मैला ‘आंचल’
शैल्टर होम यानि संरक्षण गृह का अर्थ एक ऐसी जगह से है जहां हर कोई सुरक्षित हो। राज्यों के समाज कल्याण विभाग का काम ऐसे शैल्टर होम चलाना है, जहां बेसहारा लड़कियां या महिलाएंसुरक्षित जीवन बिता सकें। शैल्टर होम अनाथ बच्चों के लिए भी होते हैं लेकिन इन शैल्टर होम्स का सच कुछ और ही है। ऐसी-ऐसी कहानियां देश के सामने आ चुकी हैं जो कल्पनाशीलता से भी ज्यादा हैं। शैल्टर होम्स से लेकर नारी निकेतन तक नरक निकेतन बन गए हैं। इनका सबसे बुरा पहलु यह है कि यहीं पर बच्चियां और महिलाएं शोषण का शिकार हो रही हैं। बिहार का मुजफ्फरपुर हो या उत्तर प्रदेश में देवरिया और हरदोई। एक के बाद एक ऐसे किस्से खुल चुके हैं जिससे न सिर्फ अपराधियों, व्यवस्था पर ही नहीं बल्कि पूरे समाज पर सवाल खड़े किए थे। बिहार के मुजफ्फरपुर शैल्टर होम रेप कांड में तो बिहार के समाज कल्याण मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा था। देवरिया के बालगृह में यौन शोषण के मामलों की जांच तो सीबीआई के हवाले की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी मामलों में कड़ा रुख अपनाया था। कोर्ट ने हर बार सवाल उठाया था कि आखिर इन संरक्षण गृहों की नियमित जांच क्यों नहीं की जाती। बाल गृह चलाने वाले एनजीओ को राज्य सरकारों की तरफ से फंडिंग क्यों जारी रहती है।
देशभर में इन कांडों की गूंज सुनाई दी। धरने-प्रदर्शन भी हुए लेकिन सवाल यह है कि ऐसे संरक्षण गृहों में बच्चियों की आवाज उठाने वाला कोई सामने नहीं आता। मध्य प्रदेश के भोपाल में एक अवैध शैल्टर होम से 26 लड़कियों के गायब होने से हड़कम्प मच गया था। प्रशासन द्वारा की गई तुरंत कार्रवाई से सभी बच्चियां सुरक्षित मिल गई हैं। यह सभी लड़कियां मध्य प्रदेश, गुजरात, झारखंड आैर राजस्थान से हैं। इस मामले में तीन लोगों को निलम्बित किया गया है। मामला तब सामने आया जब राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के चेयरमैन ने भोपाल के बाहरी इलाके में स्थित आंचल गर्ल्स होस्टल का अचानक दौरा किया और पाया कि होस्टल में 68 लड़कियों की एंट्री मिली उनमें 26 गायब थीं। यह ‘आंचल’ मैला ही साबित हुआ। शैल्टर होम के डायरैक्टर अनिल मैथ्यू कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए।
हैरानी की बात तो यह है कि मध्य प्रदेश की राजधानी में यह शैल्टर होम बिना किसी मंजूरी के चलाया जा रहा था। इसका प्रबंधन एक मिशनरी कर रही थी। उसने कुछ बच्चों को सड़कों से उठाकर बिना किसी लाइसैंस के चल रहे शैल्टर होम में गुप्त रूप से रखा और उन्हें ईसाई धर्म का पालन करने के लिए मजबूर किया गया। अब यह जांच का विषय है कि अब यह पूरा मामला मानव तस्करी का है या धर्म परिवर्तन का। ऐसे मामलों पर सियासत भी होती है। आरोपों-प्रत्यारोपों से कुछ नहीं होता क्योंकि इन सतही आरोप-प्रत्यारोप से न सिर्फ कड़वाहट बढ़ती है, बल्कि बात किसी नतीजे तक भी नहीं पहुंचती। इसमें तो किसी की कोई दोराय नहीं हो सकती कि इस मामले के आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि यहां की पीड़ित लड़कियों और महिलाओं का पुनर्वास कैसे किया जाए। क्योंकि सामान्य तौर पर अदालतें या स्थानीय प्रशासन किसी तरह के शोषण या उत्पीड़न की सूरत में महिलाओं को नारी निकेतन भेजता है लेकिन यहां तो उसी जगह पर ही वे शोषण का शिकार हो गईं। जाहिर है घर उन्हें भेजा नहीं जा सकता, क्योंकि अगर कोई घर होता तो वे इन आश्रय स्थलों में आती ही क्यों। इन महिलाओं की ऐसी अवस्था हो गई है, जहां उनके पुनर्वास के बारे में हमारे पास सैद्धांतिक रूप से भी कोई जगह बचती नहीं दिखाई दे रही।
इस तरह के मामलों में अक्सर यह देखा जाता रहा है कि महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर जितनी ज्यादा बंदिशें और इंतजाम सरकार द्वारा किए जाते हैं, महिलाएं उतनी ही ज्यादा असुरक्षित होती जाती हैं। क्योंकि यहां उनके शोषण के सूत्रधार बाहर के नहीं भीतर के व्यक्ति होते हैं और जो इंतजाम महिलाओं की सुरक्षा के लिए किए जाते हैं ये अंदर के लोग उन इंतजामों का उपयोग महिलाओं के शोषण के लिए फूलप्रूफ शोषण के औजार के तौर पर करते हैं। इन मामलों में यह भी देखने में आता है कि बहुत से आश्रय संचालक बिना किसी पर्याप्त व्यवस्था के सरकारी मदद के लालच में आश्रय खोल लेते हैं, जबकि वे यहां व्यवस्थाएं नहीं कर पाते और ज्यादातर मामलों में बहुत कम खर्च पर कर्मचारियों को यहां तैनात करते हैं। कई बार ये कर्मचारी भी कम भरोसेमंद होते हैं।
इन शैल्टर होम्स की हालत बहुत निराशाजनक होती है। कई बार लड़कियों की मौतों की खबरें भी आती रहती हैं। न यहां स्वच्छता होती है, न ही सुविधाएं। देशभर में कुकरमुत्तों की तरह उगे इन आश्रय स्थलों की जांच नियमित रूप से बहुत जरूरी है। समस्या यह है कि कोई अधिकारी इनकी नियमित जांच करने का प्रयास ही नहीं करता। अगर जिला अधिकारी या कोई अन्य सक्षम अधिकारी हर महीने इनकी जांच करे और इनमें रह रही बच्चियों और महिलाओं से मिले और मानवीय नजरिये से काम करे तो सारा सच सामने आ सकता है। कई बार बच्चियां और महिलाएं दबाव में होती हैं और अपनी शिकायतें ठीक से नहीं बता पातीं तो उनके हावभाव को भी समझना जरूरी है। बेहतर यही होगा कि इन शैल्टर होम्स को भविष्य की उम्मीदों का आश्रय बनाया जाए। यह भी जरूरी है कि यौन शोषण, धर्म परिवर्तन और मानव तस्करी में लिप्त लोगों को दंडित किया जाए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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