सब कुछ नकली, बचाओ भगवान!
अखबारों में आए दिन यह सुर्खियां छपती हैं कि नकली घी का भंडाफोड़ और नकली दूध तथा नकली दही बेचने वाले गिरोह का पता चला। नकली लोग परीक्षाएं देकर डाक्टर बन कर मुन्ना भाई एमबीबीएस जैसी फिल्मों के यथार्थ को सिद्ध करते हैं। पचासों कंपनियां किसी भी ब्रांड के उत्पाद को बेचने का धंधा कर रही हैं। नकली डाक्टर, नकली डिग्रियां, नकली दवाएं, नकली सब्जियां, नकली फल और अब कैंसर की नकली दवाएं भी बेची जा रही हैं। आखिर समाज को यह क्या हो गया है। यह कैसा गोरखधंधा है कि कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के नाम पर इलाज के लिए जो दवा बेची जा रही है वह नकली है। यह सुन कर ही रूह कांप उठती है। दिल्ली जैसे शहर में चोरी-छिपे नहीं खुले बाजार में धड़ल्ले से कैंसर की दवाएं बेची जा रही हैं। जो बेचारे अपने परिजनों के कैंसर के इलाज के लिए लाखों रुपए की नकली दवा खरीद रहे हों और उनकी जान चली जाती होगी तो कल्पना करो कि उनके दिलों पर क्या बीतती होगी जब उनको कहना पड़ता होगा कि कैंसर की नकली दवा ने जान ले ली। यह मानवता का खून है और जो कत्ल कर रहा है उनके लिए सजा तुरंत फांसी के रूप में होनी चाहिए तभी मौत के सौदागरों पर शिकंजा कसा जा सकता है।
नकली दवाएं हों या खानपान यह मानवता के लिए खतरा है और मेरा मानना है कि अगर रोज ऐसी सुर्खियां छप रही हैं आैर चैनलों पर डिबेट हो रहे हैं तो पहली नजर में प्रशासन और सरकारों के लिए यह सब अच्छी बात नहीं हैै लेकिन गिरोहों के गिरोह पकड़े जा रहे हैं और कुछ ही समय बाद गिरोह के सदस्य कानूनी प्रक्रिया का लाभ उठा कर जमानत पा जाते हैं। यह सिलसिला खत्म करना होगा और सीधे फांसी की सजा वाला प्रावधान लागू करना होगा। मुझे चिंता इस बात की है कि कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी के इलाज के लिए लोगों के घर-बार तक बिक जाते हैं। ऐसे में यह कितनी शर्मनाक बात है जो दवा मरीज खा रहा हो वह नकली निकले। मैडिकल साइंस बताती है कि कैंसर इलाज के दौरान अगर नकली दवा मरीज काे दी जाए तो उसकी कमजोर इम्यूनिटी पर यह मौत का कारण बन जाती है। बड़ी बात यह है कि इस नकली दवा के बारे में डाक्टर भी बता नहीं पाते। इसलिए नकली दवा के सौदागरों यानि मौत के कारोबारियों पर शिकंजा कसना ही होगा।
अब तक जो खुलासा हुआ है उससे पता चला है कि गिरोह के लोग प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों से कैंसर दवा की असली शिशियों को ले जाकर उनमें नकली दवाएं भर देते हैं। एक शीशी पांच हजार रुपए में खरीदी जाती है और तीन-तीन लाख रुपए में बेची जाती है। आखिरकार बिना मिलीभगत के यह धंधा कैसे चल सकता है। सबसे महंगी दवा कैंसर की ही है। अभी तो कई चौंकाने वाले खुलासे आये दिन होते हैं जिनमें शूगर, ब्लडप्रैशर, कोरोना की भी नकली दवाएं बिकती रही हैं। यहां तक कि रेमिडिसीवर के नकली इंजैक्शन तक बेचे गए। नकली ग्लूकोज तक बेचा गया। यह जो भी लोग हों बेचने वालों को गिरफ्तार करते ही उन्हें फांसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए।
इस अपराध को मृत्युदंड की श्रेणी में लाया जाना चाहिए। हर छोटे और बड़े शहर में मैडिसन बेचे जाने वाले स्टोरों के लाइसैंस अमरीकी तर्ज पर चैक होने चाहिए। डाक्टरों की डिग्री के बाद अस्पताल या क्लीनिक खोले जाने पर लाइसैंस की नियमित जांच होनी चाहिए। प्राइवेट क्लीनिक या अस्पतालों में मरीजों को दी जाने वाली दवाओं की रैगुलर जांच होनी चाहिए। बड़ी जांच का विषय नकली कैंसर दवाओं के मामले में यह भी होना चाहिए कि कितने लोग इसका शिकार हो रहे हैं। सब कुछ नकली ही नकली है। हे भगवान, बचा लो! यह बात सच है कि चैनलों पर बड़े-बड़े एक्सपर्ट्स बड़ी-बड़ी बातें कह कर विदा हो जाते हैं लेकिन उन लोगों के आंसू कौन पौछेगा जिन्होंने कैंसर की महंगी दवाएं खरीदी और अपने प्रियजनों को खो दिया। वक्त आ गया है कि मौत के सौदागर जो नकली दवाओं का धंधा कर रहे हैं उनके खिलाफ मृत्युदंड जैसी कार्रवाई कब होगी। मेरी भारत सरकार से अपील है कि ऐसे लोगों पर एक्शन के लिए अगर कानून में संशोधन लाना है तो अविलम्ब यह काम भी कर दिया जाना चाहिए।