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बिलकिस बानो के अपराधी

02:00 AM Jan 09, 2024 IST
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सबसे पहले यह समझने की सख्त जरूरत है कि हमारे संविधान निर्माताओं की नजर में भारत की संरचना का मूल हिन्दू-मुसलमान नहीं था बल्कि मानवीयता था जिसकी बुनियाद पर दुनिया की इस सबसे बड़ी लिखित कानूनी किताब में भारत देश की परिकल्पना की गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने आज एतिहासिक फैसला देकर जिस तरह गुजरात राज्य की महिला ‘बिलकिस बानो’ के साथ 2002 में हुए सामूहिक बलात्कार व हत्या के ‘सजा माफ’ 11 दोषियों को जेल भेजने का आदेश दिया है उससे सिद्ध हो गया है कि गांधी के इस देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ‘अन्याय’ के खिलाफ ‘न्यायपालिका’ सिर्फ और सिर्फ ‘मानवता’ को अपना आधार मान कर चलेगी। इन सभी ‘सजा माफ’ अपराधियों ने न केवल गर्भवती बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया था बल्कि उसकी ‘अबोध बच्ची’ की भी सिर पटक कर हत्या की थी। बिलकिस बानो हिन्दू-मुसलमान होने से पहले ‘स्त्री’ थी और उसके साथ जघन्य अपराध करने वाले लोग भी सबसे पहले हिन्दू-मुसलमान न होकर केवल जुल्म ढहाने वाले आततायी और अपराधी थे। बेशक भारत में सरकारों को किसी बाजाब्ता मुजरिम की सजा माफ करने का अधिकार है जिसे ‘रेमिशन पालिसी’ कहा जाता है मगर इन 11 अपराधियों के मामले में 2022 में ही खुद सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह का फैसला दिया था उससे इन अपराधियों के हौसले बढ़ गये थे और जेल से बाहर आने के बाद जिस तरह उन्हें ‘संस्कारी बलात्कारी’ बता कर उनके महिमामंडन की राजनीति चल निकली थी उससे स्वयं ‘इंसाफ’ ही ‘जख्मी’ होता नजर आ रहा था। 2022 में सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने फैसला दिया था कि इन 11 अपराधियों की सजा माफी 1992 के उस कानून के आधार पर की गई थी जिसमें हत्या व बलात्कार के अपराधियों तक की सजा माफ करने का अधिकार राज्य सरकार के पास था जबकि 2014 में ही कानून में बदलाव कर दिया गया था कि इन दोनों अपराधों के मुजरिमों की सजा माफी को ‘रेमिशन पालिसी’ से बाहर रखा जायेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने वर्तमान में अपने पुराने फैसले को बदलते हुए साफ कर दिया है कि बिलकिस बानो के राज्य की सरकार को सजा माफी देने का हक ही नहीं था क्योंकि बिलकिस बानो का मुकदमा महाराष्ट्र में लड़ा गया है अतः इस प्रदेश की सरकार ही सजा माफी पर गौर कर सकती थी। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी भी की है कि बिलकिस बानो के राज्य की सरकार अपराधियों से मिली हुई है। भारत का लोकतन्त्र स्वतन्त्र, स्वायत्त व निष्पक्ष न्यायप्रणाली पर टिका हुआ है। हमारे संविधान निर्माताओं ने जहां विधायिका औऱ कार्यपालिका को सरकार का अंग बनाया वहीं ‘चुनाव आयोग’ व ‘न्यायपालिका’ को स्वयंभू का दर्जा दिया। इसका उद्देश्य यही था कि हर सूरत में भारत के हर नागरिक को न्याय मिले और उसके एक वोट की ताकत के बूते पर उसकी हिस्सेदारी सरकार में हो। बिलकिस बानो के अपराधियों की सजा माफ करने से एेसा गुनाह हो गया था जिसमें सुधार केवल देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ही कर सकती थी। यही काम आज हुआ है। बेशक गांधी का सिद्धान्त और लोकतन्त्र कहता है कि हर अपराधी को सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए मगर उस अपराधी का क्या किया जाये जिसके अपराध को ही समाज का ‘आभूषण’ बनाने के प्रयास कुछ लोग करते हों और इससे निकले विमर्श का उपयोग राजनीति में करते हों। हमारी भारतीय संस्कृति हमें बताती है कि बाल्मी​िक ऋषि पहले ‘डाकू’ थे मगर अपने कर्मों के लिए खुद ही जिम्मेदार होने की वजह से बाद में ‘ऋषि’ हो गये और उन्होंने रामायण जैसे ग्रन्थ की रचना कर डाली। भगवान बुद्ध के जीवनकाल में तो अंगुली माल डाकू के बुद्ध की शरण में जाने पर उसका सद्चरित्र सामने आया था। अपने जीवन के इस बदलाव को इन्होंने स्वयं ही प्रेरित किया। मगर बिलकिस बानो के बलात्कारी तो जेल से बाहर आने के बाद संस्कारी बलात्कारी बताये गये और उनके घृणित कार्य को कुछ लोगों ने सामाजिक वैधता देने का प्रयास किया। परिणाम स्वरूप पहले से ही गन्दली राजनीति एेसी घटना के बाद सिर्फ और प्रदूषित ही नहीं हुई बल्कि उसने गन्दे नाले का रूप ले लिया। हम भारत के लोग गंगा जल का आचमन करके खुद को धन्य समझते हैं। इसका मतलब एक ही है कि हम अपने जीवन को गंगा जल की तरह पवित्र और प्रदूषण मुक्त देखना चाहते हैं। ऐसे भारत के समाज में यह कैसे संभव है कि किसी अपराध या गुनाह को ही मजहबी चश्मे से देखा जाये। बिलकिस बानो मुसलमान होने से पहले भारत की बेटी है और उसके साथ न्याय होते देखना हर भारतवासी का परम कर्त्तव्य है क्योंकि हमारा संविधान हमें यही सिखाता है और बताता है। मां, बहन और बेटी हिन्दू-मुसलमान हो सकती है मगर वह एक स्त्री ही होती है और हमारी संस्कृति हमें सिखाती है कि स्त्री का सम्मान करना हमारे चरित्र में बसा होना चाहिए। केवल कहने के लिए ही स्त्री को ‘देवी’ का दर्जा नहीं दिया गया है बल्कि इसे व्यवहार में लाने की पुरजोर ताकीद की गई है जिससे अन्य लोग हमें सभ्य कह सकें। महिला के साथ हुए अन्याय को लेकर किसी हत्यारे या बलात्कारी की पैरवी दुनिया की जब कोई भी संस्कृति नहीं करती है और उसके व्यक्तिगत विकास को सभ्यता का पैमाना मानती हो तो भारत तो संस्कृतियों के समागम का देश है। इसमें हत्यारों का महिमामंडन लेशमात्र भी स्वीकार नहीं किया जा सकता और न इस पर राजनीति की जा सकती है।

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