गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान की गाथा से देशवासी अंजान
गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान की बदौलत ही आज हिन्दू धर्म कायम है वरना जिस तरह से मुगल बादशाह औरंगजेब ने देश में केवल एक धर्म करने की ठान रखी थी अगर गुरु तेग बहादुर जी ने अपनी शहादत देकर हिन्दू धर्म की रक्षा न की होती तो औरंगजेब अपने मंसूबों में कामयाब हो गया होता। बात 1675 ई. की है, जब देश में औरंगजेब का राज था और उसने ठान रखी थी कि सभी को इस्लाम कबूल करवायेगा जो उसके आदेश की अवहेलना करता उसे मौत के घाट उतार दिया जाता। हिन्दू धर्म में पहले सभी लोग जनेऊ धारण करते थे भाव एक मामूली सा धागा जिसे आज भी शादी ब्याह या परिवार में किसी सदस्य की मौत के समय धारण किया जाता है। औरंगज़ेब 1.25 मण जनेऊ जिसका वजन कुछ एक ग्राम होता है, उतरवाने के बाद ही रात का भोजन किया करता था। पंडित कृपा राम की सरप्रस्ती में कश्मीरी पंडितों के समूह ने गुरु तेग बहादुर जी के समक्ष पहुंचकर फरियाद लगाई। उस समय गुरु साहिब के समीप उनका 9 वर्षीय पुत्र गोबिन्द राय भी बैठा हुआ था जो कि बाद में गुरु गोबिंद सिंह के नाम से प्रख्यात हुए। गुरु जी ने कहा कि इसका एकमात्र समाधान है कि अगर कोई महान पुरुष अपने प्राणों की आहुति दे दो तो औरंगज़ेब का कहर रुक सकता है। यह बात सुनकर बालक गोबिंद राय ने कहा कि पिताजी आप से बड़ा बलिदानी कौन हो सकता है। आप ही आगे आकर इन पंडितों की समस्या का समाधान करें। इस पर गुरु तेग बहादुर जी ने पंडितों से कहा कि आप जाकर औरंगज़ेब से कह दें कि अगर हमारे गुरु तेग बहादुर को इस्लाम कबूल करवा दें तो सभी हिन्दू इस्लाम धारण कर लेंगे। औरंगज़ेब को जैसे ही इसकी भनक लगी वह आग बबूला हो गया तथा गुरु जी को कैद कर दरबार में पेश करने का हुक्म सुना दिया गया।
औरंगज़ेब के इस आदेश की पालना करते हुए सिपाहियों ने गुरु तेग बहादुर जी को आगरा के गुरु का ताल से कैद कर लिया और लोहे के खुले पिंजरे में डालकर सड़क के रास्ते दिल्ली लाकर गुरुद्वारा सीस गंज साहिब के साथ कोतवाली में कैद करके रखा गया। कोतवाली वाले स्थान पर आज गुरुद्वारा साहिब की पार्किंग बनी हुई है। जिस पिंजरे में गुरु जी को कैद किया गया वह पिन्जरा ऐसा था कि उसमें कोई इन्सान सीधा खड़ा भी नहीं हो सकता था। खुले पिंजरे में डालकर लाने का मकसद सभी को संदेश देना था कि उन्हें बचाने की बात करने वाला स्वयं कैद हो चुका है इसलिए अब हिन्दुओं के पास कोई विकल्प नहीं रह गया। गुरु तेग बहादुर जी को सज़ा देने के लिए सुनहरी मस्जिद से फतवा सुनाया गया और गुरु जी से पहले उनके साथ लाये गए भाई मतिदास, भाई सतिदास, भाई दयाला जी आदि को कई प्रकार के कष्ट देकर शहीद किया गया कि शायद यह देखकर गुरु जी अपना इरादा बदल लें। भाई मतिदास के शरीर को दो हिस्सों मंे बांटते हुए आरे से चीर दिया गया, भाई सतिदास को रूई में लपेट कर आग के हवाले किया गया, भाई दयाला जी को उबलते पानी में डाला गया। आखिरकार वह समय आ गया जब गुरु तेग बहादुर जी को शहीद करने के लिए बीच चौक पर लाया गया। गुरु जी ने इससे पहले कुएं से स्नान किया और ‘‘तेरा किया मीठा लागे ‘‘कहते हुए हंसते-हंसते शहादत देने के लिए पहुंच गए। जल्लाद ने गुरु जी के शीश पर तलवार से वार कर उनका शीश धड़ से अलग कर दिया। उसी दौरान इतना तेज़ तूफान आया और धूल भरी आंधी चलने लगी। इसी का फायदा उठाकर गुरु जी के धड़ को लेकर लक्खी शाह वणजारा निकले और अपने निवास पर लाकर उसमें आग लगाकर गुरु जी के धड़ का संस्कार किया। आज उस स्थान पर गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब सुशोभित है।
बागपत के रास्ते शीश लेकर निकले भाई जैता जी :गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद उनका धड़ तो लख्खीशाह बन्जारा लेकर निकल गये पर शीश वहीं रह गया और औरंगजेब के भय के चलते कोई उसे हाथ तक लगाने को तैयार नहीं था। उसी समय भाई जैता जी ने फुर्ती के साथ शीश को एक टोकरे में रखकर औरंगजेब के सिपाहियों को चकमा देकर कीरतपुर साहिब के लिए दौड़ पड़े। देर शाम बागपत पहुंचे और रात्रि विश्राम वहीं पर किया गया जिसके पुख्ता सबूत भी मिलते हैं मगर न जाने क्यों इतिहासकारों के द्वारा इस स्थान का जिक्र ना करते हुए बड़ खालसा के रास्ते जाने का हवाला दिया जाता रहा है। पिछले 4 वर्षांे से सिख बुद्धिजीवी चरनजीत सिंह और उनकी टीम के द्वारा इस स्थान की पहचान कर दिल्ली के गुरुद्वारा शीशगंज साहिब से पैदल यात्रा शहीदी पर्व से एक दिन पहले निकाली जाती है और बागपत के उस स्थान पर जहां गुरुद्वारा साहिब भी हैं पहुंचकर कीर्तन समागम करवाया जाता है। हालांकि पूरे गांव में केवल एक सिख परिवार है परन्तु गैर सिख परिवारों के द्वारा पूर्ण श्रद्धाभावना के साथ गुरुद्वारा साहिब में सेवा निभाई जाती है और शहीदी पर्व को भी बढ़-चढ़कर मनाया जाता है। अब ढाडी जत्थों के द्वारा इस स्थान का जिक्र किया जाने लगा है। बागपत में रात बिताने के पश्चात् अगले दिन सुबह भाई जैता जी तरावड़ी पहुंचे और उसके बाद अंबाला, नाभा होते हुए कीरतपुर साहिब पहुंचे और फिर आनन्दपुर साहिब पहुंचकर शीश गुरु गोबिन्द सिंह जी की झोली में डाल दिया। गुरु गोबिन्द सिंह जी के द्वारा पिता गुरु तेग बहादुर जी के शीश का संस्कार आनन्दपुर साहिब में किया गया। उस समय माता गुजरी जी भी मौजूद थीं। अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कितना विशाल हृदय होगा माता जी का तथा कैसे उन्होंने उस समय स्वयं को संभाला होगा। उसी समय बालक गोबिंद राय ने प्रण किया था कि अनोखी खालसा कौम तैयार की जायेगी जो अत्याचारियों का नाश कर मानवता की सेवा के लिए तत्पर रहेगी।
शीश गंज साहिब जाने वाली संगत के अब नहीं होंगे चालान: गुरुद्वारा शीशगंज साहिब दर्शनों को जाने वाली संगत को 20 हजार के चालान की समस्या का सामना करना पड़ रहा था जिसके चलते सिख समाज में काफी रोष देखा जा रहा था। भाजपा नेता गुरमीत सिंह सूरा के द्वारा इस मसले को पूर्वी दिल्ली में करवाए गये गतका मुकाबला की स्टेज से दिल्ली भाजपा अध्यक्ष और सांसद गौतम गंभीर के समक्ष उठाये जाने के बाद सभी राजनीतिक दलांे और जत्थेबंिदयों के द्वारा भी इस पर चर्चा की जाने लगी। सभी का मकसद एक ही था कि किसी भी तरह से इस पर रोक लगाई जाए मगर एकजुट होकर मसले को उठाने के बजाए सभी लोग अपने दम पर मसले का समाधान करवाने में लगे रहे। भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा, दिल्ली कमेटी पदाधिकारियों को साथ लेकर दिल्ली के उपराज्यपाल से भी मिले, उन्हें उस स्थान पर भी लेकर गये जहां कैमरे लगे हुए थे। उप राज्यपाल ने आश्वासन भी दिया कि जल्द ही मसला हल किया जायेगा। दिल्ली कमेटी पदाधिकारियों ने जिन लोगों के चालान हुए थे उन्हें कमेटी कार्यालय में जमा करने पर रद्द करवाने की बात भी कही। मगर मसले का कोई हल निकलता ना देख जागो पार्टी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने 17 दिसम्बर को शहीदी पर्व वाले दिन कैमरे तोड़ने का ऐलान कर दिया। अब ऐसे में भाजपा को लगा कि अगर ऐसा हो गया तो मनजीत सिंह जीके सिख समाज की नजरों में हीरो बन जायंेगे इसके चलते भाजपा नेता अर्जुन सिंह मारवाह, इश्प्रीत सिंह, पूर्व मेयर उत्तरी दिल्ली अवतार सिंह के द्वारा कैमरों का मुंह मोड़ने की कार्रवाई कर डाली जिसकी जानकारी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष आर.पी. सिंह के द्वारा सोशल मीिडया पर दी गई। जागो पार्टी द्वारा इसका श्रेय लेते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली और कहा कि उनके कार्यकर्ताओं के द्वारा इसे करवाया गया है। उधर दिल्ली कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका का कहना था कि उप राज्यपाल के दौरे के बाद से किसी का भी चालान नहीं आ रहा मगर कुछ लोग जिनकी दुकानदारी इस मसले पर चल निकली थी वह बिना वजह संगत को गुमराह करने में लगे हैं। डा. गुरमीत सिंह सूरा ने सभी सिख जत्थेबंदियों, राजनीतिक पार्टियों से अपील की कि ऐसे गंभीर मुद्दों पर राजनीति करने के बजाए एकजुटता के साथ हल करवाने के लिए आगे आना चाहिए ताकि वहां से हमेशा के लिए कैमरा हटाए जाए इसके साथ ही सभी को मिलकर गुरुद्वारा मजनूं टीला का रास्ता भी खुलवाना चाहिए उससे भी संगत को काफी परेशानी आ रही है।
- सुदीप सिंह