India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

भोजशाला और हिन्दू-मुस्लिम

05:03 AM Jul 17, 2024 IST
Advertisement

भारत विभिन्न संस्कृतियों के संगम का देश है। यह एेसा अद्भुत देश भी माना जाता है जिसमें हर मजहब के अलग- अलग फिरकों के लोग शान्ति और सौहार्द के साथ रहते आये हैं। यह एेसा अनूठा देश भी है जिसमें विविध संस्कृतियों के लोग एक देश की पहचान बनें जबकि प्रत्येक धर्म को यहां फलने-फूलने की इजाजत भी मिली। इसकी असली वजह मूल भारतीय संस्कृति का वह स्थायी भाव है जो प्रत्येक मतावलम्बी के मत को बराबर का सम्मान देता है। इसमें एक-दूसरे से असहमत तो हुआ जा सकता है मगर आपसी अवमानना नहीं की जा सकती। मध्य प्रदेश के धार जिले में जिस भोजशाला पर विवाद पैदा हो रहा है उसे अगर हम इस नजरिये से देखें तो समस्या का हल निकाल लेना बहुत आसान हो सकता है। नाम से ही भोजशाला हिन्दू बोध कराती है। मगर इसके परिसर में एक कमाल मौला मस्जिद भी है। अतः हिन्दू व मुसलमान दोनों ही बारी-बारी से यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं। यह सहिष्णुता ही हिन्दू धर्म की लब्ध सिंचित सम्पत्ति है। मगर कुछ हिन्दू संगठनों का कहना है कि भोजशाला उनके हवाले की जाये क्योंकि इसके विभिन्न हिस्सों में हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों के अवशेष हैं। मुसलमानों की राय में एक पहुंचे हुए फकीर कमाल मौला के नाम से मस्जिद भी इसके परिसर में है। मुझे इस मामले में सन्त कबीर की वाणी याद आती है जिसमें वह हिन्दू-मुसलमान दोनों को ही सीख देते हैं।,
हिन्दू कहै मोहे राम पियारा तुरक कहे रहिमानी ,
आपस में दोऊ लरि-लरि मुए कोई मरम न जानि
हमने देखा कि अयोध्या में राम मन्दिर बनाने के लिए किस प्रकार देशव्यापी आन्दोलन चला था और उसमें कितनी हिंसा हुई थी। मरने वालों में हिन्दू भी थे और मुसलमान भी। अन्ततः सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर ही राम मन्दिर का निर्माण अयोध्या में हुआ। अयोध्या में पहले बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया और बाद में उस स्थान पर राम मन्दिर बना। यह ताजा इतिहास दर्ज हो चुका है जिसे अब कभी मिटाया नहीं जा सकता। भोजशाला के मामले में भी हिन्दू व मुस्लिम दोनों पक्षकारों की तरफ से मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में मुकदमा चल रहा है। कुछ माह पहले उच्च न्यायालय ने ही भारतीय पुरातत्व विभाग को भोजशाला का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। इसने अपने सर्वेक्षण में पाया कि परिसर में स्थित मौजूदा धार्मिक भवनों का निर्माण मन्दिरों के प्राचीन अवशेषों से किया गया। परिसर में मस्जिद का निर्माण बहुत बाद में किया गया। जबकि भोजशाला 11वीं सदी में बनाई गई थी।
पुरातत्व विभाग की लम्बी रिपोर्ट में कहा गया है कि परिसर से 94 मूर्तियां, 106 स्तम्भ, 82 भित्ती चित्र, 150 शिलालेख व 31 प्राचीन सिक्के मिले। स्तम्भों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई थीं। शिलालेखों में गणेश, ब्रह्मा व उनकी पत्नियों की छवि मौजूद है। स्तम्भों पर नृसिंह व काल भैरव की छवियां मौजूद हैं। हिन्दू भोजशाला को सरस्वती का मन्दिर मानते हैं। पुरातत्व विभाग ने लिखा है कि यह देवी सरस्वती का मन्दिर भी हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान भोजशाला की संरचना में मन्दिरों के अवशेषों को पुनः इस्तेमाल करने के लिए उन पर उकेरी गई देवताओं और मानवों और पशुओं की आकृतियों को या तो काट कर निकाल लिया गया अथवा उन्हें विकृत कर दिया गया। जाहिर है कि मस्जिद में मूर्ति अवशेष नहीं लगाये जा सकते।
पुरातत्व विभाग अपने सर्वेक्षण में इस नतीजे पर पहुंचा है कि वर्तमान संरचना पहले के मन्दिरों के अवशेषों से बनाई गई है। जाहिर है कि पुरातात्विक सर्वेक्षण को हिन्दू अपने पक्ष में मानेंगे और तदनुसार ही मांग करेंगे। परन्तु यह इतिहास की गाथा है जिसमें वर्तमान पीढि़यों की कोई भूमिका नहीं है। बेशक भारत में पांच सौ साल से अधिक समय तक सुल्तानी व मुगल साम्राज्य रहा। मगर मुस्लिम सुल्तानों से मुगल बादशाहों ने इस देश की संस्कृति को समझने में देर नहीं की और अपने दरबारों में हिन्दू मनसबदार व फौजदार से लेकर जागीरदार भी रखे। राजशाही के दौर में कुछ हिन्दू मन्दिरों का परिवर्तन हो सकता है क्योंकि वह राजशाही का दौर था और शाही फरमानों से लोगों का भविष्य तय हुआ करता था। हिन्दू मन्दिरों में उस समय अकूत सम्पत्ति हुआ करती थी जिसकी वजह से ये आक्रमण के घेरे में आ जाते थे। मन्दिर किसी राजा की शान व एेश्वर्य के प्रतीक माने जाते थे।
प्रश्न पैदा होता है कि कब तक हम इतिहास की कब्रें खोदते रहेंगे। क्योंकि यह शाश्वत नियम है कि इतिहास की जड़ें कुरेदने से केवल पीछे की ओर ही चला जाता है। आगे बढ़ने व उज्ज्वल भविष्य के लिए कोई भी देश पुराने जख्मों को हरा नहीं करता है। बेशक इतिहास से सबक लिया जाता है न कि पुरानी पीढि़यों के कृत्यों की लकीर पीटी जाती है। अतः यह कम महत्वपूर्ण नहीं है कि देश का सर्वोच्च न्यायालय भी भोजशाला मुकदमे को सुनेगा। हमें याद रखना चाहिए कि हिन्दू पक्ष मथुरा के श्रीकृष्ण जन्म स्थान व काशी की ज्ञानवापी मस्जिद को भी उसे सौंपे जाने की मांग कर रहा है। धर्म स्थानों का विवाद न केवल सामाजिक संरचना व इसके ताने-बाने को प्रभावित करता है बल्कि राष्ट्र को भी नुकसान पहुंचाता है। जिस तरह हिन्दू भारत के सम्मानित नागरिक हैं उसी प्रकार मुसलमान भी। अतः एेसे विवादों को दोनों पक्षों द्वारा आपसी बातचीत करके निपटाना चाहिए। यह देश जितना हिन्दुओं का है उतना ही मुसलमानों का भी है। जरा सोचिये औरंगजेब को सबसे क्रूर व धर्मान्ध बादशाह माना जाता है मगर यह हकीकत भी है कि उसके राज में बड़ी संख्या में हिन्दू मनसबदार थे। यह भी सच है कि उसने कई हिन्दू मन्दिरों का विध्वंस किया। इसके लिए वर्तमान पी​िढ़यों को दोषी ठहराना पूरी तरह गलत है क्योंकि जब भारत में बौद्ध धर्म का प्रभावी उदय हुआ था तो बौद्ध धर्मावलम्बियों ने भी हिन्दू मन्दिरों पर आक्रमण किये थे। अतः पूरे मामले को हमें साम्प्रदायिक रंग देने से बचना होगा। इसमें राजनीति को लाना भी अनुचित होगा क्योंकि लोकतान्त्रिक देश भारत में सभी धर्मों का बराबर सम्मान होता है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Advertisement
Next Article