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‘आमार सोनार बांग्ला’

03:00 AM Aug 07, 2024 IST
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बंगलादेश में हुए तख्ता पलट का मन्तव्य मोटे तौर पर यह निकाला जा सकता है कि इस देश में ‘आमार सोनार बांग्ला’ के ध्वज वाहक कहीं मजहबी ताकतों के सामने ढीले पड़ गये हैं जो उन्होंने इस राष्ट्र के निर्माता ‘बंग बन्धु’ शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्ति को तोड़ने का प्रयास किया। बंगलादेश में पिछले महीने से सरकारी नौकरियों में मुक्ति योद्धाओं के परिवारों को मिल रहे आरक्षण के विरुद्ध छात्र आन्दोलन चल रहा था जिसका उद्देश्य सीमित था परन्तु बाद में इस आन्दोलन में देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग की विरोधी राजनैतिक पार्टियों ने शामिल होकर इसे राजनीतिक रंग दे दिया और पूरा आन्दोलन अराजक तत्वों के हाथ में पहुंच गया जिसका परिणाम सैनिक तख्ता पलट में निकला। शेख हसीना राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान की पुत्री ही हैं और उनकी विरासत अपने पिता की धर्मनिरपेक्ष राजनीति रही जिसका विरोध जमाते इस्लामी व बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी करती रही हैं। बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की नेता बेगम खालिदा जिया हैं जिन्होंने इसी वर्ष जनवरी महीने में हुए राष्ट्रीय चुनावों का बहिष्कार किया था। पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका ने इन चुनावों को फर्जी तक बताया और कहा कि इन चुनावों में भारी घपला किया गया है। शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी ने लगातार चौथी बार इन चुनावों में विजय हासिल की परन्तु पश्चिमी देशों ने इन्हें वैध नहीं माना।
भारत इस हकीकत को भलीभांति जानता है कि बंगलादेश का वजूद 1971 में अमेरिका व पश्चिमी दुनिया के कड़े विरोध के बावजूद कायम हुआ था। 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर जब बंगलादेश बना था तो भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री ने पूरी दुनिया में इसके अस्तित्व के लिए मानवता के मूल्यों की रक्षा करने के लिए अभियान चलाया था और अपने विरोधी समझे जाने वाले स्व. जय प्रकाश नारायण को भी विश्व की यात्रा पर भेजा था जिससे संसार को यह मालूम हो सके कि बंगलादेश (पूर्वी पाकिस्तान) में पाकिस्तानी फौज किस तरह वहां के लोगों पर जुल्म ढहा रही है और उनकी संस्कृति को कुचलने पर आमादा है। भारत में उस समय एक करोड़ के लगभग बंगलादेशी शरणार्थी आ चुके थे। मगर आज के बंगलादेश की दिक्कत यह है कि इसकी 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 1971 के बाद की जन्मी है जिसे पाकिस्तानी फौज के जुल्मों सितम का इल्म नहीं है। 1971 में भारतीय फौज की मदद से पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और बंगलादेश का उदय हुआ जिससे पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति ही बदल गई। जननायक शेख मुजीबुर्रहमान इस देश के पहले राष्ट्रपति बने मगर 14 अगस्त की रात्रि में सेना की एक टुकड़ी ने विद्रोह करके उनके पूरे परिवार का कत्ल कर दिया। जिसका कम्पन भारत में भी महसूस हुआ। उस दौरान भारत में इमरजेंसी लगी हुई थी अतः 15 अगस्त, 1975 को लाल किले की प्राचीर से तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी का भाषण आज भी पढ़ने वाला है जिसमें उन्होंने कहा था कि कुछ विदेशी शक्तियां भारतीय उपमहाद्वीप में उथल-पुथल मचवाना चाहती हैं। शेख साहब की मृत्यु के बाद बंगलादेश में यदि राजनैतिक स्थिरता आयी तो वह 2009 के बाद आयी जब चुनावों में उनकी पुत्री शेख हसीना जीतीं और उन्होंने अपनी सरकार बनाई। इसके बाद हुए हर पांच साल बाद के चुनावों में शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी ही जीतती रही और वह 5 अगस्त, 2024 तक इस देश की प्रधानमन्त्री रहीं। इस दिन तख्ता पलट होने के बाद वह भारत आ गई हैं। जब 1975 में शेख साहब के परिवार की सेना ने हत्या की थी तो शेख हसीना व उनकी बहन रेहाना जर्मनी में थीं जिसकी वजह से वे बच गई थीं। मगर शेख हसीना इसके बाद भारत में आयीं और स्व. राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी उनके स्थानीय अभिभावक बने। वह 1981 तक भारत में ही रहीं मगर इस दौरान बंगलादेश में राजनैतिक घटना क्रम तेजी से बदल रहा था। शेख साहब की मृत्यु के बाद सेना ने मार्शल लाॅ लागू किया परन्तु नवम्बर 1975 में मुख्य न्यायाधीश अबू सादात मुहम्मद सईम को राष्ट्रपति नियुक्त करके शासन सेना के हवाले कर दिया।
1977 में जनरल जिया उर्रहमान राष्ट्रपति नियुक्त किया गये मगर 1981 में उनकी हत्या कर दी गई। उनके बाद उनके स्थान पर अब्दुस सत्तार आये मगर 1982 में उनका भी सेना ने तख्ता पलट कर दिया और जनरल एच.एम. इरशाद सत्ता प्रमुख बन बैठे। मगर 1990 में पूरे देश में उनके शासन के खिलाफ जन आन्दोलन भड़क उठा जिससे उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 1991 में देश में लोकतन्त्र स्थापित करने की घोषणा की गई और चुनाव हुआ मगर इन चुनावों में मृत जनरल जिया उर्रहमान की पत्नी बेगम खालिदा जिया ने अपनी अलग पार्टी बीएनपी बना कर चुनाव लड़ा। तब तक शेख हसीना ने अवामी लीग की बागडोर संभाल ली थी मगर चुनावों में उनकी पार्टी की हार हुई और बेगम खालिदा जिया प्रधानमन्त्री बनी।
1996 के चुनावों में बाजी पलट गई और शेख हसीना की अवामी पार्टी जीती अतः प्रधानमन्त्री शेख हसीना बनीं। वह 2001 तक इस पद पर रहीं मगर 1996 में ही सैनिक विद्रोह का प्रयास हुआ जो असफल रहा। 2001 के चुनावों में फिर से बेगम खालिदा जीती और 2006 तक प्रधानमन्त्री रहीं। मगर उनके शासन के अंतिम वर्ष में पूरे देश में पुनः अराजकता व्याप्त हो गई और सेना ने राष्ट्रपति की मार्फत इमरजेंसी लगवा दी। इसके बाद 2008 तक एक अस्थायी सरकार गठित की गई। इसके नेतृत्व में इस साल के आखिर में चुनाव हुए जिसमें शेख हसीना की अवामी पार्टी जीती और 2024 तक हर चुनाव जीत कर सत्ता पर काबिज रही। इस पूरे घटनाक्रम से अन्दाजा लगाया जा सकता है अमेरिका को अपने देश में सैनिक अड्डा न बनाये जाने की इजाजत देकर शेख हसीना ने अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखा और भारतीय उपमहाद्वीप में सैनिक प्रतियोगिता को बढ़ने से रोका। 1971 में भी अमेरिका ने पाकिस्तान की पूरी मदद की थी और अपना सातवां जंगी एटमी जहाजी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में उतार दिया था। हम केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं कि बंगलादेश को सियासी फुटबाल बनाये रखने में किसका हित सधता है। भारत शुरू से ही चाहता है कि बंगलादेश एक स्थायी और मजबूत देश बने।

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