Coalition Government in South Africa: दक्षिण अफ्रीका में गठबंधन सरकार !
Coalition Government in South Africa: दक्षिण अफ्रीका में पिछले 30 वर्षों से सत्ता में काबिज अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस (एएनसी) आम चुनावों में बहुमत से पिछड़ गई है। इसके साथ ही देश में सत्ता की लड़ाई भी शुरू हो चुकी है। 1994 में नेल्सन मंडेला इसी पार्टी की तरफ से देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे। एएनसी को 40.21 फीसदी वोट पड़े हैं। हालांकि वह पहले स्थान पर रही है लेेकिन 400 सीटों वाली नैशनल असैंबली में उन्हें 159 सीटें ही हासिल हुई जबकि बहुमत का आंकड़ा 201 है। सैक्स स्कैंडल और भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते पूर्व राष्ट्रपति जैकब जूमा की एमके पार्टी को 58 सीटें मिली हैं। इसके अलावा डैमोक्रेटिक अलायंस ने 87 सीटें जीती हैं। इकोनोमिक फ्रीडम फाइटर पार्टी ने 39 सीटें जीती हैं। 3 प्रांतीय चुनावों में भी एएनसी को हार का सामना करना पड़ा है। अब एएनसी को गठबंधन सरकार बनाने के लिए अन्य दलों से बातचीत करनी होगी। एएनसी खासतौर पर मुख्य विपक्षी पार्टी डैमोक्रेटिक अलायंस के साथ गठबंधन कर सकती है जिसका मुख्य एजैंडा बिजनेस फ्रैंडली माना जाता है। कहा जा रहा है कि जैकब जूमा किंग मेकर की भूमिका निभा सकते हैं। एएनसी के सामने दो ही विकल्प हैं, या तो वह जैकब जूमा के साथ समझौता करके सरकार बनाए या फिर अन्य दलों का समर्थन ले। इसके साथ ही देश में राष्ट्रपति के पद को लेकर मामला फंसता नजर आ रहा है। राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा पद छोड़ने को तैयार नहीं और जैकब जूमा ने स्पष्ट कर दिया है कि रामाफोसा के पद पर बने रहने तक वह गठबंधन नहीं करेंगे। जैकब जूमा पर गंभीर आरोप लगने पर उन्हें 2018 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। इसके बाद ही उन्होंने नई पार्टी बनाई थी। इसके बावजूद देश की जनता ने उन्हें वोट दिए और उनकी सीटों का आंकड़ा 58 पर पहुंचाया।
दक्षिण अफ्रीका के कारोबारी जगत में भारत के गुप्ता भाइयों का रसूख हुआ करता था। तीनों ने देश के राजनीतिक घरानों तक अपनी पहुंच बनानी शुरू कर दी। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा साल 1999 से 2005 तक देश के उपराष्ट्रपति थे। साल 2000 में गुप्ता ब्रदर्स जैकब जुमा के संपर्क में आए। जुमा पर भ्रष्टाचार और दोस्त की एड्स पीड़ित बेटी से रेप करने के आरोप लगे। जैकब जुमा को उपराष्ट्रपति पद से हटा दिया गया। उन्हें 15 साल की सजा भी मिली। उस वक्त गुप्ता ब्रदर्स ने जैकब जुमा की 5 बीवियों और 23 बच्चों की पूरी तरह मदद की। जुमा के बच्चों को अपने यहां नौकरी पर रखा। जैकब को राष्ट्रपति बनाने के लिए भारी भरकम रकम खर्च की।
साल 2016 में तत्कालीन उप वित्त मंत्री मसोबिसि जोनास ने आरोप लगाया कि गुप्ता बंधुओं ने उन्हें वित्त मंत्री बनवाने का वादा किया था। इसके बाद तीनों पर यह भी आरोप लगे कि गुप्ता ब्रदर्स ने जैकब जुमा के साथ संबंधों का इस्तेमाल कर गलत तरीके से अपने कारोबार को बेतहाशा बढ़ाया। साथ ही राजनीति में भी दखल देने लगे। बवाल इस कदर बढ़ गया कि दक्षिण अफ्रीका में कभी बहुत लोकप्रिय रहे पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा को इन भाइयों की वजह से अपनी कुर्सी तो गंवानी ही पड़ी, उन्हें 15 महीने जेल में भी रहना पड़ा। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में बढ़ती बेरोजगारी, असमानता, भ्रष्टाचार और बुनियादी सरकारी सेवाओं में कमी जैसे मुद्दाें की वजह से एएनसी को हार का सामना करना पड़ा है। जनादेश का अर्थ यही है कि मतदाताओं ने इस चुनाव में बदलाव केे लिए मतदान किया है लेकिन असैंबली के त्रिशंकु होने से अब गठबंधन सरकार बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। इस बार आम चुनावों में 52 से भी ज्यादा राजनीतिक दलों ने भाग लिया।
राजनीतिक दलों की बढ़ती संख्या लोकतंत्र के लिए अच्छी है या खराब इस मामले में राय अलग-अलग हो सकती है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि राजनीतिक दलों की संख्या में बढ़ौतरी मौजूदा सियासी पार्टियों के प्रति अविश्वास का प्रदर्शन है और राजनीतिक दलों की बढ़ती संख्या ऊर्जावान राजनीतिक माहौल की तरफ इशारा करती है। किसी भी लोकतंत्र में नई आवाजें और मंच उभरते रहते हैं तो उसे उत्साह से भरा हुआ लोकतंत्र माना जाता है। हालांकि कुछ चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि बहुत ज्यादा राजनीतिक दलों की मौजूदगी से वोट बहुत बंट जाते हैं। ऐसे में लोगों के वोट लोकतंत्र को मजबूत करने की बजाय बर्बाद ही जाते हैं। बहुदलीय राजनीति में आम लोगों को इस बात की इजाजत मिलनी चाहिए कि अपनी पसंद की सरकार चुने लेकिन बहुत ज्यादा राजनीतिक दलों के होने से फैसले अस्पष्ट हो जाते हैं। जैसे कि दक्षिण अफ्रीका में हुआ। दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों समेत सभी समुदायों के वोट बंटे। देखना होगा कि मुख्यधारा की तीन बड़ी पािर्टयां किस तरह से सरकार बनाती हैं आैर देश में आज भी विषम परिस्थितियों में रहने वाले लोगों के जीवन को सहज बनाने का काम करती हैं। देश में आर्थिक आधार पर होने वाला रंगभेद आज भी बड़ी समस्या बना हुआ है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com