ब्रिटेन की मंदी ऋषि सुनक के लिए चुनौती
कोरोना महामारी के दिनों से ही इस बात की आशंका व्यक्त की जा रही थी कि यूरोप में मंदी का दौर शुरू हो सकता है। महामारी के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था को कई झटके लगे। कई देशों की सरकारें हिल उठीं और महामारी के शांत होने के बाद कई देश पुनः उठ खड़े हुए। उनकी अर्थव्यवस्था में भी सुधार हुआ लेकिन कई देश अभी भी झटके झेल रहे हैं। भू-राजनीति के कारण भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को कई झटके लगे हैं। यूक्रेन युद्ध ने ईंधन कीमतों को प्रभावित किया, अमेरिका-चीन की प्रतिद्वंद्विता ने आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित किया। अब पश्चिम एशिया में अस्थिरता दिख रही है।
ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था 2023 की दूसरी छमाही में मंदी की चपेट में आ गई, जो इस साल प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के अपेक्षित चुनाव से पहले एक कठिन पृष्ठभूमि है, जिन्होंने विकास को बढ़ावा देने का वादा किया है। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि दिसंबर तक तीन महीनों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 0.3 प्रतिशत की गिरावट आई, जो जुलाई और सितंबर के बीच 0.1 प्रतिशत कम हो गई। डॉलर और यूरो के मुकाबले स्टर्लिंग कमजोर हुआ। निवेशकों ने इस साल बैंक ऑफ इंग्लैंड (बीओई) द्वारा ब्याज दरों में कटौती पर अपना दांव लगाया और व्यवसायों ने 6 मार्च को आने वाले बजट योजना में सरकार से अधिक मदद की मांग की।
जारी आंकड़ों का मतलब है कि ब्रिटेन मंदी में सात उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के समूह में जापान के साथ शामिल हो गया है, हालांकि यह अल्पकालिक और ऐतिहासिक मानकों के अनुसार उथला होने की संभावना है। कनाडा ने अभी तक चौथी तिमाही के लिए जीडीपी डेटा की रिपोर्ट नहीं की है। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था 2019 के अंत के अपने स्तर से सिर्फ 1 प्रतिशत अधिक है, जो कि कोविड-19 महामारी आने से पहले थी-जी7 देशों में केवल जर्मनी की स्थिति बदतर थी। सुनक ने पिछले साल मतदाताओं से किए अपने प्रमुख वादों में से एक के रूप में अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने का वादा किया था। उनकी कंजर्वेटिव पार्टी पिछले सात दशकों से अधिक समय से ब्रिटिश राजनीति पर हावी रही है, जिसकी आर्थिक क्षमता के लिए प्रतिष्ठा है। लेकिन जनमत सर्वेक्षणों के अनुसार, लेबर को अब अर्थव्यवस्था पर अधिक भरोसा है।
विश्लेषकों का कहना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक राष्ट्रीय चुनाव और अगले चुनाव के बीच ब्रिटिश परिवारों के जीवन स्तर में पहली बार गिरावट देखने को मिलेगी। ब्रिटेन दुनिया की छठी बड़ी इकॉनमी है। फोर्ब्स के मुताबिक अमेरिका 27.974 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी है। चीन 18.566 ट्रिलियन डॉलर के साथ दूसरे नंबर पर है। जर्मनी हाल में जापान को पछाड़कर दुनिया की तीसरी बड़ी इकॉनमी बना है। उसकी इकॉनमी का साइज 4.730 ट्रिलियन डॉलर है। जापान 4.291 ट्रिलियन डॉलर के साथ चौथे नंबर पर खिसक गया है। भारत 4.112 ट्रिलियन डॉलर के साथ इस लिस्ट में पांचवें और ब्रिटेन 3.592 ट्रिलियन डॉलर के साथ छठे नंबर पर है। जिस रफ्तार से भारत की इकॉनमी बढ़ रही है, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्दी वह जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ देगा।
ऐसा भी नहीं है कि जर्मनी बहुत अच्छी स्थिति में है। एक समय यूरो क्षेत्र के विकास का इंजन रहा जर्मनी अब उसकी सबसे कमजोर कड़ी है। दो दशकों तक जर्मनी की निर्यातोन्मुखी, विनिर्माण आधारित अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन अच्छा रहा क्योंकि उसे चीन की उत्पादकता और मांग की मदद हासिल थी और रूस से सस्ती प्राकृतिक गैस आसानी से मिल रही थी। अब भू-राजनीतिक कारणों से वृद्धि के ये दोनों कारक सीमित हो गए हैं। वर्ष 2024 में जर्मनी के सालाना आधार पर 0.2 फीसदी वृद्धि हासिल करने का अनुमान है जबकि इसके 1.3 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान जताया गया था। इससे पिछले वर्ष 0.3 फीसदी की गिरावट आई थी। यूनाइटेड किंगडम की मंदी में राजनीति की भी भूमिका रही है। 2016 में यूरोपीय संघ से अलग होने के निर्णय के असर अब नजर आने शुरू हुए हैं। इसके अलावा दिक्कत देह घरेलू राजनीति का एक अर्थ यह भी है कि देश नए आवास और अधोसंरचना तैयार करने में नाकाम रहा है। इससे उपभोक्ता अपेक्षाकृत गरीब महसूस कर रहे हैं। कमजोर उपभोक्ता मांग ने अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर धकेल दिया।
आज दुनिया भर में आर्थिक वृद्धि के समक्ष राजनीति एक जोखिम के रूप में उभरी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में बेहतर प्रदर्शन करने वाले देशों में शामिल अमेरिका भी इस खतरे से मुक्त नहीं है। अमेरिकी बाजार जहां रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंच रहे हैं लेकिन कंपनियों ने आय के इस सत्र में लाल सागर पर हो रहे हमलों तथा इजराइल और फिलिस्तीन पर मतभेद के कारण घरेलू बहिष्कार का असर अपने मुनाफे पर पड़ने के खतरे का जिक्र शुरू कर दिया है। फास्ट फूड चेन मैकडॉनल्ड के इजराइल में कारोबार के असंगठित बहिष्कार ने पिछली तिमाही में उसके प्रदर्शन पर बुरा असर डाला है।
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश चीन भी तेज वृद्धि के दिनों से दूर हो गया है। पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने ब्याज दरों में कटौती नहीं करने का निर्णय लिया। हालांकि देश कमजोर मांग और अचल संपत्ति के संकट के बीच अपस्फीति के मुद्दे से जूझ रहा है। गत माह चीन में उच्च मूल्य वाले अचल संपत्ति लेन-देन का आकार 2023 के समान महीने की तुलना में एक तिहाई कम था। चीन के जीडीपी के आकार और वृद्धि को मद्देनजर रखते हुए अगर वृद्धि को बहाल करना है तो बाजार में सुधार आवश्यक है। ब्रिटेन की मंदी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। देखना यह है कि वह अपने देश को मंदी के दौर से कैसे निकालते हैं।