आपातकाल और भारत
आम चुनावों में भारतीय संविधान को लेकर आरोपों-प्रत्यारोपों का खूब दौर चला। विपक्षी इंडिया गठबंधन और खासकर कांग्रेस ने भाजपा के 400 पार के नारे को संविधान बदलने के खतरे से जोड़कर संविधान बचाने का नारा दिया। इंडिया गठबंधन के ज्यादातर सांसदों ने नई लोकसभा में संविधान की छोटी प्रति हाथ में लेकर शपथ ली और जय संविधान का नारा लगाया। संविधान के मुद्दे पर भाजपा ने देश में आपातकाल की यादें पेश कर दीं। आपातकाल का मुद्दा नई लोकसभा के सत्र में भी उठा। जब स्पीकर ओम बिरला ने सदन में आपातकाल का निंदा प्रस्ताव पढ़ा। इस प्रस्ताव के जरिये मोदी सरकार ने कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया। भाजपा ने संविधान बचाओ नारे का करारा जवाब देते हुए कहा कि संविधान मोदी शासन में नहीं बल्कि तब खतरे में था जब देश में इंदिरा गांधी की सरकार ने इमरजैंसी थोपी थी और ऐसा करने वाली कांग्रेस को संविधान बचाने का नारा लगाने का कोई अधिकार नहीं है। आपातकाल की ज्यादतियों का शिकार मेरा परिवार भी हुआ और पंजाब केसरी समाचारपत्र की आवाज को भी कुचलने की कोशिश की गई। समूचे घटनाक्रम से मैं इसलिए परिचित हूं क्योंकि मेरे पिता पंजाब केसरी के मुख्य सम्पादक रहे श्री अश्विनी कुमार कई बार मुझे आपातकाल का इतिहास सुनाते रहे और साथ ही लोकतंत्र और प्रैस की आजादी को बचाने के लिए किए गए अपने संघर्ष के बारे में बताते हुए मुझे सबक देते रहे। आपातकाल को भारतीय राजनीति के इतिहास का काला अध्याय कहा जाता है।
25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक लगी रही। उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे। इसे आजाद भारत का सबसे विवादास्पद दौर भी माना जाता है। वहीं अगली सुबह यानी 26 जून को समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज में आपातकाल की घोषणा के बारे में सुना। आपातकाल के पीछे कई वजहें बताई जाती हैं, जिसमें सबसे अहम है 12 जून, 1975 को इलाहबाद हाईकोर्ट की ओर से इंदिरा गांधी के खिलाफ दिया गया फैसला।
इंदिरा गांधी पर 6 साल तक चुनाव लड़ने और किसी भी तरह का पद सम्भालने पर रोक लगा दी गई थी। तब इंदिरा गांधी आसानी से सिंहासन खाली करने के मूड में नहीं थीं। इमरजैंसी लगते ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण अडवानी, मुलायम सिंह यादव समेत विपक्ष के अन्य नेता जेलों में ठूंस दिए गए थे। तब पंजाब केसरी के संस्थापक सम्पादक अमर शहीद लाला जगत नारायण जी को भी गिरफ्तार कर पंजाब की फिरोजपुर जेल में डाल दिया गया था। तत्कालीन सत्ता ने विपक्ष को कुचलने के लिए हरसम्भव कोशिश की थी और प्रैस की स्वतंत्रता पर अनेक अंकुश लगा दिए थे। पंजाब केसरी पर कई तरह के झूठे केस बनवाकर बिजली काट दी गई थी। तब मेरे पितामह श्री रमेश चन्द्र जी, उनके छोटे भाई और पूज्य पिताजी अश्विनी कुमार ने प्रैस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संघर्ष किया और ट्रैक्टर से प्रिंटिंग प्रैस चलाकर आपातकाल के विरोध में अपनी आवाज बुलंद की और जन-जन तक पहुंचाई। आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था।
सत्ता को बचाने के लिए इंदिरा गांधी ने आपातकाल का सहारा लिया और लोकतांत्रिक मूल्यों को दबाने का प्रयास किया, जिसके चलते लोगों में उबाल आया। आपातकाल के दौरान प्रशासन और पुलिस की ओर से भारी उत्पीड़न की दास्तानें सामने आईं। कई तरह के काले कानून लागू किए गए और लाखों लोगों की जबरन नसबंदी की गई। सरकार विरोधी समाचार छापने पर अनेक पत्रकारों को मीसा के तहत गिरफ्तार किया गया और उन्हें यातनाएं दी गईं। विपक्ष की लड़ाई मुकाम तक पहुंची और 1977 के चुनावों में लोगों ने आपातकाल का बदला लेते हुए कांग्रेस को पराजित कर दिया। तब भी कांग्रेस को 153 सीटें मिली थीं।
अब मोदी सरकार ने 25 जून को हर साल इस दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का ऐलान कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह और अन्य नेताओं ने कहा है कि 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाया जाना इस बात की याद दिलाएगा कि इस दिन क्या हुआ था और किस तरह से संविधान को कुचला गया था। यद्यपि कांग्रेस ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि मोदी सरकार के 10 वर्ष के शासन में अघोषित आपातकाल है। देश के हर गरीब और वंचित तबके का आत्मसम्मान छीना गया है। ऐसे में सरकार के मुंह से संविधान की बातें अच्छी नहीं लगतीं।
मोदी सरकार का 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का ऐलान कांग्रेस के संविधान बचाओ के नारे की काट के रूप में देखा जा रहा है। इतिहास को याद करने में कोई बुराई नहीं है। आपातकाल के काले दिनों को याद करके हमें लोकतंत्र को खतरे में डालने वाले तथ्यों पर विचार-विमर्श करते रहना चाहिए। क्योंकि जीने के लिए रोटी, कपड़ा, मकान ही नहीं बल्कि जीने की स्वतंत्रता के अधिकार भी शामिल होने चाहिएं। हमें आपातकाल को केवल याद ही नहीं रखना बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि हम आपातकाल से मिले सबक को कितना याद रखते हैं। हमें यह भी याद रखना होगा कि उस समय के शासन की ज्यादतियों को भूलकर देश की जनता ने उन्हें फिर से देश की कमान सौंप दी थी। वर्तमान की युवा पीढ़ी इतिहास से परिचित नहीं है। उनके लिए शायद यह मुद्दा महत्वपूर्ण न हो लेकिन उन्हें हमेशा सचेत रहना होगा कि कोई भी आपातकाल जैसी तानाशाही मानसिकता की भविष्य में पुर्नावृत्ति न कर सके।