एजुकेशन लंगर सिख कौम की प्राथमिकता होनी चाहिए
गुरु नानक देव जी से लेकर सभी दस गुरु साहिबान ने सिखों को जरुरतमंदों की मदद करने के लिए प्रेरित किया। गुरु साहिबान द्वारा दी गई शिक्षा के मुताबिक हर सिख को ‘‘गुरु की गोलक - गरीब का मंुह’’ भाव गुरु की गोलक में आने वाले धन को जरुरतमंदों पर खर्च करना चाहिए पर अफसोस कि आज सिख कौम केवल लंगर लगाने और गुरुद्वारा साहिबान की इमारतों को आलीशान बनाने मंे लगी हुई है। वहीं आज भी सिखांे के अनेक परिवार ऐसे हैं जो अपने बच्चों की पढ़ाई सिर्फ इसलिए बीच मंे ही रुकवा देते हैं क्योंकि उनके पास फीस भरने के लिए पैसे नहीं होते। मगर इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा। इन्हीं पैसों को अगर जरुरतमंद परिवारों के बच्चों की एजुकेशन पर खर्च किया जाए तो ना जाने कितने लोगों का भविष्य उज्जवल बनाया जा सकता है।
उच्च पदों से सिख गायब होने का दुख सबको है, मगर क्या किसी ने इस बात की चिन्ता की है कि सिख बच्चों को आईपीएस, आईएएस, सिविल सर्विसेज की तैयारी करवाई जाए ताकि सिख बच्चे इन पदों पर आसीन हो सकें। ऐसा भी देखा जा रहा है कि गुरुपर्व के मौके पर करोड़ों रुपयों के फूलों से सजावट की जाती है जो देखने में बहुत ही सुन्दर भी दिखती है मगर इन लोगों को भी चाहिए कि सजावट में कुछ खर्च कम करके एजुकेशन में लगाये जाएं।
कुछ संस्थाएं ऐसी जरुर हैं जो जरुरतमंद बच्चों की पढ़ाई पर अपनी दसवंद के पैसे खर्च करने को प्राथमिकता दे रहे हैं, उन्हीं में से एक है फरीदाबाद के बलविन्दर सिंह। जिनके द्वारा अपने पारिवारिक सदस्यों की मदद से सिख बच्चों को सिविल सर्विसेज की तैयारी करवाई जा रही है। अभी हाल ही मंे इन्होंने दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब में सिख बच्चों के लिए जागरुकता कैंप लगाया और भाग लेने वाले बच्चों में से उन बच्चों का चयन किया गया जिनमें ऐसी क्षमता पाई गई जो कि आगे चलकर निश्चित तौर पर उच्च पदों पर आसीन होकर अपने साथ साथ कौम का भविष्य भी उज्जवल बना सकते हैं। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका, महासचिव जगदीप सिंह काहलो के द्वारा भी इनके कार्यों की सराहना की गई और पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया। इसी प्रकार समाजसेवी डा. गुरमीत सिंह सूरा जैसे भी कई लोग हैं जो निजी तौर पर हर वर्ष कई सिख बच्चों की पूर्ण एजुकेशन का खर्च उठाकर उनका भविष्य सुधारने में लगे हैं।
सारागढ़ी का इतिहास स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए
सारागढ़ी का युद्ध सिखों की बहादुरी का प्रतीक है जिसमें मात्र 21 सिख सैनिकों ने हवलदार ईश्वर सिंह के नेतृत्व में 10 हजार अफगान सैनिकों का डटकर ना सिर्फ मुकाबला किया बल्कि 600 के करीब अफगानियों को मौत के घाट उतारने के बाद अन्त में वीरगति को प्राप्त हो गये। संसार के 5 महान युद्धों में इसकी गिनती आती है। इतिहासकारों का मानना है कि अंग्रेजी हकूमत अफगानिस्तान पर कब्जा करने की मंशा लिए हुए थी जिसके चलते 1897 तक अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर हमले करना भी शुरू कर दिए थे। अफगानिस्तान की सीमा पर ब्रिटिश सेना के कब्ज़े में दो किले गुलिस्तान और लॉकहार्ट थे। ओराक्जई जनजाति के लोग गुलिस्तान और लॉकहाट के किलों पर अपना कब्ज़ा चाहते थे जिसके पास ही सारागढ़ी के नाम से एक चौकी मौजूद थी जो दोनों किलों के बीच संचार का जरिया थी। इस चौकी की सुरक्षा की जिम्मेदारी 36वीं सिख रेजिमेंट के पास थी जिसमें 21 सैनिक तैनात थे। 10 हजार अफगान पश्तूनों ने 12 सितम्बर 1897 की सुबह 9 बजे सारागढ़ी पोस्ट पर आक्रमण शुरू कर दिया। दुश्मन की इतनी बड़ी संख्या अपनी तरफ आता देख सैनिकों के नेता हवलदार ईश्वर सिंह ने सिग्नल मैन गुरमुख सिंह को आदेश दिया कि पास के फोर्ट लॉकहार्ट में तैनात अंग्रेज अफसरों को तुरंत हालात से अवगत कराने के साथ मदद मांगी जाए। सिग्नल मिलने के बाद कर्नल हौथटन ने पोजिशन होल्ड रखने और तुरन्त सहायता नहीं भेज पाने की बात कही। यह जानकारी मिलने के बाद ईश्वर सिंह ने निर्णय लिया कि वे मरने से पूर्व इस चौकी को नहीं छोड़ेंगे। ईश्वर सिंह का साथ उनके सैनिकों ने भी दिया और अन्तिम सांस तक लड़ने का निर्णय लिया।
पंजाब की भगवंत मान सरकार के द्वारा सारागढ़ी के इतिहास की याद ताजा रखने हेतु फिरोजपुर में सारागढ़ी स्मारक तैयार करवाया है जिसके लिए राज्यसभा सांसद डॉ. विक्रमजीत सिंह साहनी ने अपने फण्ड से 50 लाख रुपये की अनुदान राशि दी है बीते दिनों इसका विधिवत उद्घाटन कैबिनेट मंत्री डॉ. बलजीत कौर के द्वारा किया गया । डॉ. साहनी ने कहा कि सारागढ़ी की लड़ाई वीरता, पराक्रम और बलिदान का प्रतीक है, जो देशभक्ति और साहस की भावना को जगाता है। उन्होंने केन्द्र और राज्य की सरकार से मांग की कि वह स्कूली पाठ्य पुस्तकों में सारागढ़ी की लड़ाई पर एक अध्याय शुरू करे ताकि छात्रों को “अद्वितीय और अनुकरणीय लड़ाई” के बारे में पढ़ाया जा सके। गुरु हरिकृष्ण पब्लिक स्कूल लोनी रोड मंे भी चेयरमैन परविन्दर सिंह लक्की और प्रिंसीपल सतबीर सिंह के द्वारा एक कार्यशाला करवाई गई ताकि बच्चों को इतिहास के प्रति जागरुक किया जा सके।
सिख पंथ में अरदास की महत्वता
सिख कौम में अरदास की बहुत महत्वता है, सच्चे मन से की हुई हर अरदास पूरी होती है। सिख कौम अरदास में अपने साथ-साथ समूची मानवता की भलाई भी मांगती है। वैसे तो हर सिख को अपनी अरदास स्वयं करनी चाहिए पर ऐसा ना करते हुए वह गुरुद्वारा साहिब के ग्रन्थी, सेवादार से भी अरदास करवा सकते हैं। आमतौर पर ग्रन्थी, सेवादार से अरदास करवाते समय लोग उन्हें अरदास भेंट अर्पण करते हैं। एक बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि आपने जो भी भेंट देनी है वह अरदास शुरू होने से पहले या फिर समाप्ति के बाद दी जानी चाहिए। आमतौर पर देखा जाता है कि जब ग्रन्थी सिंह अरदास कर रहे होते हैं तो बीच में ही संगत अरदास भेंट अर्पण करती रहती है जिससे अरदास करने वाले का ध्यान भटकना स्वभाविक सी बात है। सिख कौम को अरदास से ही शक्त भी मिलती है, कई बड़े युद्ध केवल अरदास से ही जीते गए हैं। हाल ही मंे पंजाबी फिल्म निर्माता जिप्पी ग्रेवाल ने ‘‘अरदास सरबत के भले की’’ मूवी बनाई है जिसमें अरदास की महत्वता और उसे करने के तरीके को दर्षाया गया है जिसकी भरपूर प्रशंसा की जा रही है।
हालांकि जब फिल्म का टेलर जारी हुआ था तो इसमें गुरबाणी की पंक्तियों से छेड़छाड़ किये जाने की बात सामने आई थी जिसकी हजूर साहिब से जुड़े परमजीत सिंह वीरजी के द्वारा एतराज जताया गया जिस पर फिल्म निर्माता ने तुरन्त ध्यान देते हुए गलतियों मंे सुधार के पश्चात फिल्म को रिलीज किया। दिल्ली में फिल्म के िप्रिमयर के दौरान राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके, समाजसेवी एम एम पाल सिंह गोल्डी आदि ने फिल्म को देखने के पश्चात् बताया कि जो भी व्यक्ति फिल्म को देख रहा है उनकी आंखें नम हो जाती है। इससे पहले भी फिल्मंे जिप्पी ग्रेवाल के द्वारा बनाई जा चुकी हैं। जिप्पी ग्रेवाल की तारीफ की जानी चाहिए जिन्होंने इतनी भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से संतोषजनक मूवी तैयार की है।
- सुदीप सिंह