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राज्यों में भेदभाव?

01:34 AM Jul 25, 2024 IST
राज्यों में भेदभाव

वित्त वर्ष 2024-25 के लोकसभा में रखे गये बजट का विपक्षी दल राज्यसभा में जिस आधार पर विरोध कर रहे हैं उससे लगता है कि आगामी समय में इसके लोकसभा में पारित होने में भी खासी दिक्कत होगी। विपक्ष का कहना है कि बजट में केवल बिहार व आंध्र प्रदेश राज्यों को ही केन्द्रीय मदद दी गई है जबकि विपक्ष द्वारा शासित राज्यों समेत अन्य राज्यों की उपेक्षा की गई है। यह सच है कि भारत राज्यों का एक संघ (यूनियन आफ इंडिया) है। अमेरिका की तरह यह फेडरेशन या महासंघ नहीं है जिसमें प्रत्येक राज्य को पूर्ण स्वायत्ता इस प्रकार होती है कि हरेक राज्य का अपना अलग से चुनाव आयोग तक भी होता है। इस बारीक अन्तर को हमें समझना होगा। हमारे संविधान निर्माताओं ने केन्द्र को मजबूत बनाये रखने की विधि इस प्रकार बनाई कि मुसीबत के समय प्रत्येक राज्य की जिम्मेदारी केन्द्र उठा सके। बेशक राज्यों को स्वतन्त्र अधिकार कानून व्यवस्था व कृषि के क्षेत्र में दिये गये मगर अन्य सभी अधिकार समवर्ती सूची या केन्द्रीय सूची में रखे गये। इसका मन्तव्य यही था कि केन्द्र व राज्यों के बीच में हमेशा मधुर सम्बन्ध बने रहें। इसी वजह से संविधान में यह व्यवस्था की गई कि केन्द्र की हर नीति या कार्यक्रम को राज्य सरकारें ही लागू करेंगी। राज्य सरकारें भी इस पेचीदगी को समझती हैं और अपना शासन सुचारू ढंग से चलाती हैं।

बजट के मामले में विपक्षी पार्टियां इसलिए आन्दोलित हैं कि बिहार व आंध्र प्रदेश को छोड़ कर अन्य किसी भी राज्य को अतिरिक्त बजटीय मदद नहीं दी गई है। हालांकि उत्तराखंड राज्य को भी आपदाओं से ग्रस्त होने की वजह से विशेष मदद वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमण ने दी है मगर वैसी ही मदद हिमाचल प्रदेश को नहीं दी गई जो कि उत्तराखंड की भांति ही पहाड़ी राज्य है और प्राकृतिक आपदाओं से घिरा रहता है। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है जबकि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। विपक्ष द्वारा उठाये गये मसले के दो पहलू हैं। एक तो आर्थिक और दूसरा राजनैतिक। आर्थिक पहलू यह है कि भारत के अधिसंख्य राज्य घाटे की अर्थव्यवस्था का शिकार हैं। पंजाब तक जैसे राज्य में घाटे का बजट पेश किया जाता है। सभी राज्यों पर लाखों करोड़ रुपये का कर्ज है तो बाकी राज्यों की स्थिति समझी जा सकती है। हालांकि बिहार व आन्ध्र प्रदेश विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग कर रहे थे। उनके साथ ओडिशा ने भी यह मांग रखी थी।

सवाल पैदा हो रहा है कि बिहार और आन्ध्र के साथ ओडिशा को भी विशेष मदद क्यों नहीं दी गई? इस राज्य में लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव हुए थे जिसमें भाजपा को भारी सफलता मिली और इसने सत्तारूढ़ बीजू जनता दल की सरकार को अपदस्थ कर दिया। राजनैतिक रूप से देखें तो इस राज्य को भी कोई विशेष मदद बजट में नहीं मिली। अतः भाजपा अपना पक्ष मजबूत रखने के लिए ओडिशा का उदाहरण दे सकती है। हकीकत यह है कि गठबन्धन की सरकारें इसमें शामिल विभिन्न घटक दलों के सहारे चलती हैं। गठबन्धन में जो सबसे बड़ा दल होता है उसका प्रतिनिधि ही ऐसी सरकार का नेतृत्व करता है।

वर्तमान में केन्द्र की एनडीए सरकार का नेतृत्व भाजपा कर रही है क्योंकि इसे अपने बूते पर बहुमत से कम 240 सीटें ही मिली हैं। आंध्र प्रदेश की तेलगूदेशम पार्टी के 16 और बिहार की जनता दल(यू) पार्टी के 12 सांसदों के समर्थन के सहारे यह सरकार टिकी हुई है हालांकि एनडीए में और भी अन्य छोटे- छोटे दल शामिल हैं। अतः ये दोनों पार्टियां अपने समर्थन की कीमत वसूल करें तो राजनिति में किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। मगर केन्द्र की भाजपा नीत सरकार भारत की सरकार है और भारत राज्यों का संघ है अतः प्रत्येक राज्य को अपना हिस्सा मांगने का अधिकार है। इसका मन्तव्य यह निकलता है कि भारत की सरकार के समक्ष सभी राज्य एक समान हैं और सबकी दुख-तकलीफ में शामिल होना भारत की सरकार का फर्ज है। मगर विपक्ष कह रहा है कि न तो केरल की वामपंथी सरकार को बजट में कुछ मिला और न ही कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को। यहां तक कि उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारों को भी अतिरिक्त धन नहीं दिया गया। वास्तव में भाजपा ने अपनी सरकार बचाये रखने के लिए आंध्र प्रदेश व बिहार को वरीयता दी।

गठबन्धन सरकारों की यह मजबूरी भी होती है कि वे अपने समर्थक दलों को वरीयता देती है । व्यावाहारिक रूप में समर्थक दल भी सरकार का हिस्सा ही होते हैं अतः वे अपने लिए विशेष रियायत ले लेते हैं। ऐसा हमने 1998 से 2004 तक रही भाजपा नीत अटल बिहार वाजपेयी सरकार के जमाने में भी देखा था जब उनकी सरकार को बाहर से समर्थन दे रही तेलगूदेशम पार्टी ने संयुक्त आंध्र प्रदेश के लिए विशेष रियायतें प्राप्त की थीं। इसके बाद 2004 से 2009 तक डा. मनमोहन सिंह की सरकार में भी ऐसे ही नजारे देखने को मिले। लालूजी की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बिहार के लिए विशेष रियायतें लेती रहती थी। लालू जी तब रेलमन्त्री थे और बिहार से चलने वाली ट्रेनों की बाढ़ लगा दी थी। मगर सिद्धान्ततः यह बात सही है कि केन्द्र की सरकार किन्हीं विशेष राज्यों को बजट में तब तक वरीयता नहीं दे सकती जब तक किऐसे राज्यों में आर्थिक आपातकाल की स्थिति ही पैदा न हो गई हो। इस मुद्दे पर आज राज्यसभा में समूचे विपक्ष ने कांग्रेस नेता श्री मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमण के वक्तव्य का बहिष्कार करके अपना पक्ष को मजबूत दिखाने का प्रयास किया। लोकतन्त्र इसकी इजाजत देता है। मगर इससे सदन में गतिरोध पैदा नहीं होना चाहिए क्योंकि बजट के धन विधेयक (मनी बिल) होने की वजह से राज्यसभा में इस पर केवल बहस ही हो सकती है और 14 दिनों के भीतर इसे लोकसभा को वापस करना पड़ता है। बजट पर मतदान केवल लोकसभा में ही होता है।

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Shivam Kumar Jha

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