अमेरिका : हुए तुम दोस्त जिसके...
आतंकवाद के मामले में अमेरिका की दोहरी चालें एक बार फिर सामने आ चुकी हैं। अमेरिका में रह रहे आतंकवादी गुुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में गिरफ्तार किए गए भारतीय निखिल गुप्ता के संबंध में एजैंसियों ने जो कहानी गढ़ी है वह किसी के भी गले नहीं उतर रही। भारत ने अमेरिका के आरोपों पर सतर्क प्रतिक्रिया दी है और साथ ही यह स्पष्ट भी कर दिया है कि भाड़े पर हत्याएं कराना भारतीय नीति नहीं है और यह हमारे सिद्धांतों के खिलाफ है। अमेरिका ने यह भी आरोप लगाया है कि निखिल गुप्ता से भारत के एक अंडर कवर एजैंट ने पन्नू की हत्या के लिए सांठगांठ की थी लेकिन निखिल गुप्ता ने जिस हिटमैन को खोजा वह पहले से ही अमेरिकी एजैंट के तौर पर काम कर रहा था। पूरी कहानी किसी फिल्मी कथानक जैसी लगती है, जिसमें समय-समय पर नाटकीय मोड़ आते हैं। कनाडा के बाद अमेरिका के अनर्गल आरोपों के बीच भारत की वास्तविक चिंताएं कहीं खो गई हैं। यद्यपि भारत ने आरोपों की जांच के लिए उच्चस्तरीय जांच समिति का गठन कर दिया है। इस जांच समिति के निष्कर्षों पर आगे की कार्रवाई की जाएगी लेकिन सवाल यह है कि जिस पन्नू पर भारत में आतंक फैलाने के कई आरोप हैं वह उसकी पैरवी क्यों कर रहा है। क्यों कनाडा और अमेरिका तथा ब्रिटेन ऐसे आतंकवादियों के रहनुमा बने हुए हैं? यह साफ दिखाई देता है कि यह देश खालिस्तानी आतंकवादियों को पाल-पोस कर उन्हें मोहरे की तरह भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं।
अमेरिका बहुत शातिर है वह किसी न किसी तरह भारत पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहा है। प्रश्न यह है कि क्या अमेरिका अपने यहां रह रहे पन्नू और अन्य खालिस्तानी तत्वों पर कोई कार्रवाई करेगा? जिस निखिल गुप्ता की बात अमेरिका ने की है वह खुद एक ड्रग स्मगलर है। अन्तर्राष्ट्रीय अपराध नेटवर्क से जुड़े किसी भी माफिया डॉन के कृत्यों पर कोई भी भरोसा नहीं कर सकता। सवाल यह भी है कि अमेरिका को आतंकवाद के मामले में भारत को उपदेश देने का कोई नैतिक अधिकार है जिसने खुद कई देशों को तबाह किया है। कौन नहीं जानता कि 9/11 के आतंकवादी हमले के बाद युद्ध उन्माद में अमेरिका ने आतंकवाद के समूल नाश के लिए मुहिम छेड़ी लेकिन उसने अफगानिस्तान में बैठे लादेन और अन्य आतंकवादियों को मारने के लिए उस पाकिस्तान को अपना साथी बनाया जो स्वयं आतंकवाद की खेती करता है। अंततः अमेरिका को कई साल खाक छानने के बाद अफगानिस्तान से लौटना पड़ा।
कौन नहीं जानता कि अमेरिका ने इससे पूर्व अफगानिस्तान से रूसी फौजों को खदेड़ने के लिए अलकायदा को हथियार और पैसा दिया था। अलकायदा और तालिबान असल में अमेरिका की ही उपज हैं। अमेरिका ने सीरिया को भी अपना अखाड़ा बनाया और उसे तबाह कर दिया। ईराक और लीबिया की तबाही के लिए भी अमेरिका ही जिम्मेदार है। 26/11/2008 के मुम्बई हमले की साजिश में शामिल डेविड हेडली के मामले में भी उसने दोहरी चालें चलीं। डेविड हेडली अमेरिका में सजा भुगत रहा है। क्योंकि वह सरकारी गवाह बन गया था इसलिए उसे फांसी नहीं दी गई। सच बात तो यह है कि डेविड हेडली खुद अमेरिकी एजैंट रहा है, जो पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से मिलकर डबल क्रॉस कर रहा था। जब भारतीय जांच टीम उससे पूछताछ करने अमेरिका गई तो अमेरिका ने उसे डेविड हेडली से मिलने नहीं दिया और भारतीय टीम को बैरंग वापिस आना पड़ा।
भारत कई वर्षों से पाकिस्तान से मोस्ट वांटेड आतंकवादियों और अपराधियों को सौंपने की मांग करता आ रहा है लेकिन अमेरिका ने कभी पाकिस्तान पर दबाव नहीं डाला। अगर अमेरिका चाहता तो डेविड हेडली को भारत के हाथों सौंप सकता था और आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान की जमीन पर भी तबाही मचा सकता था। अमेरिका की कहानी से यह साफ झलकता है कि वह और अन्य पश्चिमी देश आतंकवादियों और अन्तर्राष्ट्रीय अपराधियों को प्रश्रय देते हैं और फिर उन्हें अपना एजैंट बनाकर इस्तेमाल करते हैं। भारत ने कभी आतंकवाद का निर्यात नहीं किया और न ही कभी कोई प्रशिक्षण शिविर लगाए हैं। वह आज तक जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर भारत तक आतंकवाद के दंश झेलता आया है। अमेरिका भारत को कठघरे में खड़ा कर आतंकवाद से लड़ाई में भारत का पक्ष कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। अगर कोई अधिकारी किसी ड्रग्स तस्कर से मिलकर कोई अवांछनीय कृत्य करता है तो यह भारत के लिए चिंता का विषय जरूर है। भारत ने उच्चस्तरीय पैनल गठित कर अपनी गम्भीरता का परिचय दे दिया है। भारत को अमेरिका और कनाडा की दोरंगी चालों से सतर्क रहना होगा और इन देशों पर दबाव बनाना होगा कि वह भारत विरोधी तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। अमेरिका मैत्री से भारतीय हितों को नुक्सान नहीं पहुंचना चाहिए। अमेरिका के बारे में यह मशहूर है कि हुए तुम दाेस्त जिसके उसे दुश्मनों की जरूरत क्या है?