18 करोड़ में बिकी थी एक ‘पेंटिंग’
अमृता शेरगिल सिर्फ 28 वर्ष तक इस नश्वर संसार में रही। मगर इतनी सीमित सांसों की यात्रा के मध्य उसने जो पेंटिंग्स बनाईं वे आज भी दिल्ली के राष्ट्रीय कला संग्रहालय में मौजूद हैं। लाहौर के संग्रहालय में इसी के नाम पर एक गैलरी है। उसमें सिर्फ अमृता की पेंटिंग्स व कुछेक पेंटिंग्स की अनुकृतियां लगी हंै। अमृता शेरगिल कितनी बड़ी कलाकार थीं इसका अनुमान वर्ष 2006 में दिल्ली में हुई उसकी एक ‘पेंटिंग्स’ की राशि से लगाया जा सकता है। ‘विलेज-सीन’ नाम की यह पेंटिंग्स-6.9 करोड़ में बिकी है।
लुटियन दिल्ली में उसके नाम पर एक सड़क मार्ग है और बुडापेस्ट (हंगरी) में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र का नाम 'अमृता शेरगिल सांस्कृतिक केंद्र रखा गया है। अमृता शेरगिल (30 जनवरी 1913, 5 दिसंबर 1941) का जन्म बुडापेस्ट (हंगरी) में हुआ था। कला, संगीत व अभिनय बचपन से ही उनके साथी बन गए। 20वीं सदी की इस प्रतिभावान कलाकार को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने 1973 और 1979 में भारत के नौ सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में शामिल किया है। सिख पिता उमराव सिंह शेरगिल (संस्कृत-फारसी के विद्वान व नौकरशाह) और हंगरी मूल की यहूदी ओपेरा गायिका मां मेरी एंटोनी गोट्समन की यह संतान 8 वर्ष की आयु में पियानो, वायलिन बजाने के साथ-साथ कैनवस पर भी हाथ आजमाने लगी थी।
1921 में अमृता का परिवार समर हिल शिमला में आ बसा। बाद में अमृता की मां उन्हें लेकर इटली चली गई व फ्लोरेंस के सांता अनुंजिय़ाता, आर्ट स्कूल में उनका दाखिला करा दिया। पहले उन्होंने ग्रैंड चाऊमीअर में पीअरे वेलण्ट के और इकोल डेस बीउक्स-आर्ट्स में ल्यूसियन सायमन के मार्गदर्शन में अभ्यास किया। सन् 1934 के अंत में वह भारत लौटी। 22 साल से भी कम उम्र में वह तकनीकी तौर पर चित्रकार बन चुकी थी और असामान्य प्रतिभाशाली कलाकार के लिए आवश्यक सारे गुण उनमें आ चुके थे। पूरी तरह भारतीय न होने के बावजूद वह भारतीय संस्कृति को जानने के लिए बड़ी उत्सुक थी। उनकी प्रारंभिक कलाकृतियों में पेरिस के कुछ कलाकारों का पाश्चात्य प्रभाव साफ झलकता है। जल्दी ही वे भारत लौटीं और अपनी मृत्यु तक भारतीय कला परंपरा की पुन: खोज में जुटी रहीं। उन्हें मुगल व पहाड़ी कला सहित अजंता की विश्वविख्यात कला ने भी प्रेरित-प्रभावित किया। भले ही उनकी शिक्षा पेरिस में हुई, पर अंतत: उनकी तूलिका भारतीय रंग में ही रंगी गई। उनमें छिपी भारतीयता का जीवंत रंग हैं उनके चित्र।
अमृता ने अपने हंगेरियन चचेरे भाई से 1938 में विवाह किया, फिर वे अपने पुश्तैनी घर गोरखपुर में आ बसीं। 1941 में अमृता अपने पति के साथ लाहौर चली गई, वहां उनकी पहली बड़ी एकल प्रदर्शनी होनी थी, किंतु एकाएक वह गंभीर रूप से बीमार पड़ीं और मात्र 28 वर्ष की आयु में शून्य में विलीन हो गई।
यूनेस्को ने 2013 में शेरगिल के जन्म की 100वीं वर्षगांठ पर अमृता शेर-गिल अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया था। अमृता चौधरी के समकालीन भारतीय उपन्यास फेकिंग इट में शेरगिल का कार्य एक प्रमुख विषय है। सलमान रुश्दी के 1995 के उपन्यास ‘द मूर्स लास्ट साय’ का एक पात्र औरोरा ज़ोगिबी, शेरगिल से प्रेरित था। शेरगिल को कभी-कभी भारत के फ्रिडा काहलो के रूप में जाना जाता था क्योंकि उन्होंने क्रांतिकारी रूप से पश्चिमी और पारंपरिक कला रूपों का मिश्रण किया था।
2018 में ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने उनके लिए एक बेल्टेड ऑबिट्यूज़ प्रकाशित किया था। 2018 में मुंबई में एक सोथबी की नीलामी में अमृता शेरगिल की पेंटिंग ‘द लिटिल गर्ल इन ब्लू’ को रिकॉर्ड तोड़ 18.69 करोड़ में नीलाम किया गया। यह पेंटिंग शिमला की रहने वाली अमृता के चचेरे भाई बबित का चित्र है और 1934 में चित्रित किया गया था जब वह केवल 8 वर्ष का था। श्री नेहरू एक विशेष विषय पर अमृता शेरगिल को बातचीत के लिए 15 मिनट का समय देने को तैयार हो गए और उसके बाद यह प्रसंग नई दिशा की ओर ऐसा मुड़ा कि उसका कोई और छोर पकड़ में नहीं आ पाया। यह स्वाधीनता प्राप्ति से पहले का प्रसंग है।
इसी मध्य जब नई दिल्ली में कुछ मार्गों के नामकरण की बात चली तो एक मार्ग का नाम प्रख्यात चित्रकार अमृता शेरगिल के नाम पर रखे जाने का प्रस्ताव भी आया। नेहरू स्वयं अमृता शेरगिल से प्रभावित थे और दोनों के मध्य कुछ मुलाकातों के संदर्भ में भी मिले। एक बार एक पत्रकार ने इन संंबंधों के बारे में जब अमृता से पूछा तो उसका नपा तुला उत्तर था, ‘मैं इस शख्स से थोड़ी दूरी बनाकर जीना बेहतर समझती हूं। क्योंकि एक तो उस शख्स का व्यक्तित्व बेहद आकर्षक है और दूसरी बात यह भी है कि मैं उसे एक भला व्यक्ति मानती हूं और ऐसा कुछ भी करना या कहना नहीं चाहूंगी जिससे उसकी शख्सियत पर कोई भी खरोंच लगे।’
वर्ष 1947-48 में लार्ड माउंटबेटन और एडविना के आने पर यह एकांत कुछ टूटा था। दोनों को नेहरू के साथ अतीत में भी लगाव रहा था। यहां से जाने के बाद भी लगभग 12 वर्ष तक एडविना वर्ष में दो बार भारत आती रहीं और तब उनका ठिकाना प्रधानमंत्री आवास ही होता था। नेहरू भी जब कभी ब्रिटेन जाते तो वह माउंटबेटन दम्पति के ब्राडलैंड्स-स्थित फार्म हाऊस पर ही टिकना पसंद करते थे। एडविना-नेहरू संबंधों की चर्चा उन दिनों ब्रिटेन के मीडिया में भी खूब होती थी। दोनों के मध्य अंतरंग पत्र-व्यवहार व डायरी लेखन भी वर्षों तक चर्चा एवं विवादों का विषय बना रहा।
इसी मध्य श्रद्धामाता को लेकर चर्चाओं का सिलसिला वर्ष 1948 में माउंटबेटन-दम्पित की स्वदेश-वापसी के बाद ही आरंभ हो गया था। श्रद्धामाता की प्रारंभिक ख्याति, कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में धार्मिक आख्यानों एवं प्रवचनों की सूची में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी व कुछ अन्य नेताओं के नाम जुड़ गए थे। डॉ. मुखर्जी हिन्दू व महासभा के कुछ नेता वेदों व पुराणों के विषय में श्रद्धामाता के गहन अध्ययन व उनकी वक्तृता शैली से बेहद प्रभावित थे।
नई दिल्ली में हिन्दुत्व धर्म एवं अध्यात्म से जुड़े कुछ विषयों के बारे में श्री नेहरू व डॉ. मुखर्जी के मध्य विचार-विमर्श होता तो डॉ. मुखर्जी श्री नेहरू के समक्ष श्रद्धा के कुछ उदाहरण का जि़क्र सरसरी तौर पर कर देते। उन्हें लगा था श्रद्धा के आध्यात्मिक विश्लेषणों से नेहरू को परिचित कराना सही होगा।
नेहरू के व्यक्तित्व को समझ पाना इतना आसान भी नहीं और ज़्यादा मुश्किल भी नहीं। उनको लेकर ‘भारत कोकिला’ के नाम से अत्यंत लोकप्रिय रहीं सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू, अपने समय की महान गायिका एमएस सुब्बालक्ष्मी और चर्चित लेखिका कमला देवी भी चर्चा में रहीं अन्य महिलाओं में अपने समय की बहुचर्चित हालीवुड अभिनेत्री एंजी डिकिन्सन (1960) और कालांतर में अमेरिकी राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी की पत्नी जैक्विलीन कैनेडी भी शामिल थीं।
- डॉ. चंद्र त्रिखा