मौत बांटते कोचिंग सैंटर
देशभर में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए कोचिंग सैंटर डैथ सैंटर बन चुके हैं। कोचिंग सैंटरों का कारोबार शासन के दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ाकर चल रहा है। छात्रों को सुनहरी भविष्य का सपना दिखा कर मौत बांटी जा रही है। शनिवार की शाम राजधानी दिल्ली के ओल्ड राजेन्द्र नगर के कोचिंग सैंटर में हुए हादसे में तीन छात्रों नेविन डोल्विन, तान्य सोनी और श्रेया यादव की दुखद मौत हो गई। केरल का रहने वाला नेविन आईएएस की तैयारी कर रहा था और वह जेएनयू से पीएचडी भी कर रहा था। उत्तर प्रदेश की श्रेया यादव ने अभी एक महीना पहले ही इस कोचिंग सैंटर में दाखिला लिया था। कोचिंग सैंटर के बेसमेंट में लाइब्रेरी चल रही थी जहां 150 छात्रों के बैठने की व्यवस्था थी। हादसे के वक्त 35 छात्र मौजूद थे। चंद मिनटों में ही बेसमेंट में पानी भर गया। अचानक बेसमेंट में पानी कैसे भरा यह जांच का विषय है। अनेक छात्र बाहर निकलने में सफल रहे क्योंकि बेसमेंट में आने-जाने का एक ही गेट था वह भी बायमैट्रिक था जिससे बाहर निकलने में परेशानी हुई। बेसमेंट में पानी निकालने में भी फायर ब्रिगेड को काफी मशक्कत करनी पड़ी। इसके बाद छात्रों के शव मिले। पानी भरने का कारण पाइप फटना और ड्रेनेज सिस्टम को माना जा रहा है। परिवार वालों ने और छात्रों ने स्वर्णिम भविष्य के सपने संजो कर और लाखों की फीस देकर कोचिंग शुरू की होगी लेकिन उन्हें नहीं पता था कि उन्हें इस तरह मौत मिलेगी। छात्रों की मौत को महज हादसा नहीं माना जा सकता, यह एक तरह से निर्मम हत्या है और हत्यारा है सिस्टम। हादसे से आक्रोशित छात्रों का कहना है कि वे 10-12 दिन से दिल्ली नगर निगम से कह रहे हैं कि ड्रेनेज सिस्टम की सफाई कारवाई जाए लेकिन किसी भी जनप्रतििनधि और जिम्मेदार अधिकारियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। हादसे तभी होते हैं जब नियमों और कानूनों को ताक पर रखा जाता है। जिन लोगों पर निगम और कानून लागू करवाने का दायित्व होता है वह आंखें बंद करके बेखबर रहते हैं। भ्रष्ट तंत्र अपनी जेबों में पैसे डाल बच्चों की जिंदगियों से खिलवाड़ करते रहते हैं। दिल्ली के मुखर्जी नगर के कोचिंग सैंटर में पिछले साल जून के महीने में हुए अग्निकांड के खौफनाक दृश्य तो अब तक लोगों के जहन में हैं, कैसे जान बचाने के लिए छात्रों ने छत से कूदकर जान बचाई थी। बेसमेंट में स्टोर बनाने की अनुमति थी लेकिन उसमें लाइब्रेरी बना कर मौत की सुरंग में बदल डाला गया।
गुजरात के सूरत शहर के कोचिंग संस्थान में आगजनी की घटना में 20 छात्रों की मौत के बाद राज्य सरकारों या स्थानीय निकायों ने कोई सबक नहीं सीखा। शहर में सारे नियमों को ताक पर रखकर कोचिंग संस्थानों का संचालन हो रहा है। कोचिंग संस्थानों के पास समुचित भवन का अभाव है। साथ ही वहां छात्रों के बैठने की भी समुचित व्यवस्था नहीं होती है। पड़ताल में पाया गया कि शहर के व्यावसायिक और पॉश इलाकों में कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह खुले हैं लेकिन वहां भवन की समुचित व्यवस्था नहीं है। कई कोचिंग संस्थान कंिक्रट युक्त एक कमरे या हॉल में ही संचालित होता है, जहां पढ़ने वाले छात्रों को भेड़-बकरी की तरह बैठाया जाता है। सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि जब बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं है तो पठन-पाठन भी ठीक से नहीं होगा। पेयजल एवं शौचालय की व्यवस्था भी नहीं है। कई कोचिंग संस्थानों के तो नाम के बोर्ड तक गायब हैं।
कोचिंग का हब समझे जाने वाले राजस्थान के कोटा शहर में कोचिंग संस्थानों की क्या हालत है वह किसी से छिपी हुई नहीं है। कोचिंग सैंटर के संचालक और प्रशासन का अमला क्या इस बात का अनुमान नहीं लगा सकता है कि हादसे की स्थिति में बेसमेंट से बाहर निकलने का कोई दूसरा रास्ता भी होना चाहिए। हर बार सरकारें और स्थानीय निकाय गाइड लाइंस जारी करता है लेकिन इनका पालन कोई नहीं करता। कोचिंग संस्थान के संचालन के लिए भवन नैशनल बिल्डिंग कोड के अनुरूप होना चाहिए। वहीं छात्रों के पठन-पाठन के लिए बैठने की व्यवस्था से लेकर सुरक्षा उपकरणों से लैस कमरे होने चाहिए। इमारत में डबलडोर, हवादार कमरे और पानी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। कोचिंग संस्थानों में सुरक्षा के उपाय कहीं नजर नहीं आते। कमरों में पंखों तक की कमी खटकती है। अधिकांश कोचिंग संस्थानों में शौचालय और पेजयल की कमी भी देखने को मिलती है। कोचिंग संस्थान चालने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर नगर निकायों से अनुमति लेनी होती है। संस्थान चलाने के लिए 3000 स्क्वायर फीट क्षेत्रफल न्यूनतम किया गया है। कोचिंग संस्थान बेसमेंट से लेकर छतों पर अस्थाई ढांचे का निर्माण कर चलाए जा रहे हैं। हर हादसे पर सियासत होती है लेकिन कोचिंग सैंटर माफिया इतना ताकवर है कि उसके आगे कोई कुछ नहीं बोलता। ऐसा क्यों है यह सब जानते हैं। मानसिक तनाव और दबाव के चलते छात्र पहले ही आत्महत्याएं कर रहे हैं। हादसे में प्रतिभाशाली छात्र मौत का ग्रास बन रहे हैं लेकिन उनकी मौत पर परिवार वालों के अलावा कोई आंसू नहीं बहाता। उनकी मौत पर हो रही है सिर्फ सियासत। युवाओं का आक्रोश बड़ों-बड़ों को लील लेता है। अच्छा यही होगा कि छात्रों की जान बचाने के लिए पुख्ता प्रबंधक किये जाए और दोषियों को दंडित किया जाए। नियमों का पालन नहीं करने वाले संस्थानों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए।