India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

बुलडोजर पर रोक रहेगी

04:10 AM Sep 19, 2024 IST
Advertisement

सर्वोच्च न्यायालय ने एक अन्तरिम आदेश जारी कर किसी भी राज्य में आगामी 1 अक्तूबर तक बुलडोजर का इस्तेमाल कर विभिन्न अपराधों में संलिप्त होने के आरोप लगने पर लोगों की निजी सम्पत्ति के ढहाये जाने पर रोक लगा दी है और आदेश दिया है कि इन दो सप्ताहों के अन्तराल के बीच किसी भी आरोपी की निजी सम्पत्ति के विरुद्ध कोई भी राज्य सरकार बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं कर सकती है। पिछले लगभग दो वर्षों के दौरान कुछ राज्यों में जिस प्रकार की बुलडोजर कार्रवाई करके केवल आरोप लगने पर ही संदिग्ध लोगों के मकान व वाणज्यिक प्रतिष्ठान धराशायी किये जा रहे थे उसे संविधान की नजर में कानून से इतर कार्रवाई कहा जा रहा था क्योंकि भारत में किसी भी अपराधी को सजा सुनाने का अधिकार केवल अदालतों के पास होता है। मगर कुछ राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश में यह चलन चल पड़ा था कि किसी व्यक्ति के विरुद्ध किसी अपराध में संलिप्त होने का आरोप लगने के बाद उसकी सम्पत्ति को धराशायी करने का आदेश राज्य सरकार सम्पत्ति के अवैध तरीके से बने होने के नाम पर दे देती थी और इस सम्बन्ध में आवश्यक कानूनी व अदालती औपचारिकताओं का पालन भी नहीं करती थी। इस बारे में राज्य सरकार पर ये आरोप भी लग रहे थे कि वह एक ही सम्प्रदाय विशेष के लोगों के खिलाफ उनकी सम्पत्ति के विनाश की कार्रवाई को अंजाम देती है।
यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पिछले महीने भी 2 सितम्बर को आया था जिसमें न्यायालय ने कहा था कि निजी सम्पत्ति पर बुलडोजर चलाने के मामले में अखिल भारतीय स्तर पर वह दिशा-निर्देश जारी करेगा। मगर ताजा मामले में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई व के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि मामले की अगली सुनवाई की तारीख 1 अक्तूबर तक पूरे देश में निजी सम्पत्ति पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई पर रोक रहेगी। मगर जो सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण हुए हैं और भवन या निर्माण कार्य हो रहा है उनके विरुद्ध सरकारी कार्रवाई जारी रहेगी। इनमें सार्वजनिक गलियों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों व जल कुंडों आदि की जमीन आती है। न्यायमूर्तियों ने स्पष्ट आदेश दिया कि यदि इस दौरान एक भी सम्पत्ति को अवैध तरीके से गिराया जाता है तो वह संविधान का सीधा उल्लंघन होगा। इससे पूर्व भी सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है कि किसी आपराधिक गतिविधि में संलिप्त आरोपी को तो छोड़िये किसी अपराधी के मकान को भी सरकार बिना कानूनी प्रक्रियाएं पूरी किये नहीं गिरा सकती है। इस सन्दर्भ में सबसे बड़ा मूल सवाल यह खड़ा होता है कि किसी एक व्यक्ति के अपराध की सजा उसके पूरे परिवार को किस प्रकार दी जा सकती है। कथित अारोपी पर अपराध सिद्ध हो जाने पर अदालत केवल उसे ही व्यक्तिगत रूप से सजावार घोषित करती है मगर उसका मकान ढहाये जाने पर उसकी खता की सजा उसके पूरे परिवार को निरपराध होने के बावजूद भुगतनी पड़ती है।
भारत की न्यायप्रणाली का आधार ही यही है कि बेशक बीसियों अपराधी छूट जायें मगर किसी निरपराध को सजा नहीं मिलनी चाहिए। अतः मानवता की दृष्टि से कथित बुलडोजर न्याय को हम आधुनिक तालिबानी या प्राचीन सुल्तानी न्याय ही कहेंगे जिसमें मानवीयता के अंग को उठाकर ताक रख दिया जाता है। जबकि भारत के लोकतन्त्र में सबसे ज्यादा जोर नागरिकों को राज्य के खिलाफ मिले मौलिक अधिकारों पर दिया गया है। बेशक सम्पत्ति का अधिकार अब केवल संवैधानिक अधिकार ही है मगर भारत में हर व्यक्ति को अपने सिर पर छत डालने का जायज अधिकार है और कथित बुलडोजर इस अधिकार को कहीं हाशिये पर डालता है। मगर आश्चर्य की बात यह भी कम नहीं है कि लोकतन्त्र में उत्तर प्रदेश सरकार की बुलडोजर कार्रवाई का अनुकरण करने दूसरे राज्यों की सरकारें भी सस्ती लोकप्रियता बटोरने के चक्कर में आगे आयीं। इससे पूरे देश में कानून के राज के प्रति उपेक्षा का सन्देश ही जाता है और राजनैतिक क्षेत्रों में इस आरोप को बल मिलता है कि एेसी बुलडोजर कार्रवाई चुनीन्दा आधार पर एक सम्प्रदाय विशेष के लोगों के खिलाफ बहुत तेजी के साथ होती है जबकि कानून की नजर में कोई भी व्यक्ति हिन्दू या मुसलमान नहीं होता बल्कि केवल एक नागरिक होता है जिसके अपने मूल अधिकार होते हैं। विगत 2 सितम्बर को जब सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों ने बुलडोजर कार्रवाई की वैधता पर सवाल खड़े किये थे तो उसके बाद एक राज्य सरकार ने कहा था कि उसकी बुलडोजर कार्रवाई जारी रहेगी । इतना ही नहीं एेसी कार्रवाई का महिमामंडन भी किया गया और इसे न्यायपूर्ण तक ठहराने के समर्थन में बयान दिये गये। यदि एेसा हुआ है तो इसका क्या निदान हो सकता है? और क्या चुनाव आयोग यह सब सुन रहा है जिससे इस बारे में कुछ नियम आदि गढे जा सकें। यह आंकलन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों का है। इसलिए यह साफ होना चाहिए कि बुलडोजर कार्रवाई का उपयोग जो लोग समाज में विद्वेष पैदा करने की गरज से करना चाहते हैं वे संविधान का न केवल उल्लंघन करते हैं बल्कि सामाजिक भाईचारे के विरुद्ध भी परोक्ष रूप से काम करते हैं।

Advertisement
Next Article