खालिस्तान की आड़ में सिखों को बदनाम न करें
इतिहास इस बात का गवाह है कि कोई भी आम सिख न तो खालिस्तान चाहता है और न ही कभी उसके द्वारा इसकी मांग की गई है। सिखों को अगर खालिस्तान लेना होता तो आजादी के बाद उस समय जब अंग्रेज हकूमत देश का बंटवारा कर रही थी, हिन्दुओं को भारत और मुस्लिम को पाकिस्तान दिया गया, उसी समय सिख भी खालिस्तान ले सकते थे, मगर उन्हांेने ऐसा नहीं किया, क्यांेकि सिखों की हिन्दू भाईचारे के साथ सांझ थी, है और सदा रहेगी उसे कोई भी दुनिया की ताकत अलग नहीं कर सकती। गुरु नानक देव जी ने सिखों को ‘‘अव्वल अल्लाह नूर उपाया’’ की शिक्षा दी तो गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘‘मानस की जात सबै एकबै पहचानबो’’ पर पहरा देने को कहा। भाव सभी गुरु साहिबान ने बिना किसी धर्म, ऊंच-नीच, जाति-पाति के सभी इन्सानों को एक होकर जीने की प्रेरणा दी गई मगर आज विदेशों में बैठे कुछ लोग जो स्वयं को सिख कहते हैं मगर न तो उनमें सिखी वाली कोई बात है और न ही वह गुरु साहिब की दी हुई सिखी की मान्यताओं को पूरा करते हैं, मगर एजैंसियों के इशारों पर खालिस्तान की मांग कर समूचे सिख कौम को बदनाम करने पर तुले हुए हैं। बीते दिनों ऐसे ही एक शख्स के द्वारा कनाडा में हिन्दू भाईचारे के लोगों को कनाडा छोड़कर चले जाने की बात कही, जो कि अति निन्दनीय है। उसके इस बयान की समूचा सिख जगत निन्दा करता दिख रहा है। सिख ब्रदर्सहुड इन्टरनैशनल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमनजीत सिंह बख्शी, प्रधान महासचिव गुणजीत सिंह बख्शी ने कहा वैसे तो इस जैसे लोगों की किसी बात का जवाब देने का कोई औचित्य ही नहीं बनता, मगर फिर भी कुछ लोग अपने देश में भी ऐसे हैं जो इस जैसे सिरफिरे की बात को बढ़ावा देते हुए सिख कौम को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं, जबकि इतिहास गवाह है कि सिखों से बड़ा देशभक्त कोई नहीं है। इस देश की आजादी और आजादी से लेकर आज तक सिखों ने इस देश के लिए अनगिनत कुर्बानियां दी हैं। देश की सरहदों पर आज भी हजारों सिख सैनिक देश की रक्षा में तैनात हैं। कोरोना काल के समय जब संसार में आपदा आई, बड़ी-बड़ी जत्थेबंदीयां यहां तक कि सरकारें भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ दिखीं उस समय भी सिखों ने अपनी जान जोखिम में डालकर बिना किसी का धर्म, जाति की पहचान किए सांसों तक के लंगर लगाकर हजारों लाखों जानें बचाईं, इसलिए इस देश के लोगों को समझना चाहिए और विदेशों में बैठकर खालिस्तान की मांग करने वालों को आधार बनाकर सिख समाज पर कुछ भी बोलने से बचना चाहिए। सिखों के लिए सबसे पहले देश की एकता और अखण्डता है और उसे न तो गुरु का सच्चा सिख कभी तोड़ेगा और न ही किसी को तोड़ने देगा।
जत्थेदार अकाल तख्त की कार्यशैली पर सबकी निगाहें टिकी हैं : श्री अकाल तख्त साहिब समूचे सिखों के लिए सर्वोच्च धार्मिक संस्था है और वहां से आने वाला हर आदेश सिख को मानना अनिवार्य होता है, इसलिए श्री अकाल तख्त साहिब पर काबिज जत्थेदार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह बिना किसी पक्षपात के, बिना किसी दबाव में आकर अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करें, मगर पिछले कुछ समय से जिस प्रकार एक पार्टी या यूं कहा जाए कि एक परिवार के द्वारा जत्थेदार अकाल तख्त को अपनी मर्जी के फैसले लिफाफे में बंद करके भेजे जाते रहे हैं और जत्थेदार भी उनके आदेश पर कार्य करते दिखे हैं। उससे श्री अकाल तख्त साहिब की गरिमा को काफी चोट पहुंची है। हाल ही में श्री अकाल साहिब द्वारा सिख समाज के भारी आक्रोष के चलते अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल को उन पर लग रहे डेरा सच्चा सौदा माफीनामे, बरगाड़ी काण्ड, सुमेध सैनी की बहाली, शिरोमणि कमेटी से 90 लाख के विज्ञापन जैसे आरोपों के चलते कारण बताओ नोटिस जारी कर 15 दिनों में जवाब देने को कहा गया था। जत्थेदार अकाल तख्त विदेश दौरे पर थे मगर सुखबीर बादल का जवाब लेने के लिए वह तुरन्त अकाल तख्त पहुंच गए और बंद लिफाफे में मिले जवाब लेकर फिर से विदेश रवाना हो गए। यह भी अपने आप में कई सवालों को जन्म देता है कि ऐसी क्या आवश्यकता आन पड़ी जो विदेश यात्रा बीच में ही छोड़कर आना पड़ा और जब आ ही गये थे तो जवाब बंद लिफाफे में नहीं लिया जाना चाहिए था। चर्चा तो ऐसी भी चल रही है कि डेरा सच्चा सौदा के द्वारा तो माफी मांगी ही नहीं गई, उसे बादल परिवार की कोठी से आए आदेश के बाद उस समय के जत्थेदार ने बिना डेरा मुखी के पेश हुए माफी दे दी थी। माफीनामे का पत्र भी एक वरिष्ठ अकाली नेता के द्वारा ही लिखा गया, अब इसमें कितनी सच्चाई है कहा नहीं जा सकता पर चिंगारी वहीं उठती है, जहां आग सुलग रही हो। ऐसा शायद इसलिए भी क्यांेकि जत्थेदार भले समूची सिख कौम का हो पर होता तो वह शिरोमणि कमेटी का तनख्वाहदार मुलाजिम ही हैं। अब मुलाजिम भला अपने आका के हुकम से बाहर कैसे जा सकता है? वैसे भी अकाली फूला जैसे जत्थेदार तो अब सिख कौम के पास हैं नहीं। फिर भी कौम की निगाहें जत्थेदार अकाल तख्त पर लगी हैं कि वह सुखबीर सिंह बादल को कोई कठोर सजा देंगे या फिर मामूली सजा देकर फिर से शिरोमणि अकाली दल की बागडौर संभालने की छूट दे देंगे।
रागी जत्थों पर दिल्ली कमेटी की सख्ती : अक्सर देखने में आता है कि गुरुद्वारों में कीर्तन करने वाले रागी जत्थे पुरातन मर्यादा को दरकिनार कर आज फिल्मी धुनों या फिर म्यूजिक पर धुन बनाकर कीर्तन करने लगे हैं। कुछ रागी ऐसे हैं जो कहीं की पंक्ति कहीं जोड़कर मनघड़त कहानियां बनाकर स्टेजों से कीर्तन करते हैं, यहां तक कि एक रागी जत्था जिसकी दिल्लीवासियों में बेहद मांग भी है और अपने साथ सैंकड़ों समर्थक लेकर चलता है वह खुलेआम गुरबाणी का व्यापार करने की बात करता है फिर भी लोग उन्हें पसन्द करते हैं, मगर अब दिल्ली गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी धर्म प्रचार चेयरमैन जसप्रीत सिंह करमसर के द्वारा सख्त नोटिस लेते हुए दिल्ली के एेतिहासिक गुरुद्वारों की स्टेजों से ऐसे रागियों से कीर्तन न करवाने का फैसला लिया है, जिसकी सिख बुद्धिजीवियों के द्वारा भरपूरा प्रशंसा की जा रही है, यहां तक कि कमेटी के विरोधी भी उनके फैसले की तारीफ करते दिखे। दिल्ली कमेटी की तरह अन्य सिख संगतों को भी चाहिए कि ऐसे रागियों का बहिष्कार किया जाए तभी रागी जत्थे पुरातन मर्यादा की सीख लेकर कीर्तन किया करेंगे।
सिख पंथ में अरदास की महत्वता : सिख पंथ में अरदास की विशेष महत्वता है। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिख को अरदास की बख्शिश करते हुए साफ कहा था कि सिख जहां कहीं भी हो, पाठ के पश्चात् अरदास स्वयं करें और अगर स्वयं न भी कर पाएं तो किसी और से भी करवाएं तो भी उसकी अरदास गुरु महाराज अवश्य सुनते हैं। पहले समय में परिवार में मुखिया अपने बच्चों को गुरुबाणी, सिख इतिहास आदि की शिक्षा दिया करते थे, मगर आज के युग में जिन्दगी की भागम-भाग में शायद सबकुछ पीछे छूटता जा रहा है। हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि बच्चों को बचपन से अंग्रेजी भाषा के पीछे लगा दिया जाता है जिससे वह अपनी मातृ भाषा को बोल ही नहीं पाते। अब अगर बच्चा गुरुमुखी ही नहीं सीखेगा तो वह गुरबाणी कंठ कैसे करेगा? पाठ अरदास कैसे करेगा?
इसी के चलते ज्यादातर लोगों को गुरुद्वारा साहिब के ग्रन्थी सिंहों के पास अरदास करवाने के लिए जाना पड़ता है। बीते दिनों शिरोमणि अकाली दल के नेता स. परमजीत सिंह सरना के निवास पर जाने का मौका मिला, क्योंकि उनका समूचा परिवार मिलकर हर साल अपने बुजुर्गों की याद में कीर्तन समागम करवाता है। सहज पाठ की सम्पूर्णता की और अरदास उनके भाई जो कि पूर्व में दिल्ली कमेटी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं, हरविन्दर सिंह सरना उनके द्वारा शुद्ध अरदास की गई और हुकमनामा भी लिया। देखकर मन को सन्तुष्टि मिली की आज भी ऐसे नेता सिख कौम के पास हैं जो स्वयं अरदास करने में सक्षम हैं नहीं तो ज्यादातर नेतागण इससे कोसों दूर हैं, जो कि सिखी में आ रही गिरावट का सबसे बड़ा कारण है।