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धनखड़ और जया बच्चन !

03:47 AM Aug 11, 2024 IST
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संसदीय लोकतन्त्र में संसद पर पहला अधिकार विपक्ष का होता है। यह मैं नहीं कह रहा बल्कि लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष श्री जी.वी. मावलंकर ने कहा था। मगर इसके बावजूद 1953 में लोकसभा में उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। बेशक वह प्रस्ताव भारी मतों से गिर गया था मगर श्री मावलंकर जैसी हस्ती को अपने विरुद्ध विपक्षी नेताओं के आरोपों को अपने आसन से उतर कर उनके बीच बैठकर ही सुनना पड़ा था। कहा जा सकता है कि वह दौर दूसरा था जिसमें तत्कालीन संसद में पक्ष से लेकर विपक्ष तक में अधिकतर स्वतन्त्रता सेनानी ही थे। वर्तमान दौर में जिस तरह संसद की गरिमा व प्रतिष्ठा लगातार गिर रही है वह शोचनीय है। राज्यसभा के सभापति उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष अविश्वास का संकल्प (रिजोल्यूशन) लाना चाहता है जो कि बहुत ही गंभीर मामला है। यदि यह संकल्प राज्यसभा में सत्तारूढ़ एनजीए की संख्या को देखते हुए गिर भी जाता है तो इसे लोकसभा में भी पारित कराना होगा जहां एनडीए के संख्या बल को देखते हुए इसका गिर जाना निश्चित है। लोकसभा से इसका पारित कराना इसलिए जरूरी है क्योंकि लोकसभा व राज्यसभा के सदस्य मिलकर ही उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।
लोकतन्त्र में निरापद कोई भी नहीं होता और संसद के हाथ में सर्वाधिकार होते हैं परन्तु मूल प्रश्न यह है कि यह स्थिति क्यों आयी ? हम संसद के सत्र के चलते इसकी कार्यवाही सीधे टीवी चैनल पर देखते हैं। इसमें आसन पर बैठे हुए धनखड़ साहब के व्यवहार को भी देखते हैं। विपक्षी सांसदों के वक्तव्यों के बीच में जिस प्रकार के व्यवधान वह पैदा करते हैं उससे उनके लोकाचार का आभास होता है। इसके साथ ही हम पक्ष-विपक्ष के विभिन्न सांसदों का भी व्यवहार देखते हैं। इनके बीच सन्तुलन बनाने का काम सभापति का होता है। धनखड़ साहब राज्यसभा के पदेन सभापति हैं अतः वह इसके सदस्यों के अधिकारों के संरक्षक हैं और ये अधिकार सत्ता व विपक्ष के सांसदों के बराबर के होते हैं। यदि पूरे सदन का संरक्षक किसी एक पक्ष के साथ भेदभाव करता है तो इससे पद का सम्मान व प्रतिष्ठा धूमिल होती है। धनखड़ साहब जिस पद पर हैं उस पर कभी सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन से लेकर भाजपा नेता भैरोसिंह शेखावत तक बैठ चुके हैं अतः उन्हें अपने व्यवहार का आत्मालोचन करके आगे की दिशा तय करनी चाहिए।
दूसरी तरफ बजट सत्र के अन्तिम दिन समाजवादी पार्टी की सदस्य श्रीमती जया बच्चन ने सदन में जिस तरह का व्यवहार किया वह भी उचित नहीं कहा जा सकता। जया बच्चन को अपना पूरा नाम लिये जाने पर आपत्ति थी जिसमें उनके पति अमिताभ बच्चन का नाम भी जुड़ा हुआ है। यदि सभापति उन्हें उनके पूरे नाम से पुकारते हैं तो इसमें एेतराज क्यों होना चाहिए? जिस प्रकार श्री धनखड़ को अति वाचाल माना जाता है उसी प्रकार की छवि जया बच्चन की भी है। उन्होंने तो भरे सदन में अपने पिछले कार्यकालों में से किसी एक में यहां तक कह दिया था कि यदि मुम्बई में बाढ़ आने की वजह से उनके पति अमिताभ बच्चन एक सप्ताह तक स्नान नहीं कर सके तो देश में क्रान्ति आ जायेगी। अतः जया बच्चन का यह कहना कि श्री धनखड़ उनसे इस बात के लिए माफी मांगें कि उन्होंने जया बच्चन को यह कह दिया कि वह होंगी बहुत बड़ी हस्ती ‘मैं इसकी परवाह नहीं करता”। हालांकि सदन के संरक्षक होने के नाते श्री धनखड़ को हर सदस्य की परवाह करनी चाहिए। मगर श्री धनखड़ द्वारा विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खड़गे का माइक बन्द कर देना भी पूरी तरह अनुचित कहा जायेगा।
संसदीय लोकतन्त्र में विपक्ष जनता की आवाज माना जाता है क्योंकि इसके नेता सत्तारूढ़ पक्ष के मुकाबले आम जनता के सम्पर्क में अधिक रहते हैं और कोई भी नागरिक जाकर उन्हें अपना दुखड़ा सुना सकता है। इसलिए श्री धनखड़ का उनके बारे में भरे सदन में यह कह देना कि वह देश में अराजकता पैदा करना चाहते हैं, लोकतन्त्र में कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकता। लोकतन्त्र तभी कारगर तरीके से चलता है जब विपक्ष की आवाज पर सत्ता पक्ष तुरन्त कार्यवाही करता है और सदन को आश्वस्त करता है कि लोकतन्त्र की असली मालिक इस देश की जनता ही है। धनखड़ साहब का व्यवहार इस मामले में संतुलित नहीं रहा है क्योंकि वह विपक्ष के नेताओं को अपनी पूरी बात करने से रोकते हैं और बीच-बीच में बार-बार टोका-टाकी करते हैं और इस हद तक करते हैं कि जब विपक्ष के नेता किसी घटना या उदाहरण का जिक्र करते हैं तो उनसे उसका सत्यापन करने के लिए कहते हैं। वह स्वयं ही सदन के भीतर सत्ता पक्ष के पक्षकार तक बन जाते हैं और नई-नई परंपरा डालते रहते हैं।
लोकतन्त्र में संसद एेसा स्थान होता है जहां इसके सदस्य बिना किसी खौफ-ओ-खतर के बोलते हैं। यह संसद सदस्यों का विशेषाधिकार होता है। विपक्ष का कर्त्तव्य होता है कि वह सरकार को लगातार उसकी नीतियों के प्रति सचेत करता रहे और जमीनी हकीकत से उसका सामना कराता रहे। मगर जया बच्चन का भी यह कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने निजी मामले को ज्यादा तूल न दें और सभापति से माफी मांगने की जिद पर न अड़ें। जहां तक श्री धनखड़ के खिलाफ अविश्वास संकल्प लाने का प्रश्न है तो विपक्ष इसके लिए स्वतन्त्र है। इसकी वजह यही लगती है कि श्री धनखड़ का सदन में व्यवहार उसकी राय में पक्षपातपूर्ण रहा है। जब से वह सभापति की कुर्सी पर बैठे हैं तभी से विपक्ष को उनके बर्ताव पर गुस्सा है जो आज लावा बनकर फूट पड़ा है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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