India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

डोनाल्ड ट्रंप पर हमला, अमेरिका को चुनौती

04:39 AM Jul 15, 2024 IST
Advertisement

दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश जिसके इशारे पर दुनिया में पलभर में समीकरण बदल जाते हैं। वह चाहे तो किसी भी देश में तख्ता पलट सकता है। दो देशों में विवाद हो तो हमेशा ‘शांति दूत’ बनकर कूदने को तैयार रहता है। तेल की लड़ाई हो, सीमाओं की जंग हो, ​हथियारों की होड़ हो या फिर आतंकवाद हो अमेरिका हर जगह दखल देता है। कौन नहीं जानता कि अमेरिका ने आतंकवाद के नाम पर लड़ाई की आड़ में ईराक, अफगानिस्तान, लीबिया और अन्य देशों में विध्वंस का खेल खेला। अमेरिका ने उस वक्त भी पूरी दुनिया को अपनी ताकत दिखा दी थी जब दूसरे विश्व युद्ध में उसने जापान को हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिरा दिए थे। अमेरिका हर जगह अपना वर्चस्व दिखाना चाहता है। अमेरिका की सीक्रेट सर्विस और एफबीआई को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ​िजसके बारे में मशहूर है कि वह उड़ती चिडि़या के पंख भी गिन लेते हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर एक चुुनावी रैली में हुए हमले को लेकर बहुत सारे सवाल उठ खड़े हुए हैं।
दरअसल इस साल के अंत तक अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव होना है। इसके लिए चुनावी प्रचार चल रहा है। डोनाल्ड ट्रंप पेंसिल्वेनिया के बटलर में एक चुनावी रैली कर रहे थे तभी उन पर अचानक ही हमला हुआ। एक के बाद एक फायर होने लगे। सीक्रेट सर्विस द्वारा उन्हें तुरंत कार्यक्रम स्थल से बाहर ले जाया गया। हमले के बाद ट्रंप के कान और चेहरे पर खून बहता दिखाई दिया। इसके बाद तुरंत उन्हें अस्पताल ले जाया गया। इस हमले में एक ट्रंप समर्थक की मौत भी हो गई है।
बाद में सीक्रेट सर्विस के जवानों ने रैली स्थल से कुछ दूर एक इमारत की छत पर बंदूकधारी 20 वर्षीय युवक थॉमस मैथ्यू को मार गिराया। हमलावर युवक की पहचान भी कर ली गई है। हमलावर ट्रंप की पार्टी रिपब्लिकन का पंजीकृत मतदाता बताया जा रहा है। हमले के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह इस हमले से पीछे हटने वाले नहीं हैं और आगे की लड़ाई जारी रखेंगे। ट्रंप के साहस की प्रशंसा करनी पड़ेगी कि हमले के बाद वे तुरंत डायस के पीछे से उठे और रैली में आए लोगों की ओर मुट्ठी भींच कर साहस का संदेश ​दिया। हमलावर स्थानीय बताया जाता है। एफबीआई का मानना है कि यह ट्रंप की हत्या का प्रयास है। चश्मदीदों का कहना है कि उन्होंने मंच के सामने ​बिल्डिंग की छत पर एक शख्स को राइफल के साथ रेंगते देखा था और पुलिस को उसकी जानकारी भी दी थी लेकिन इतने में ही गोलियां चलनी शुरू हो गई। अब सवाल उठाया जा रहा है कि रैली के दौरान आसपास की छतों पर सीक्रेट सर्विस के लोग मौजूद क्यों नहीं थे। क्या यह हमला राजनी​ितक हत्या की साजिश थी? क्या हमलावर युवक किसी के हाथ का मोहरा था या फिर उसे व्यक्तिगत रूप से ट्रंप से घृणा थी। पहले अनुमान लगाया गया था कि हमलावर हमास का हो सकता है या फिर किसी आतंकवादी गिरोह का सदस्य हो सकता है। हत्या के कारणों की तलाश की जाएगी। देखना होगा कि जांच किस निष्कर्ष पर पहुंचती है। इतिहास के पन्ने पलटें तो अमेरिका में अब तक 4 राष्ट्रपतियों की हत्या हो चुकी है। 14 अप्रैल 1865 को वाशिंगटन डीसी के फोर्ड थिएटर में एक नाटक देखने गए अब्राहम लिंकन की हत्या कर दी गई थी। 22 नवम्बर 1963 को अमेरिका के दूसरे सबसे युवा राष्ट्रपति जॉन कैनेडी की उस समय हत्या कर दी गई थी जब वे ओपन कार में जा रहे थे। यह घटना धीरे-धीरे एक गुत्थी में तब्दील हो गई जो आज तक सुलझ नहीं पाई।
अमेरिका की आधुनिक सभ्यता की सबसे बड़ी मुश्किल यही रही है कि यहां हिंसा इतनी सहज बन गई है कि हर बात का जवाब सिर्फ हिंसा की भाषा में ही दिया जाने लगा। वहां हिंसा का परिवेश इतना मजबूत हो गया है कि वहां की बन्दूक संस्कृति से वहां के लोग अपने ही घर में बहुत असुरक्षित हो गए थे। लंबे समय से बंदूकों की सहज उपलब्धता का खामियाजा उठाने के बाद वहां के लोगों ने अपने स्तर पर इसके खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू कर दिया है और राष्ट्रपति जो बाइडेन को हथियारों के दुरुपयोग पर अंकुश से संबंधित कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करने को विवश होना पड़ा तब भारी तादाद में लोगों ने सड़कों पर उतरकर बंदूकों की खरीद-बिक्री से संबंधित कानून को बदलने की मांग की। जरूरत इस बात की है कि इस समस्या के पीड़ितों को राहत देने के साथ-साथ बंदूकों के खरीदार से लेकर इसके निर्माताओं और बेचने वालों पर भी सख्त कानून के दायरे में लाया जाए।
अमेरिका में आए दिन कभी किसी धा​र्मिक स्थल पर, कभी किसी स्कूल में, कभी किसी पब में ​या फिर किसी समारोह में सिरफिरों द्वारा बंदूक से गोलियां चलाकर निर्दोष लोगों को मारा जाता है। आम ​अमेरिकी परेशान है क्योंकि अमेरिका स्वयं ही इन हथियारों एवं हिंसक मानसिकता का ​शिकार हो गया है। अगर 18 साल के लड़कों को दुकानों से आसानी से बंदूकें मिल जाएगी तो फिर गोलियां तो चलेगी। हिंसक मा​नसिकता वहां पनपती है जहां इंसानी रिश्ते खत्म हो चुके होते हैं। अमेरिकी युवाओं में एकाकीपन, हताशा, आक्रोश और प्रतिशोध के भाव पनपने लगे हैं। ऐसे में वह बंदूकों को इस्तेमाल कर हत्याकांड कर बैठते हैं। क्या ट्रंप पर हमला साजिशन किया गया या यह अमेरिका के बंदूक संस्कृति पर सवार होने के कारण हुआ। इस की जांच जरूरी है। यह राजनीतिक हिंसा अमेरिका के लिए बड़ी चुनौती के रूप में उभरी है। साथ ही अमेरिकीयों को यह भी देखना होगा कि क्या उनका देश संस्कृति विहीन तो नहीं बन रहा। फिलहाल इस हमले के बाद ट्रंप के समर्थन में वोटों का ध्रुवीकरण होना स्वाभाविक है।

Advertisement
Next Article