इंसानी दिमाग में चिपः अच्छे और बुरे पहलू
विज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है – वि ज्ञान । वि का अर्थ है विशेष और ज्ञान का अर्थ है जानना। इस प्रकार किसी विशेष को जानना ही विज्ञान है। दूसरे शब्दों में कहें तो विशिष्ट प्रकार का ज्ञान ही विज्ञान है। विज्ञान ने आज हमारे जीवन को बदल कर रख दिया है, मनुष्य जीवन को बहुत ही सुविधाजनक बना दिया है। अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि विज्ञान किसी वरदान से कम नहीं। आज इंसान ने बैलगाड़ी से लेकर अंतरिक्ष तक की यात्रा का सफर तय कर लिया है। विज्ञान से मानव को असीमित शक्ति प्राप्त हुई है। आज मनुष्य विज्ञान की सहायता से पक्षियों की भांति आसमान में उड़ सकता है। गहरे से गहरे पानी में सांस ले सकता है। पर्वतों को लांघ सकता है तथा कई मीलों की दूरियों को चंद घंटो में पार कर सकता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में तो विज्ञान ने आश्चर्यजनक चमत्कार किए हैं। आज दुर्लभ से दुर्लभ बीमारी का इलाज भी विज्ञान ने ढूंढ निकाला है, आज चिकित्सा बहुत आसान हो गई है। एक्स रे मशीन की सहायता से शरीर के अंदर के भागों का रहस्य जाना जा सकता है । शरीर के किसी भी भाग का ऑपरेशन किया जाना संभव है। लेजर के आविष्कार से बिना चीरफाड़ के ऑपरेशन किए जा रहे हैं। अंग प्रत्यारोपण की सुविधा आज विज्ञान की वजह से संभव हो पाई है। रक्तदान, प्लास्टिक सर्जरी जैसे दुर्लभ कार्य आज विज्ञान की वजह से संभव है। स्मार्टफोन पर बैठे ही अपना इलाज करवा कर, दवाइयों की होम डिलीवरी भी करवा सकते हैं । इसने समय और पैसे दोनों की बचत की है। कोविड-19 महामारी के दौरान हमने देखा कि वैज्ञानिकों ने इसके उपचार के लिए वैक्सीन को कुछ महीनों में ही बना दिया। अन्यथा किसी भी रोग के उपचार की दवा खोजते-खोजते और बाजार तक आते-आते कई वर्ष लग जाते थे लेकिन विज्ञान वरदान भी है और अभिशाप भी। इस पर हमेशा से ही बहस होती रही है। विज्ञान का दुरुपयोग भी कम नहीं हो रहा है।
अमेरिकन अरबपति एलन मस्क ने ऐलान किया है कि इंसानी दिमाग में चिप लगाने का पहला परीक्षण सफल रहा है। एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक ने यह सफलता हासिल की है। मस्क ने कहा है कि जिस व्यक्ति के दिमाग में चिप लगाई गई है, उसकी सेहत में सुधार हो रहा है। मस्क ने सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा कर यह जानकारी दी। न्यूरालिंक को यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने बीते साल मई में ही इंसानी दिमाग में चिप लगाने की मंजूरी दी थी। एलन मस्क ने कहा कि शुरुआती नतीजे काफी उत्साहजनक हैं। न्यूरालिंक की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, इंडीपेंडेंट इंस्टीट्यूशनल रिव्यू बोर्ड से मंजूरी मिल चुकी है। मेडिकल डिवाइस प्राइम का ट्रायल सफल रहा था, जिसमें वायरलेस ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस का परीक्षण किया गया था। इस परीक्षण का उद्देश्य इंसानी दिमाग में चिप लगाने की सेफ्टी का आकलन किया गया था।
न्यूरालिंक एक स्टार्टअप है, जिसकी शुरुआत मशहूर अरबपति एलन मस्क ने साल 2016 में कुछ वैज्ञानिकों और इंजीनियर्स के साथ मिलकर की थी। न्यूरालिंक ब्रेन चिप इंटरफेस बनाने का काम करती है, जिन्हें इंसानी खोपड़ी में इंप्लांट किया जा सकेगा। इस चिप की मदद से दिव्यांग लोग जो चल-फिर नहीं सकते या बात नहीं कर सकते या देख नहीं देख सकते, वे फिर से कुछ हद तक बेहतर जीवन जी सकेंगे। चिप की मदद से न्यूरल सिग्नल को कंप्यूटर या फोन जैसी डिवाइस पर ट्रांसमिट किया जा सकेगा। हालांकि मस्क की कंपनी को आलोचना भी झेलनी पड़ रही है। दरअसल कंपनी ने लैब में जानवरों पर पहले चिप लगाने के परीक्षण किए थे, जिसके लिए कंपनी की खूब आलोचना हुई थी। साल 2022 में कंपनी को अमेरिका की केंद्रीय जांच का भी सामना करना पड़ा था। आरोप है कि कंपनी ने परीक्षण के दौरान 1500 जानवरों की जान ली, इनमें चूहे, बंदर, सुअर आदि शामिल हैं। हालांकि कंपनी ने इन आरोपों को नकारा था।
न्यूरालिंक अभी जिस टेलीपैथी तकनीक का ह्यूमन ट्रायल कर रही है, उसका अगले 5-6 वर्षों में कॉमर्शियल यूज करने का लक्ष्य है। कई बीमारियों के इलाज में ये तकनीक वरदान तो साबित हो सकती है लेकिन एक दूसरा पहलू भी है। ये तकनीक वरदान की जगह अभिशाप भी साबित हो सकती है, विनाशकारी भी हो सकती है। इससे प्राइवेसी को खतरा रहेगा। चिप के जरिए किसी इंसान के दिमाग पर भी कंट्रोल किया जा सकेगा। क्योंकि जो व्यक्ति यह चिप अपने मस्तिष्क में लगाएगा तो उसकी पहुंच वाला व्यक्ति उसके विचारों को पढ़ पाएगा। उसे क्या याद है उसे समझ पाएगा। यानी इंसान क्या सोच रहा है यह भी पता चल जाएगा। इस नई तकनीक से यह भी सम्भावना जताई जा रही है कि यह इंसान के लए लत की तरह साबित होगा। यानी जो इंसान इसे यूज करेगा वह बार-बार इसका उपयोग करना चाहेगा। इसके अलावा इंसान की वास्तविक रुचि भी कम होने की सम्भावना जतई जा रही है कि व्यक्ति अपने जीवन के अनुभवों पर काम न करके जीवन के अनुभवों पर विश्वास न करके केवल टेक्नोलाजी के माध्यम से ही जीवन को देखेगा। यह ऐसी लत बनकर सामने आएगी कि व्यक्ति खुद के अहसास को समझने में मुश्किल महसूस करने लगेंगे। इसका एक नकारात्मक पहलू यह भी होगा कि यह काफी महंगी होगी। इसे खरीदने की क्षमता सिर्फ अमीर लोगों में ही होगी।