस लंबे समय बाद गठबंधन कर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस 2009 में अकेले दम पर 21 सीटें यहां जीती थी। हालांकि, उस वक्त का सियासी समीकरण काफी अलग था। कांग्रेस अब भी 20 से ज्यादा सीटों पर दावा ठोक रही है, लेकिन पुराने आंकड़े और समीकरण उसके पक्ष में नहीं है। 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने रायबरेली सीट पर जीत हासिल की थी, जबकि अमेठी, कानपुर और फतेहपुर सीकरी में दूसरे नंबर पर रही थी। यानी कुल 4 सीटों पर कांग्रेस का बीजेपी से सीधा मुकाबला हुआ था। 2014 में कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली में जीत मिली थी, जबकि पार्टी 6 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। इनमें गाजियाबाद, कुशीनगर, बाराबंकी, कानपुर, लखनऊ और सहारनपुर जैसी सीटें थी। कांग्रेस को यूपी में इस बार भी 7-12 सीटें मिलने की बात कही जा रही है. हालांकि, कांग्रेस का दावा कम से कम 20 सीटों का है।
महाराष्ट्र में कांग्रेस को उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी के साथ सीटों का समझौता करना है। 48 सीटों वाली महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की पार्टी 18 से कम सीटों पर लड़ने को तैयार नहीं है। पश्चिम बंगाल में इंडिया गठबंधन के 3 दलों का जनाधार है। तृणमूल बड़ी पार्टी है, जबकि कांग्रेस-सीपीएम दूसरे और तीसरे नंबर की। ममता बनर्जी सीपीएम को गठबंधन में लेने को तैयार नहीं है। कई मौकों पर तृणमूल के बड़े नेताओं ने इसके संकेत भी दिए हैं। पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीट हैं, लेकिन पिछले 2 चुनाव में यहां कांग्रेस और सीपीएम का प्रदर्शन काफी बुरा रहा है। कांग्रेस 4 सीटों पर ही आमने-सामने की लड़ाई में रही है। ऐसे में कांग्रेस ज्यादा सीटों पर दावेदारी करने की स्थिति में नहीं है।
इंडिया गठबंधन की शुरुआत बिहार से हुई थी। यहां 4 दलों में सीट बंटवारे का काम होना है। जदयू और राजद बड़े भाई की भूमिका में हैं। कांग्रेस और माले को भी लोकसभा चुनाव लड़ना है। पिछले चुनाव में जदयू एनडीए गठबंधन के साथ मैदान में उतरी थी। 2019 में जदयू के 17 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे, जिसमें 16 ने जीत हासिल की थी। ऐसे में यह लगभग तय है कि जदयू 16 से कम सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारेगी। राजद की भी इतनी ही सीटों पर दावेदारी है। 2 सीट पर सहयोगी माले भी दावा ठोक रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस को 4-6 सीटें बिहार में मिल सकती हैं। कांग्रेस की यहां दावेदारी 8 सीटों की है। तमिलनाडु में पुराना समीकरण ही रह सकता है, 2019 में तमिलनाडु में कांग्रेस 9 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। उसे इस बार भी उतनी ही सीटें मिलने की उम्मीद है।
विपक्षी गठबंधन कितना स्थाई है सीटों के बंटवारे का फार्मूला सामने आने के बाद ही इसका पता चल पाएगा। ताजा स्थिति यह है कि महाराष्ट्र में उद्धव गुट का शिवसेना, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, बिहार में राजद-जदयू, दिल्ली-पंजाब में आप और उत्तर प्रदेश में सपा कांग्रेस को भाव देने के मूड में नहीं है। चूंकि बिहार में गठबंधन का दायरा बहुत बड़ा है, ऐसे में राजद-जदयू कांग्रेस को दो-तीन सीटों पर, बंगाल में ममता बनर्जी दो-तीन सीटों पर, दिल्ली और पंजाब में आप कांग्रेस को इतनी ही सीटें देना चाहती हैं। मुश्किल यह है कि आप चाहती है कि कांग्रेस हरियाणा, गुजरात में उसके लिए बड़ा दिल दिखाए। ममता पश्चिम बंगाल में वाम दलों को एक भी सीट नहीं देना चाहती। ऐसे में सीटों के बंटवारे के फार्मूले पर सहमति बनती नहीं दिख रही।