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ईश्वर के घर में आपदा

06:25 AM Aug 01, 2024 IST
ईश्वर के घर में आपदा

केरल को ईश्वर का अपना देश कहा जाता है क्योंकि यह भारत में सबसे समृद्ध जैव विविधता वाला राज्य है जो प्रकृति के उपहार साल भर हरे रहने वाले पत्तों और विविधता से भरपूर जंगल और साफ समुद्र तटों और पश्चिमी घाट के शानदार परिदृश्यों से धन्य है। पोराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार ऋषि परशुराम ने अपनी कुल्हाड़ी से केरल का निर्माण किया था। केरल एक समय पानी से भर गया था तो ऋषि परशुराम ने अपनी कुल्हाड़ी को पानी में फैंक दिया था जिससे पानी कम हो गया और जो भूमि बनी उसी पर आधुनिक केरल स्थापित है। राज्य में पदम नाधन मंदिर से लेकर सबरीमाला मंदिर तक अनेक आस्था के केन्द्र हैं जिससे केरल भगवान के अपने देश के रूप में लोकप्रिय है। भगवान के घर में कुदरत के कहर का पहाड़ टूट पड़ा है। अपने खूबसूरत प्राकृतिक नजारों के लिए मशहूर वायनाड पर ऐसी प्राकृतिक आपदा आई जिसमें चार गांव दफन हो चुके हैं। अब तक 156 लोग मर चुके हैं और 100 से अधिक लापता हैं। वायनाड में मंगलवार तड़के पहाड़ से बहकर आए सैलाब ने हाहाकार मचा दिया। इस आपदा ने 11 साल पहले उत्तराखंड के केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा की दुखद यादें ताजा कर दी हैं। जो रात में सोया था उसे उठने तक का मौका नहीं मिला आैर सुबह मलबे में मिली उनकी लाशें। चारों तरफ बर्बादी को देखकर हर कोई सहम उठा है।

16-17 जून, 2013 यानी 11 साल पहले वो खौफनाक रात यादकर आज भी लोग सहम उठते हैं। उत्तराखंड के चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिलों में उस रात भयानक बारिश के बाद फ्लैश फ्लड और लैंडस्लाइड हुई। अलकनंदा, भागीरथी और मंदाकिनी नदियों ने रौद्र रूप धारण किया और बर्बादी के निशान पीछे छोड़ दिए। गोविंदघाट, भींडर, केदारनाथ, रामबाड़ा और उत्तरकाशी धराली जैसे इलाके नक्शे से ही गायब हो गए। इन इलाकों में 10 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई। हजारों लोग तो मिले ही नहीं। वायुसेना की मदद से 1.10 लाख से ज्यादा लोगों को बचाया गया। केदारनाथ में उस खौफनाक रात पहाड़ों से बहकर ऐसी तबाही आई थी। दरअसल, चोराबारी ग्लेशियर पर बनी प्राकृतिक झील की बर्फीली दीवार टूटने से फ्लैश फ्लड आई और केदारनाथ धाम से लेकर हरिद्वार तक (करीब 250 किलोमीटर दूर) तबाही और बर्बादी देखने को मिलीं।
उत्तराखंड की आपदा के बाद कहा गया कि भगवान रुद्र उत्तराखंड से नाराज हैं। मनुष्य ने प्राकृति से जो छेड़छाड़ की है उससे सृजन और​ विध्वंस के देवता भगवान शिव क्रोधित हो उठे हैं। अब सवाल यह है कि ईश्वर के घर में प्राकृतिक आपदा क्यों आई। राज्य के मुख्यमंत्री पी. विजयन कहते हैं कि यह 100 साल की सबसे बड़ी आपदा है। इससे पहले ऐसी आपदा कभी नहीं देखी गई।

इससे पहले केरल में अगस्त 2018 में आई प्राकृतिक आपदा में 500 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इस आपदा को ‘सदी की बाढ़’ कहा गया था। लोगों की जान ही नहीं गई बल्कि सम्पत्ति और आजीविका भी नष्ट हो गई थी। केन्द्र सरकार ने भी 2018 की बाढ़ को डिजास्टर ऑफ सीरियस नेचर घोषित किया था। तब 15 लाख के लगभग लोगों को राहत शि​िवरों में शरण लेनी पड़ी थी। वायनाड में आई प्राकृतिक आपदा को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि वायनाड की पारिस्थितिकी को तो पहले ही बेहद संवेदनशील माना जाता है। पश्चिमी घाट के नजदीक होने की वजह से वहां भूस्खलन का खतरा बना रहता है। पश्चिमी घाट में तीव्र ढलान है और मानसून में भारी बारिश से मिट्टी ढीली और गीली हो जाती है। यह स्थिति प्राकृतिक रूप से पैदा होती है। इसे तत्काल रोका जाना तो मुश्किल है। इसके लिए एहतियाती उपाय ही किए जा सकते हैं।

विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि मानवीय हस्तक्षेप ने बारिश के प्रभाव को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है। घटते हुए जंगल, लगातार हो रहे ​िनर्माण और कम पौधारोपण होने की वजह से आपदाएं बढ़ रही हैं। रबर के पेड़ की जड़ें मिट्टी को एक साथ नहीं रख सकतीं, जबकि अन्य पेड़ मिट्टी के ​खिसकने की रफ्तार को धीमा कर सकते हैं या पकड़ सकते हैं। पर्यावरणविदों का यह भी कहना है कि केरल से खाड़ी देशों और अन्य देशों में काम करने गए लोगों ने जब धन अपने परिवारों को भेजना शुरू किया तो धीरे-धीरे खेती कम होने लगी। पेड़-पौधे कटने लगे। उनकी जगह मकान खड़े हो गए और हरी-भरी भूमि में कॉटेज और रिजोर्ट्स बन गए। यह भी शक है कि मानसून का पैटर्न भी तेजी से अनियमित हुआ है। केरल से लेकर महाराष्ट्र तक पश्चिमी घाट पर भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं बढ़ रही हैं। केरल के लोगाें के दिलों में भी यह सवाल है कि कहीं कुरदत ही तो बदला नहीं ले रही। सेना, एनडीआरएफ के जवान फिर से देवदूत बनकर लोगों की मदद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हर सम्भव सहायता का आश्वासन दिया है। दिनचर्या कुछ दिनों बाद फिर से शुरू हो जाएगी लेकिन वायनाड भूस्खलन की बारीकियों को गम्भीरता से समझना होगा। वर्षा के आंकड़ों की निगरानी करने और खतरे की आशंका वाले क्षेत्रों के लिए शुरूआती चेतावनी प्रणाली शुरू करने की जरूरत है। इसके लिए नई तकनीक को अपनाना भी जरूरी है। मनुष्य को यह भी समझना होगा कि वह प्रकृति से ​िखलवाड़ करेगा तो प्रकृति रौद्र रूप दिखाएगी ही। दुख की इस घड़ी में समूचा देश केरल के साथ खड़ा है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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Shivam Kumar Jha

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