विदेशों में भारतीय छात्रों की मौत
आज भारत की प्रतिभाएं दुनिया के छोटे-बड़े देशों में पढ़ने जा रही हैं। भारतीय छात्र मैडिकल और एमबीए या बीटेक करने कनाडा, अमेरिका, जर्मन और अन्य देशों में पहुंच रहे हैं। हालांकि विदेशों में भाषा, आवास आदि की कई समस्याएं हैं लेकिन हमारी प्रतिभा का पलायन लगातार हो रहा है। प्रतिभाओं के पलायन के साथ-साथ अरबों रुपए देश से बाहर जा रहे हैं। विदेश में पढ़ाई भारत की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी है। हालांकि भारत के सर्वश्रेष्ठ छात्र सरकारी मैडिकल कॉलेजों में दाखिला पा लेते हैं। जो प्रवेश नहीं पाते वह कनाडा, अमेरिका, जर्मन, यूके, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की ओर आकर्षित हो जाते हैं। भारत में मैडिकल या उच्च शिक्षा निजी संस्थानों में बहुत महंगी है। मां-बाप भी अपनी कमाई हुई पूंजी खर्च करके बच्चों का करियर बनाने के लिए विदेश भेजने के इच्छुक रहते हैं। विदेशों में पढ़ रहे छात्रों की सुरक्षा की जिम्मेदारी वहां के संस्थानों और वहां की सरकारों की बनती है।
अमेरिका में एक के बाद एक चार भारतीय छात्रों की मौत हो गई है इससे विदेश में पढ़ने वाले छात्रों की सुरक्षा को लेकर डर पैदा हो गया है और नाराज नेटिज़न्स ने यात्रा सलाह की मांग की है। पर्ड्यू विश्वविद्यालय के नील आचार्य, जॉर्जिया में एमबीए के छात्र विवेक सैनी और इलिनोइस विश्वविद्यालय के अकुल बी. धवन की मौत के बाद गुरुवार को सबसे ताजा मामला सिनसिनाटी में लिंडनर स्कूल ऑफ बिजनेस के छात्र श्रेयस रेड्डी बेनिगेरी का है। बेनिगेरी की मौत की घोषणा करते हुए न्यूयॉर्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास ने कहा कि पुलिस जांच चल रही है, जबकि नेटिज़न्स के बीच भारतीय छात्रों के लिए एक सलाह की मांग तेज़ हो गई है।
हरियाणा के रहने वाले छात्र विवेक सैनी की जिस तरह से निर्मम हत्या की गई है उससे भारतीय समुदाय में हड़कम्प मचा हुुआ है। विवेक सैनी ने अमेरिका में एमबीए की पढ़ाई के दौरान एक फूड मार्ट में पार्ट टाइम जॉब शुरू की थी। विवेक ने अमेरिका मूल के एक बेघर व्यक्ति जूलियन फाकनर की मदद की थी। नशे की लत के शिकार फाकनर को जब उसने फूड मार्ट से बाहर जाने को कहा तो अचानक उसने विवेक पर हथौड़े से लगभग 50 वार कर मौत के घाट उतार दिया। उसकी निर्मम हत्या का वायरल वीडियो देखकर खौफ पैदा हो गया है। कुछ छात्रों की मौत के कारणों का अभी तक पता नहीं चल रहा। यद्यपि भारतीय वाणिज्य दूतावास मृत छात्रों के परिवारों से सम्पर्क कर उन्हें हर सम्भव सहायता प्रदान कर रहा है लेकिन छात्रों के शवों को भारत भेजना ही एकमात्र काम नहीं होना चाहिए। ओपन डोर्स रिपोर्ट के अनुसार दुखद घटनाएं अमेरिका में पढ़ने वाले 10 लाख से अधिक विदेशी छात्रों में से 25 प्रतिशत से अधिक भारतीय छात्रों के साथ हो रही हैं। उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका जाने वाले भारतीयों की संख्या में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और पिछले वर्ष 2,68,928 छात्र अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंचे हैं। पिछले साल भारत में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास ने एक लाख 40 हजार भारतीय छात्रों को वीजा जारी किया था। अगर कनाडा की बात करें तो पिछले 5 वर्षों में विदेशी धरती पर कम से कम 403 भारतीय छात्रों की मौत हुई है। 2018 के बाद से केवल कनाडा में 91 भारतीय छात्रों की मौत हुई है। मौत की वजह अलग-अलग है। इसमें कई बार आपदा, दुर्घटना और मैडिकल कारणों से भी मौतें हुई हैं। एक वर्ष में कनाडा में 48, रूस में 40, अमेरिका में 36, आस्ट्रेलिया में 35, यूक्रेन में 21 और जर्मनी में 20 भारतीय छात्रों की मौत हुई है। भारत के वरिष्ठ अधिकारी विदेशों में छात्रों और उनके संगठनों से बातचीत करते हैं और शैक्षणिक संस्थाओं का दौरा भी करते हैं। यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि किसी भी आपराधिक मामले की ठीक से जांच हो और अपराधी को सजा मिले। अमेरिका में बंदूक संस्कृति के चलते हर तीसरे दिन निर्दोष लोगों के मारे जाने की खबरें आती रहती हैं। कनाडा में सक्रिय खालिस्तानी तत्वों की साजिशों के चलते वहां भारत विरोधी गतिविधियों और राजनीतिक रूप से घृणा अपराधों और हिंसा को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। विदेशों का भारतीय छात्रों की कब्रगाह बनना भारतीयों को चिंतित कर रहा है। बेहतर होता कि भारतीय छात्रों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा अपने देश में ही मिले ताकि वे देश में ही रहकर अपने सपने पूरे कर सकें। यद्यपि नरेन्द्र मोदी सरकार स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे का विस्तार कर रही है लेकिन केवल मैडिकल कालेजों की संख्या बढ़ाना ही अच्छा समाधान नहीं हो सकता। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए बेहतर शिक्षकों की जरूरत पड़ती है। शिक्षा उच्च मानकों पर आधारित होनी चाहिए और सस्ती भी होनी चाहिए।
भारत में सरकारी और निजी मैडिकल कॉलेजों में एमबीए, बीटेक कराने वाले कॉलेजों में एक-एक सीट के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा है और निजी कॉलेजों में एक-एक सीट लाखों में बिकती है। रूस, यूक्रेन, चीन, फिलिपीन्स जैसे देशों में पढ़ाई भारत की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी और सस्ती है। जिस तेजी के साथ अमेरिका, कनाडा भारतीय छात्रों के लिए असुरक्षित बनते जा रहे हैं अब समय आ गया है कि भारतीय विदेश मंत्रालय उच्च शिक्षा और काम के अवसरों के लिए विदेश जाने वाले छात्रों के लिए यात्रा परामर्श जारी करे और लोगों को वहां की स्थितियों से अवगत कराया जाए। भारतीय समुदाय विदेश मंत्रालय से त्वरित कार्रवाई का आग्रह कर रहा है। जिन मां-बाप के बेटों की मृत्यु हुई है उनके आंसू तो कोई नहीं पोंछ सकता।