मणिपुर में गृहयुद्ध की स्थिति
मणिपुर में हिंसा शुरू हुए लगभग सवा साल हो चुके हैं लेकिन राज्य अभी भी शांति का इंतजार कर रहा है। ऐसे लगता है जैसे राज्य में गृह युद्ध छिड़ा हुआ है। स्नाइपर राइफल, मोर्टार, बम और हैंड ग्रेनेड तो हिंसा में इस्तेमाल किए ही जा रहे थे लेकिन अब मैतेई और कुकी समुदायों के आतंकी संगठनों के पास अत्याधुनिक हथियार और उपकरण पहुंच चुके हैं। ड्रोन से किए गए बम हमलों और राकेट हमलों ने सरकार और सुरक्षा बलों के लिए नई चिन्ताएं खड़ी कर दी हैं। सुरक्षा बलों को अपने ही देश की भूमि पर युद्ध लड़ना पड़ रहा है। हिंसा के बढ़ते मामलों को देखते हुए सुरक्षा एजेंसियों और केन्द्रीय बलों ने राज्य के सीमांत क्षेत्रों में कुछ ड्रोन रोधी सिस्टम्स तैनात किए हैं ताकि किसी भी तरह के खतरनाक ड्रोन को रोका जा सके। सीआरपीएफ ने भी एक ड्रोन रोधी प्रणाली का परीक्षण किया है और इसे राज्य में तैनात बल को प्रदान किया गया है। सीआरपीएफ द्वारा जल्द ही कुछ और ड्रोन रोधी बंदूकें राज्य में लाई जा रही हैं। वहीं राज्य पुलिस ने भी अपने सुरक्षा उपायों को बढ़ाने और ड्रोन से होने वाले खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए ड्रोन रोधी प्रणाली की खरीद की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
मणिपुर के आसपास की पहाड़ियों में तलाशी अभियान चलाने के लिए अतिरिक्त पुलिस बलों को तैनात किया गया है।
हवाई गश्त के लिए सैन्य हैलीकाप्टर लगाए जा रहे हैं। राज्य में घाटी और पहाड़ से लगने वाले इलाकों में पिछले एक साल से बंकर बने हुए हैं। मैतेई और कुकी समुदाय में खाई इतनी चौड़ी हो चुकी है कि अब दोनों समुदाय के लोग एक-दूसरे के सामने हथियार तान कर खड़े हुए हैं। हर एक के कंधे पर हथियार है। कोई नहीं जानता कब कौन किस की तरफ से गोलियां बरसाना शुरू कर देगा। मणिपुर में शांति बहाली की उम्मीदों को टूटता देख इम्फाल घाटी में स्थानीय संगठन ने पब्लिक इमरजैंसी घोषित कर दी है। लोग मणिपुर छोड़ने के लिए अपना सामान बांध रहे हैं। बाजार बंद है। सवाल यह भी है कि मणिपुर के उग्रवादी संगठनों को अत्याधुनिक हथियार कैसे मिल रहे हैं और वह इतने ताकतवर कैसे बन रहे हैं। हिंसा में लगातार बढ़ाैतरी हो जाने के बावजूद राज्य सरकार हाथ पर हाथ रख कर बैठी है और केन्द्र सरकार की भी खास प्रतिक्रियाएं सामने क्यों नहीं आ रही। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने पहली बार 10 जून को नागपुर में मणिपुर को लेकर टिप्पणी की थी।
उन्होंने कहा था कि 10 वर्ष पहले मणिपुर में शांति थी। ऐसा लगा था कि वहां बंदूक संस्कृति खत्म हो गई है लेकिन राज्य में अचानक हिंसा बढ़ गई। उन्होंने सरकार को परामर्श दिया था कि मणिपुर की स्थिति पर प्राथमिकता से विचार किया जाए। श्री मोहन भागवत ने गत 6 सितम्बर को मणिपुर की स्थिति पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि मणिपुर के हालात कठिन हैं। अब राज्य में सुरक्षा का कोई भरोसा नहीं है। उन्होंने कहा कि चुनौतियों के बावजूद संघ के कार्यकर्ता दोनों समुदायों की मदद और माहौल सामान्य करने की कोशिशें कर रहे हैं। संघ कार्यकर्ता न ही वहां से भागे हैं और न ही हाथ पर हाथ रख कर बैठे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में दोनों समुदायों में खाई पाटने में काफी समय लगेगा। संघ प्रमुख के इस वक्तव्य के बाद भलेे ही राजनीति की जा रही हो लेकिन केन्द्र सरकार जातीय विभाजन को जल्द से जल्द पाटने के लिए दोनों समूहों से बातचीत का मार्ग प्रशस्त करने के प्रयासों में जुटी है लेकिन राज्य की एन. बीरेन सरकार कहीं नजर नहीं आ रही। राज्य सरकार की विफलता को देखते हुए उसकी मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। केन्द्र सरकार अगर चाहती तो एन. बीरेन को बदल सकती थी लेकिन उसने अब तक ऐसा नहीं किया है।
राज्य में हिंसा बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को मणिपुर हाईकोर्ट से अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में आदिवासी कुकी ने एकजुटता मार्च निकाला। इसी के बाद भड़की हिंसा ऐसी शक्ल लेगी, किसी ने नहीं सोचा था। कुकी और मैतेई समुदायों के 220 से अधिक लोग और सुरक्षाकर्मी मारे जा चुके हैं। मणिपुर में जनजातियों का आपसी संघर्ष कोई नया नहीं है लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि दो समुदायों में इतनी गहरी खाई बन गई जो लगातार बढ़ती जा रही है। कुकी और नगा जनजाति दोनों मिलकर मणिपुर की कुल जनसंख्या का लगभग 40 फीसदी (25% और 15%) हैं। दोनों ईसाई हैं और उनको जनजाति का दर्जा और आर्थिक आरक्षण की सुविधा प्राप्त है। मैतेई समुदाय जनसंख्या के 50 फीसदी से थोड़े अधिक हैं और अधिकांश हिन्दू हैं। मैतेई जनसंख्या का 8 फीसदी मुस्लिम हैं जिसे ‘मैतेई पंगल’ कहते हैं। मणिपुर में मैतेई समुदाय का दबदबा है। इस समुदाय के ज्यादातर लोग इंफाल वैली में ही रहते हैं।
दोनों समुदायों में केवल आरक्षण ही हिंसा का कारण नहीं है। दोनों ही समुदाय में वर्षों से अविश्वास बना हुआ है।
मणिपुर में हथियार और गोला-बारूद अशांत म्यांमार से आ रहा है। क्योंकि म्यांमार भी लगातार अस्थिरता से जूझ रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मणिपुर में भारत विरोधी शक्तियां भी सक्रिय हैं। मणिपुर को लेकर अब केन्द्र को खामोश नहीं बैठना चाहिए। केन्द्र अब शिथिलता छोड़ सजग होकर काम करे अन्यथा अशांति मणिपुर के लिए खराब साबित हो सकती है। बेहतर यही होगा कि राजनीतिज्ञ दोनों समुदायों में विश्वास बहाली के लिए सामने आएं और सुरक्षा बल नई रणनीति के साथ काम करें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com